Govardhan Aarti Lyrics: आरती श्री गोवर्धन महाराज की, श्री गोवर्धन महाराज, ओ महाराज, तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ...

Govardhan Puja Aarti Lyrics: गोवर्धन पूजा को अन्नकूट पूजा भी कहा जाता है। इस दिन सुबह-सुबह गोवर्धन बनाकर उनकी पूजा की जाती है। इस दौरान गोवर्धन महाराज की आरती जरूर करें। यहां देखें गोवर्धन आरती के लिरिक्स।

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Aarti Govardhan Ji Ki: आरती श्री गोवर्धन महाराज की

Govardhan Aarti, Govardhan Maharaj Ji Ki Aarti: गोवर्धन पूजा जीवन में सुख-समृद्धि लाने के लिए की जाती है। इस बार ये त्योहार 14 नवंबर को मनाया जा रहा है। पंचांग अनुसार गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त प्रातःकाल 06:43 से 08:52 तक रहेगा। इस मुहूर्त में विधि विधान गोवर्धन जी की पूजा करें। उन्हें 56 भोग लगाएं। फिर गोवर्धन की व्रत कथा सुनें और अंत में आरती करके पूजा संपन्न करें। यहां देखें गोवर्धन महाराज की आरती।

Govardhan Puja Ki Katha In Hindi

Govardhan Maharaj Ki Aarti Lyrics In Hindi (आरती गोवर्धन जी की)

श्री गोवर्धन महाराज, ओ महाराज,

तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।

॥ श्री गोवर्धन महाराज...॥

तोपे* पान चढ़े, तोपे फूल चढ़े,

तोपे चढ़े दूध की धार।

॥ श्री गोवर्धन महाराज...॥

तेरे गले में कंठा साज रेहेओ,

ठोड़ी पे हीरा लाल।

॥ श्री गोवर्धन महाराज...॥

तेरे कानन कुंडल चमक रहेओ,

तेरी झांकी बनी विशाल।

॥ श्री गोवर्धन महाराज...॥

तेरी सात कोस की परिकम्मा,

चकलेश्वर है विश्राम।

श्री गोवर्धन महाराज, ओ महाराज,

तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।

गिरिराज धारण प्रभु तेरी शरण।

करो भक्त का बेड़ा पार

तेरे माथे मुकुत विराज रहेओ।

Aarti Kunj Bihari Ki Lyrics (श्री कृष्ण जी की आरती)

गले में बैजंती माला,

बजावै मुरली मधुर बाला ।

श्रवण में कुण्डल झलकाला,

नंद के आनंद नंदलाला ।

गगन सम अंग कांति काली,

राधिका चमक रही आली ।

लतन में ठाढ़े बनमाली

भ्रमर सी अलक,

कस्तूरी तिलक,

चंद्र सी झलक,

ललित छवि श्यामा प्यारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

आरती कुंजबिहारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

कनकमय मोर मुकुट बिलसै,

देवता दरसन को तरसैं ।

गगन सों सुमन रासि बरसै ।

बजे मुरचंग,

मधुर मिरदंग,

ग्वालिन संग,

अतुल रति गोप कुमारी की,

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥

आरती कुंजबिहारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

जहां ते प्रकट भई गंगा,

सकल मन हारिणि श्री गंगा ।

स्मरन ते होत मोह भंगा

बसी शिव सीस,

जटा के बीच,

हरै अघ कीच,

चरन छवि श्रीबनवारी की,

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥

आरती कुंजबिहारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

चमकती उज्ज्वल तट रेनू,

बज रही वृंदावन बेनू ।

चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू

हंसत मृदु मंद,

चांदनी चंद,

कटत भव फंद,

टेर सुन दीन दुखारी की,

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥

आरती कुंजबिहारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

आरती कुंजबिहारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

आरती कुंजबिहारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

Govardhan Puja Kyu Manai Jati Hai (गोवर्धन पूजा की शुरुआत कैसे हुई)

मान्यता के अनुसार एक बार देवराज इंद्र ब्रज के लोगों से उनकी पूजा न करने पर गुस्सा हो गए और उन्होंने सबक सिखाने के लिए भारी बारिश कर दी जिससे ब्रज के लोग उनके सामने आकर मिन्नत करें। तब भगवान श्री कृष्ण ने इंद्र का घमंड चूर के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाकर लोगों की रक्षा की। ब्रजवासी 7 दिन इसी तरह पर्वत के नीचे खड़े रहे। इस दौरान बृजवासियों ने सभी की खाद्य सामग्री को मिल बांट कर खाया ताकि सभी को भोजन मिल सके और गाय के दूध, दही और छाछ का इस्तेमाल करके किसी तरह गुजारा किया। । इस समय सभी अन्न और साग सब्जियों को मिलाकर जो भोजन तैयार हुआ उसे अन्नकूट कहा जाता है कहते हैं तभी से भगवान कृष्ण को ये भोग बेहद प्रिय हो गया।

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    TNN अध्यात्म डेस्क author

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