गोत्र क्‍या होता है, गोत्र का पता कैसे लगाया जाता है, क्यों नहीं किया जाता है एक गोत्र में विवाह, जानें ये बड़े Facts

सनातन धर्म में गोत्र का बहुत महत्व है। कोई भी धार्मिक अनुष्ठान या कार्य हो- मनुष्य के गोत्र का उल्‍लेख अवश्‍य होता है। माना जाता है कि गोत्र की उत्पत्ति वैदिक काल में हुई थी। लेकिन क्या आपको गोत्र के पीछे का रहस्य पता है, कहां से गोत्र का विज्ञान आया और क्यों एक गोत्र में विवाह नहीं किया जाता है।

गोत्र और इसके सिद्धांत
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गोत्र और इसके सिद्धांत

प्राचीन काल में गुरुकुल में ऋषि मुनि शिष्यों के बीच एकता और सामंजस्य बनाने के लिए उन्हें एक गोत्र की उपाधि दे देते थे। एक ही गोत्र के लोग विभिन्न जातियों में पाए जा सकते हैं। यह युगों से चली आ रही वंशावली का भी प्रतिनिधित्व करता है।

कहां से आया गोत्र
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कहां से आया गोत्र

प्राचीन काल में गोत्र का संबंध ऋषियों से था जिन्होंने ज्ञान और धर्मग्रंथों के संस्कारों से युग निर्माण किया। हिंदू पुराणों में मूल रूप से चार गोत्र रहे हैं जो अंगिरा, कश्यप, वशिष्ठ और भृगु हैं। बाद में जमदग्नि, अत्रि, विश्वामित्र और अगस्त्य ऋषि नाम पर गोत्र जोड़े गए।

कैसे निर्धारण होता है
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कैसे निर्धारण होता है

गोत्र का निर्धारण पुरुष पूर्वज (पितृसत्तात्मक) के आधार पर किया जाता है। शास्त्रों में वर्णित मान्यताओं के अनुसार कन्या का अपना गोत्र नहीं होता है। इसलिए विवाह संस्‍कारों में उसे अपने पति का गोत्र अपनाना पड़ता है।

एक गोत्र में विवाह नहीं
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एक गोत्र में विवाह नहीं

धार्मिक शास्त्रों और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि एक गोत्र के लड़का और लड़की का विवाह नहीं हो सकता है। एक ही कुल गोत्र का होने से वह भाई-बहन हो जाते है और विवाह करने पर उस कुल के दोष, बीमारी अगली पीढ़ी में चले जाते हैं।

वंश और गोत्र
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वंश और गोत्र

गोत्र, वाई क्रोमोसोम्स(गुणसूत्र) के ज़रिए पुरुष वंश के डीएनए(DNA) को बनाए रखता है। शाण्डिल्य को सबसे प्रमुख गोत्र बताया गया है।

गोत्र शब्द का अर्थ
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गोत्र शब्द का अर्थ

गोत्र प्राचीन मानव समाज की एक रीति-रिवाज है। यह बताता है कि कोई व्यक्ति किस पूर्वज की संतान है। गोत्र शब्द का अर्थ वंश और कुल होता है जिसका उल्लेख महाभारत ग्रन्थ के शांति पर्व में भी मिलता है।

कितने गोत्र
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कितने गोत्र

वर्तमान में आपको 115 गोत्र भारत के विभिन्न क्षेत्रों में मिलेंगे। उत्तर वैदिक हिंदू ग्रंथों के मुताबिक, ब्राह्मणों के 18 गोत्र हैं। वहीं विष्णु पुराण के मुताबिक, ब्राह्मणों के गोत्रों की संख्या 49 तक हो सकती है।

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