​Dev Deepawali 2024: दीयों से जगमगा उठती है भगवान शिव की नगरी काशी, जानिए क्यों खास है देव दीपवाली​

देव दिवाली या देव दीपावली का उत्सव पूरे भारत में कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। देवों के देव महादेव की पावन नगरी काशी में इस दिन दिव्य और अलौकिक देव दीपावली मनाई जाती है, जिसमें बनारस के घाट दीयों की रोशनी से उजागर हो जाते हैं। लेकिन क्या आप यह जानते है कि क्यों काशी की देव दिवाली इतनी प्रसिद्ध है ? चलिए आपको इससे जुड़े तथ्य बताते हैं।

देव दिवाली क्या है
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देव दिवाली क्या है

देव दीपावली कार्तिक पूर्णिमा को पड़ने वाला एक विशेष त्योहार है जो उत्तर प्रदेश के वाराणसी में धूम-धाम से मनाया जाता है। यह विश्व के सबसे प्राचीन शहर काशी/ वाराणसी की सांस्कृतिक परंपरा है। यह दिवाली के पंद्रह दिन बाद मनाया जाता है।

देव दीपावली  तिथि और मुहूर्त
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देव दीपावली : तिथि और मुहूर्त

इस साल यह तिथि 15 नवंबर को शुक्रवार के दिन मनाई जानी है। प्रदोषकाल देव दीपावली का मुहूर्त 05:10 पी एम से 07:47 पी एम तक रहेगा जिसकी अवधि 02 घण्टे 37 मिनट की है।

बुराई पर अच्छाई की जीत
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बुराई पर अच्छाई की जीत

सनातन धर्म के धर्म शास्त्रों के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नाम के दुष्ट असुर का वध कर संसार की रक्षा की थी। भगवान शिव को इसी नाते त्रिपुरांतकारी भी कहा जाता है। इस कथा का उल्लेख शिव पुराण में मिलता है।

दीपों का उत्सव
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दीपों का उत्सव

चांद की शीतल छाह में देव दिवाली की रात को काशी के हर घाट पर लाखों दीप प्रज्वलित होते हैं। ऐसी मान्यता की इन दीयों के प्रकाश से देवी-देवता आकर्षित होते हैं और स्वर्ग से धरती पर आते हैं।

गंगा आरती और गंगा स्नान
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गंगा आरती और गंगा स्नान

सनातन धर्म की मान्यताओं के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान करने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती हैं। काशी में इस दिन सबसे भव्य गंगा आरती आयोजित होती है।

भगवान कार्तिकेय का जन्म
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भगवान कार्तिकेय का जन्म

शिव पुराण और स्कंद पुराण के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही भगवान शिव और माता गौरी के पुत्र भगवान कार्तिकेय का जन्म हुआ था। भगवान कार्तिकेय का जन्म तारकासुर को मारने के लिए हुआ था।

भगवान विष्णु का अवतार
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भगवान विष्णु का अवतार

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु ने दशावतार में से पहला अवतार लिया था जो कि मत्स्य अवतार था। भगवान श्री हरी के इसी अवतार ने सभी जीवों की प्रलय से रक्षा की थी।

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