Tips for Worship: आचमन का जल कहलाता है अमृत, जानिए धार्मिक कार्यों में आचमन की भूमिका क्यों है महत्वपूर्ण
Tips For Worship: पूजा करते समय हाथ में चम्मच से जल लेकर आचमन किया जाना सनातन धर्म में महत्वपूर्ण होता है। आचनम के विधान को विविध शास्त्रों में बताया गया है। कब, कैसे और क्यों जरूरी है आचमन का उपयोग करना आइये इस बारे में देते हैं आपको विस्तृत जानकारी।
पूजा-पाठ में आचमन की भूमिका
- चम्मच द्वारा थाेड़ा−थोड़ा जल पीना देता है लाभ
- एक विशेष मुद्रा द्वारा आचमन करने का है विधान
- आचमन के लिए बाएं हाथ की गोकर्ण मुद्रा रखें
Tips For Worship: ज्यादातर आपने देखा होगा कि जब कभी मंदिर या घर में पूजा करते हैं तो घर के बुजुर्ग या पंडित हाथ में चम्मच द्वारा थाेड़ा थाेड़ा जल देते हैं और कहते हैं कि आचमन कीजिए। आचमन, शब्द क्या है और ये क्यों जरूरी होता है। इस बारे में शास्त्रों के आधार पर जानकारी ये है।
आचमन महत्वपूर्ण क्यों
आचमन सभी प्रकार के कर्माें एवं निष्काम कर्म का महत्वपूण अंग है। केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि आरोग्य शास्त्र की दृष्टि से भी आचमन का असाधारण महत्व है। चम्मच द्वारा थाेड़ा− थाेड़ा पानी पीते रहने से जो लाभ प्राप्त होते हैं वो गिलास, लोटा आदि से प्राप्त नहीं हो सकते है। चम्मच से थाेड़ा थाेड़ा जल पीना व्याधि नाशक बनता है।
इस मुद्रा में ग्रहण किया जाता है आचमन
आचमन के विषय में शास्त्रों में लिखा है “त्रिपबेद आपो गोकर्णवरद् हस्तेन त्रिराचमेत्।” यानि आचमन के लिए बाएं हाथ की गोकर्ण मुद्रा प्रयोग करनी चाहिए। यह मुद्रा बनाते समय तर्जनी को मोड़कर अंगूठे से दबा दें। उसके बाद मध्यमा, अनामिका और कनिष्ठिका को परस्पर जोड़कर मोड़ें कि हाथ की आकृति गाय के कान जैसी हो जाए। आचमन के लिए ब्रह्मतीर्थ का उपयोग किया जाता है। ब्रह्मतीर्थ काे आत्मतीर्थ भी कहते हैं। हथेली पर कलाई के पास का हिस्सा ब्रह्मतीर्थ है। यहां होंठ टिकाकर हथेली पर रखा जल ग्रहण करने की क्रिया तीन बार करें। चौथी बार बाएं हाथ के ब्रह्मतीर्थ के उपर से पानी थाली में छोड़ें। यह क्रिया आचमन कहलाती है। आचमन क्रिया में हर बार एक एक वेद की तृप्ति प्राप्त होती है। हर कर्म के आरंभ में आचमन करने से मन, शरीर एवं कर्म को प्रसन्नता प्राप्त होती है। आचमन करके अनुष्ठान आरंभ करने से छींक, डकार और जंभाई आदि आमतौर पर नहीं होते।
कब किया जाता है आचमन
ग्रहल काल के बाद पूजन, अंत्येष्टि आदि प्रसंग आचमन से ही आरंभ होते हैं। सोलह सोमवार के व्रत में दिनभर जल ग्रहण नहीं किया जाता लेकिन यदि उस दिन पूजा या अभिषेक करना हो तो आरंभ आचमन से ही होना आवश्यक है। उपवास के समय, थकान, पित्तकोष या दस्ते हाेने लगते हैं तो दो बार आचमन करें। बुखार आदि से ग्रस्त होने पर शुद्ध पानी से आचमन करने प र आरोग्य लाभ होता है। मनु स्मृति के अनुसार सोकर उठने के बाद, भूख लगने पर, भाेजन करने के बाद, छींक आने पर, असत्य भाषण होने पर, पानी पीने के बाद और अध्ययन करने के बाद आचमन अवश्य करें।
(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)
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