Puja Tips: यज्ञ पूजा के लिए जानिए क्या लिखा है शास्त्राें में, हर संकेत का है गहरा संदेश
Puja Tips: वैदिक हवन-यज्ञ में आवश्यक होती हैं 12 विशेष वस्तुएं। वस्त्र, से कर समिधा का दिया गया है शास्त्रों में वर्णन। विशेष पूजा में पत्नी के बैठने का होता है विशेष स्थान। पूजा धर्म के कर्म हैं पत्नी के संग के बिना अपूर्ण। आम, शमी, पीपल आदि वृक्षाें की लकड़ी का हाेता है हवन में प्रयोग।
हवन में जरूरी सामग्री।
मुख्य बातें
- वैदिक हवन में आवश्यक होती हैं विशेष सामग्री
- 12 सामग्री का होता है हवन- यज्ञ में विशेष महत्व
- शास्त्रों के श्लोकों में वर्णन हैं हवन की सभी सामग्री का
Puja Tips: सनातन धर्म में यज्ञ या हवन का अपना विशेष महत्व होता है। विवाह हो या नामकरण, या फिर हो त्रयोदशी या श्राद्ध कर्म, हर संस्कार को पूर्ण तभी माना जाता है जब यज्ञ में पूर्णआहुति दी जाती है। यज्ञ पूजा के लिए कुछ वस्तुओं की आवश्यकता होती है।संबंधित खबरें
विभिन्न प्राचीन ग्रंथाें के अनुसार यज्ञ एवं पूजा आदि के लिए वस्त्र, पत्नी, घृत, यज्ञीय, सप्तमृतिका, सप्तधान्य, पंचरत्न, मधुपर्क, सर्वोषधि, पंचामृत, पंचपल्लव और नव ग्रह समिधा आदि की आवश्यकता होती है। इनके महत्व के बारे आइये जानते हैं पूरी जानकारी। संबंधित खबरें
1- वस्त्र तन ढांपने का कार्य करते हैं लेकिन यज्ञ एवं पूजादि के समय वस्त्र के संदर्भ में श्लोकों के अनुसार पालन करना चाहिए- संबंधित खबरें
कच्छो द्विकच्छश्च मुक्तकच्छस्तथैवच। संबंधित खबरें
एकवासा नग्नः पत्र्चविधः स्मतः।।संबंधित खबरें
एक स्वांग के समान लंगोटी की तरह, दुलांगी, काष्टा छोड़ा हुआ, लुंगी की तरह एक वस्त्र और वस्त्रहीनता− ये पांच प्रकार नग्नता में समाविष्ट हैं। संबंधित खबरें
शास्त्रों में कहा गया है कि भाेजन या देव पूजादि करते समय शरीर पर केशल एक कपड़ा नहीं रहना चाहिए। धर्म कार्य के लिए रेशनी, ऊनी वस्त्र श्रेष्ठ माने गए हैं। धार्मिक कार्यों में उत्तरीय या उपवस्त्र अवश्य धारण करें।संबंधित खबरें
2- पत्नी
जब कोइ धार्मिक कार्य पति− पत्नी मिलकर करते हं तब पत्नी का स्थान पति के किस ओर होना चाहिए, इस विषय में यह वचन प्रचलित है- संबंधित खबरें
यज्ञे होमे व्रते दाने स्नानापूजादि कर्मणि। संबंधित खबरें
देवयात्राविवाहेषु पत्नी दक्षिणतः शुभ।।संबंधित खबरें
आशीर्वादेभिषके च पादप्रक्षालने तथा।संबंधित खबरें
शयने भाेजने चैव पत्नी तूत्तरतो भवेत।।संबंधित खबरें
यज्ञ, होम, व्रत, दान, स्नान, देवपूजा, देवयात्रा और विवाह आदि कर्मों में बाएं हाथ की ओर पत्नी आसन ग्रहण करें। आशीर्वाद लेते समय, अभिषेक करवाते समय, पूजनीय व्यक्ति का पादप्रक्षालन करते समय, शय्या पर और भाेजन के समय पत्नी का स्थान पति के दायीं ओर होना चाहिए। संबंधित खबरें
3- घृत
