Sawan 2023 Mangala Gauri vrat date: सावन मास में कब रखा जाएगा मंगला गौरी का व्रत, देखें तिथि, महत्व

Mangala Gauri vrat 2023 (सावन मंगला गौरी व्रत कब है): हर साल सावन मास के दौरान भगवान शिव का पूजन अर्चन करने का बहुत गहरा महत्व होता है। सावन के महीने में भगवान शिव के साथ उनके परिवार की आराधना करना भी सिद्ध माना जाता है। देखें माता पार्वति को समर्पित मंगला गौरी व्रत सावन में कब रखा जाएगा और इसका महत्व क्या है।

Sawan 2023 mangala gauri date kab hai sawan ka mangala gauri vrat 2023

Sawan 2023 Mangala Gauri vrat (सावन मंगला गौरी व्रत कब है): श्रावण मास में भगवान शिव का विधिवत पूजन करना सनातन धर्म में गहरा महत्व रखता है। हर साल सावन के महीने में देश भर के श्रद्धालुओं द्वारा व्रत, कथा, सवारियों का आयोजन किया जाता है। जिनके फलस्वरूप प्रभु शिव शंकर जातकों के दुख हर उनकी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। सावन मास में भोलेनाथ के साथ उनके समस्त परिवार की आराधना करना भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इसलिए सावन के साथ मंगला गौरी का व्रत भी रखा जाता है, जो माता पार्वती को समर्पित होता है। देखें सावन 2023 में मंगला गौरी के व्रत कब कब रखें जाएंगे एवं इस व्रत का महत्व क्या है।

कब है मंगला गौरी व्रत, Mangala Gauri vrat 2023

आध्यत्मिक दृष्टिकोण से हर साल सावन के महीने में प्रत्येक मंगलवार के दिन को मां पार्वती का दिन माना जाता है। एवं सावन के हर मंगलवार को मंगला गौरी का सिद्ध व्रत रखा जाता है। सावन 2023 में मंगला गौरी का पहला व्रत 4 जुलाई मंगलवार के दिन रखा जाएगा। सावन में शिव आराधना के साथ माता की भक्ति करने से साधकों की सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती है और कष्टों से मुक्ति मिलती है। इस साल के सावन की खास बात ये है कि, मंगला गौरी के व्रत के साथ ही सावन की शुरुआत होने जा रही है। इस साल सावन मास 58 दिनों का होगा और इसका समापन 31 अगस्त के दिन होगा।

क्यों रखते हैं मंगला गौरी का व्रत?

शिव सिद्ध सावन के महीने के हर मंगलवार को मंगला गौरी का व्रत रखा जाता है। इस सावन का पहला मंगला गौरी व्रत 4 जुलाई को रखा जाना है, मंगला गौरी का व्रत खास सुहागिनों द्वारा रखा जाता है। इस व्रत को रखने से शादीशुदा महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए मंगला गौरी का व्रत रखती हैं। जो भी औरतें इस व्रत को रखती हैं उन्हें विधिपूर्वक व्रत को कम से कम पांच तक रखना ही होता है।

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