​Independence Day: भारत के राष्‍ट्रगान की वो 5 खास बातें, जिनका सबूत किताबों में भी नहीं मिलेगा​

Independence Day 2024: भारत अपना 78वां स्‍वतंत्रता दिवस मनाने जा रहा है। इस खास दिन हर स्‍कूल, गली-मोहल्‍ले में राष्‍ट्रगान गाया जाएगा। मगर आज हम आपको हमारे राष्ट्रगान से जुड़ी कुछ ऐसी खास बातें बताएंगे जिनके बारे में आपने कम ही सुना होगा या सुना ही नहीं होगा।

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​आइए जानते हैं भारत के राष्‍ट्रगान से जुड़ी खास बातें​

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​रचयिता रबींद्रनाथ टैगोर​

भारत का राष्ट्र-गान, 'जन गण मन', कवि और नाटककार रबींद्रनाथ टैगोर के लेखन से लिया गया है। जो कि उनके गीत 'भारतो भाग्यो बिधाता' से ली गई हैं। मूल गाना बंगाली में लिखा गया था और पूरे गाने में 5 छंद हैं। यह पहली बार 1905 में तत्त्वबोधिनी पत्रिका के एक अंक में प्रकाशित हुआ था।

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​इस दिन घोषित हुआ राष्‍ट्रगान​

भारत के संविधान ने 24 जनवरी, 1950 (भारत के 26 वें गणतंत्र दिवस से पहले) को 'भारोत्तो भाग्यो बिधाता' के पहले श्लोक को आधिकारिक रूप से राष्ट्रीय गान घोषित किया। दावा है कि, कलाकार मकबूल फिदा हुसैन ने राष्ट्रगान के 'भारत भाग्य विधाता' शब्दों से प्रेरित एक बड़ी पेंटिंग भी बनाई थी।

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​पहली बार यहां राष्‍ट्रगान हुआ​

गूगल आर्ट्स एंड कल्‍चर के मुताबिक, इस गीत को सार्वजनिक रूप से पहली बार 27 दिसंबर, 1911 में कलकत्ता में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सत्र में गाया गया था और टैगोर ने इसे खुद गाया था। टैगोर ने अपनी बंगाली गीत की एक अंग्रेज़ी व्याख्या 28 फरवरी, 1919 को लिखी, और इसका शीर्षक 'द मॉर्निंग सॉन्ग ऑफ इंडिया' रखा। जब टैगोर मदनपल्ली में कुछ दिन बिताने गए थे तब मदनपल्ली के बेसेंट थियोसोफ़िकल कॉलेज के डॉक्टर कोसेंस ने इसकी अंग्रेजी व्याख्या लिखने का अनुरोध किया था।

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​भारत का राट्रगान जर्मनी में गूंजा​

गाने की एक और सुरीली धुन जर्मनी में हैम्बर्ग रेडियो सिम्फनी ऑर्केस्ट्रा ने 1942 में बजाई। पूरे गाने की धीमी धुन और इसके राग अलहैया बिलावल का श्रेय रबींद्रनाथ को ही दिया गया है। संभवत: रवींद्रनाथ के भतीजे के बेटे दीनेंद्रनाथ टैगोर, जो खुद एक महान संगीतकार थे, उन्‍होंने इस धुन बनाने में मदद की होगी। हालांकि टाइम्‍स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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​नेताजी की भी भूमिका​

गूगल आर्ट्स एंड कल्‍चर के मुताबिक, नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने राष्ट्रगान चुनने में अहम भूमिका निभाई थी। इन्होंने हिन्‍दी और उर्दू शब्दों का इस्तेमाल करते हुए टैगोर के मूल गीत का दूसरा संस्करण बनाया, जिसे 'शुभ सुख चैन' का नाम दिया गया। कुछ श्रद्धांजलि के अवसरों पर भी हमारे राष्ट्रगान की पहली और अंतिम पंक्तियां गाई जाती हैं।