प्रायः सभी धार्मिक कार्यों में घृत की आवश्यकता होती है लेकिन यदि पूजा एवं यज्ञादि कर्म में किसी कारणवश घी की कमी हो तो उस समय घृत प्रतिनिधि के रूप में गाय के दूध या दही का उपयोग करें। यदि यह भी न मिले तो भैंस या बकरी के दूध दही का इस्तेमाल करना चाहिए। संबंधित खबरें
4- यज्ञीय वृक्ष
पूजा एवं यज्ञादि के लिए यज्ञीय वृक्षाें के बारे में धार्मिक ग्रंथाें में इस प्रकार कहा गया है−संबंधित खबरें
शमीपलाशन्यग्राेधपलश वैकंकतोद्भवाः। संबंधित खबरें
अश्वत्थाेदुम्बरो बिल्वश्चंदनं सरलस्त्था। संबंधित खबरें
श्यालाश्च देवदारुश्च खादिरश्चेति याज्ञिकः।। संबंधित खबरें
शमी, पलाश, बरगद, आघाड़ा, अश्वत्थ, औदुंबर, बिल्व, चंदन, सरल, साल, देवदार और खदिर, ये सभी यज्ञीय वृक्ष हैं। इनका उपयोग हवन की समिधा या पत्री के रूप में किया जाता है। संबंधित खबरें
5-सप्तमृत्तिका
सात विभिन्न स्थानाें से लायी गयी मिट्टी सप्तमृत्तिका कहलाती है। अश्वशाला, गजशाला, बांबी, संगम स्थलों, जलाशय, राजद्वार एवं गोशाला, इन सभी स्थानों से मृत्तिका लाएं। यज्ञभूमि के लिए एेसी मृत्तिका की योजना करें। संबंधित खबरें
6- सप्तधान्य
सात प्रकार के अन्न सप्तधान्य कहलाते हैं। यव, गेंहू, तिल, मूंग, राल, सांवा और चना, ये सप्त धान्य माने गए हैं। नवरात्र की घटस्थापना में इनका उपयोग किया जाता है। संबंधित खबरें
7- पंचरत्न
रत्न विभिन्न प्रकार के होते हैं लेकिन यज्ञ एवं पूजा आदि के समय पांच रत्नों की आवश्यकता होती है। सोना, हीरा, मोती, प्रवाल और नीलम, इन पांच रत्नों का सभी कार्यों में उपयोग करें। संबंधित खबरें
8-मधुपर्क
अनेक प्रकार की पूजाओं में मधुपर्क का उपयोग किया जाता है। एक छाेटा चम्मच घी, दो चम्मच दही और एक चम्मच शहद, इन तीनों काे मिलाकर तैयार किया गया मिश्रण मधुपर्क कहलाता है। षोडशाेपचार आदि पूजा के समय भगवान के श्री विग्रह का मधुपर्क द्वारा स्नान कराया जाता है। संबंधित खबरें
9- सर्वोषधि
कूट, जटामंसी, हलकुंड, आवां हल्दी, वेखंड, चाफा, चंदन, दगड़फूल, नागरमोथा और कचूर, इन सभी औषधियों का चूर्ण इकट्ठा करके सर्वोषधि सुगंध पदार्थ बनता है। संबंधित खबरें
10- पंचामृत
पंचामृत का प्रयोग प्रायः सभी प्रकार की पूजा− उपासना में होता है। दूध, दही, घी, शहद और शक्कर के मिश्रण से तैयार किया गया पंचामृत सभी देवों को प्रिय होता है। संबंधित खबरें
11- पंचपल्लव
आम, जामुन, कैथ बिजौरा और बेल के पत्ते पंचपल्ल्व कहलाते हैं। कहीं− कहीं पर बरगद, पीपल, औदुंबर, अनार, शमी और वरुण पूजा के समय भी पंचपल्लव काम में आता है। संबंधित खबरें
12- नवग्रह समिधा
प्रत्येक ग्रह की अलग− अलग समिधा होती है। अर्क, पलाश, खैर, अपामार्ग, पीपल, औदुंबर, शमी, दूर्वा और कुश, ये नौ प्रकार की समिधाएं नवग्रहों की होती है। अंगूठे से चौड़ी, छाल, रहित एवं कीड़ों के पंजे के समान होनी चाहिए।संबंधित खबरें
डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है। संबंधित खबरें
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