दिसंबर की कड़ाके की सर्दी में भी लद्दाख क्यों जाते हैं लोग, इस वजह से बर्फ के रेगिस्तान में उमड़ती है भीड़
Why Visit Ladakh in December (दिसंबर में लद्दाख क्यों जाएं): देश में जहां राजस्थान और गुजरात में रेत का रेगिस्तान है, वहीं अपने देश में खाप चान भी है यानी बर्फ का रेगिस्तान। ये है लद्दाख का ही दूसरा नाम। गर्मी के मौसम में तो यहां घूमने तमाम पर्यटक जाते हैं लेकिन दिसंबर में भी यहां कड़ाके की सर्दी में टूरिस्ट उमड़ते हैं। इसकी वजह है एक खास फेस्टिवल। यहां जानें इसके बारे में।
माउंटेन फेस्टिवल
तिब्बत, नेपाल, मोंगोलिया और हिमालय के खूबसूरत पहाड़ी क्षेत्रों में नए साल पर गैल्डेन नामचोट फेस्टिवल मनाने की प्रथा सदियों से चली आ रही है। इसे एंजॉय करने के लिए बहुत से पर्यटक दिसंबर के ठंडे मौसम में भी यहां आते हैं। लगातार कम होते पारे के बावजूद इस पर्व को मनाने का उत्साह भरपूर देखा जा सकता है।
गैल्डेन नामचोट फेस्टिवल क्या है
हिमालय की गोद में बसे लद्दाख में नए साल की शुरुआत के लिए गलदान नामचोट उत्सव मनाया जाता है। ये एक ऐसा उत्सव है जिसमें बोद्ध भिक्षुओं द्वारा जे त्सोंगखापा के सम्मान में उनके जीवन का सुंदर चित्रण और कई कार्यक्रम कराये जाते हैं।
गैल्डेन नामचोट 2024
मुख्य रूप से गलदान नामचोट फेस्टिवल दिसंबर के महीने में आयोजित होता है, लेकिन इसकी तिथियां हर साल बदलती रहती हैं। इसका आयोजन तिब्बती चंद्र कैलेंडर के बारहवें महीने के अनुसार होता है। वर्ष 2024 में ये उत्सव 25 दिसंबर से शुरू होगा।
गैल्डेन नामचोट का इतिहास
लद्दाख के तिब्बती चंद्र कैलेंडर के अनुसार गलदान नामचोट का इतिहास राजा जमयांग नामग्याल के शासनकाल के दौरान से आता है जब स्कार्दू में हुए युद्ध के कारण लद्दाख ने तिब्बती चंद्र कैलेंडर के दसवें महीने में दो महीने पहले ही ये त्योहार मनाना शुरू कर दिया।
जे त्सोंगखापा कौन थे
जे त्सोंगखापा तिब्बती बोद्ध धर्म के प्रसिद्ध विद्वान थें जिनके जन्म, महा परिनिर्वाण तथा बुद्धत्व की याद में ये फेस्टिवल मनाया जाता है। इनके उपदेशों से तिब्बती बौद्ध धर्म के गेलुग स्कूल का भी गठन हुआ और लद्दाख में नए साल के जश्न की शुरुआत हुई।
फेस्टिवल की तैयारी
गलदान नामचोट त्यौहार में , मठों , सार्वजनिक और आवासीय भवनों को घी के दीयों से रोशन किया जाता है जो अंधकार के विनाश का प्रतीक है। पारंपरिक व्यंजन जैसे थुकपा , मोमो और हर्बल चाय तैयार की जाती है और यहां के घरों में परोसी जाती है। खटक , एक पारंपरिक वस्त्र लद्दाखी लोगों द्वारा उपहार में एक-दूसरे को दिया जाता है। और पढ़ें
खूबसूरत आयोजन
हर साल इस फेस्टिवल में दिन भर कई गतिविधियां होती है। इस दौरान बोद्ध मठों और मंदिरों में विधि-विधान से पूजा-पाठ होती है। शाम को दीपों के प्रकाश में सुंदर लोक संगीत के साथ नाटक और नृत्य के सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं।
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