Mystery of Lord Rama: भगवान राम के ये रहस्य कर देंगे आपको हैरान, जानिए कौवों दिया था कौन सा वरदान
Mystery of Lord Rama (भगवान राम के रहस्य): भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता हैं, जिन्हें पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु का 7वां अवतार माना जाता है। लेकिन भगवान राम से जुड़ी ऐसी कई बाते हैं, जिनके बारे में आप शायद ही जानते होंगे। ऐसे में चलिए जानते हैं भगवान राम के रहस्य।

भगवान राम की मान्यता और रहस्य
भगवान श्रीराम की लीलाएं उनकी दिव्य शक्ति, असीम करुणा और धर्म की रक्षा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाती हैं। उनका जीवन केवल पराक्रम की गाथा नहीं, बल्कि आदर्श आचरण का भी प्रतीक है, जिससे युगों-युगों तक लोग प्रेरणा लेते रहेंगे। ऐसे में चलिए जानते हैं भगवान राम से जुड़े रहस्यों के बारे में।

आदिवासियों को सीख
14 वर्षों के वनवास के दौरान भगवान राम ने जंगल में आदिवासियों को धनुष एवं बाण बनाना, तन पर वस्त्र धारण करना, गुफाओं का रहने के लिए उपयोग करना सिखाया था। उन्होंने आदिवासियों को रिश्तों की अहमियत भी बताई और समाज के निर्माण का ज्ञान दिया।

अस्त्र और दूरदृष्टि
कहा जाता है कि श्री राम को अग्निवेश नामक महर्षि ने एक विशेष प्रकार का कांच प्रदान किया था, जो संभवतः दूरबीन के समान था। इसी दिव्य दृष्टि से उन्होंने लंका के प्रवेश द्वार पर स्थापित दारु पंच अस्त्र को देखा और अपने प्रक्षेपास्त्र से उसे नष्ट कर दिया। ये दर्शाता है कि भगवान राम केवल पराक्रमी योद्धा ही नहीं, बल्कि दिव्य ज्ञान और विज्ञान में भी पारंगत थे।

श्रीराम की 12 कलाएं
भगवान विष्णु के अवतार श्री राम और श्री कृष्ण दोनों ही पूर्ण पुरुष थे, लेकिन दोनों में कुछ अंतर थे। जहां श्रीकृष्ण सोलह कलाओं से संपन्न थे, वहीं श्री राम बारह कलाओं से युक्त थे। इसका कारण ये बताया जाता है कि श्री राम सूर्यवंश में जन्मे थे और सूर्य की कुल बारह कलाएं होती हैं। इसलिए श्री राम में सूर्य देव की समस्त कलाओं का संचार था, जिससे वे एक आदर्श पुरुष के रूप में प्रतिष्ठित हुए।

युद्ध के दौरान दिव्य रथ
जब लंका में रावण के साथ युद्ध आरंभ हुआ, तब रावण मायारचित रथ पर सवार होकर युद्ध भूमि में आया। इसके विपरीत श्री राम बिना किसी रथ के पैदल ही आगे बढ़े। हालांकि उनका शौर्य अटूट था, लेकिन देवताओं ने उनकी सहायता के लिए दिव्य साधन भेजे। देवराज इंद्र ने अपने सारथी मातलि के साथ एक दिव्य रथ भेजा, जिससे युद्ध में भगवान राम को सहायता मिली।

विभीषण का राज्याभिषेक
रावण के वध के बाद भगवान राम ने लंका का राज्य उसके धर्म निष्ठ छोटे भाई विभीषण को सौंप दिया। विभीषण जो पहले ही श्री राम के शरणागत हो चुके थे, धर्म के पक्षधर थे और उन्होंने श्री राम की भक्ति और निष्ठा से अपनी योग्यता सिद्ध की थी। भगवान राम को अयोध्या इतनी प्रिय थी कि उन्होंने जीती हुई स्वर्ण की लंका को भी त्याग दिया।

कौवों को मिला ये वरदान
मान्यता के अनुसार इंद्र देव के पुत्र जयंत ने भगवान राम की परीक्षा लेने के उद्देश्य से कौवे का रूप धारण किया और माता सीता के चरण पर चोंच मारकर उन्हें कष्ट पहुंचाया। इस अपमानजनक कृत्य से भगवान राम क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने दिव्य बाण से कौवे पर प्रहार किया। भयभीत होकर जयंत ने अपने वास्तविक स्वरूप में आकर क्षमा मांगी। लेकिन बाण निष्फल नहीं हो सकता था इसलिए उन्होंने उसे जयंत की एक आंख पर प्रहार कर दिया, जिससे उसकी एक आंख चली गई। किंतु दयालु श्री राम ने कौवों को ये वरदान दिया कि उन्हें अन्न दान करने से पितृ गण तृप्त होंगे।

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