Puja Tips: शिवलिंग से लेकर भगवान के श्री विग्रह तक जरूरी है अभिषेक, पढ़ें इसका महत्व और शास्त्रीय विधि

Puja Tips: एकाग्रचित्त होकर अभिषेक करने से मिलता है पूजा का फल। शिव अभिषेक में गव्य का सींग उपयोग करें। दक्षिणावर्ती या वामावर्ती शंख−शंखिनी भगवान विष्णु के लिए और ताम्रपत्र गणपति के लिए उपयोग करने का शास्त्राें में विधान है। चांदी या कांसे के पात्र से होता है तेल का अभिषेक।

Importance of Abhishek

भगवान के अभिषेक का महत्व

तस्वीर साभार : Times Now Digital
मुख्य बातें
  • अभिषेक करते वक्त जरूरी है कुछ बातों का ध्यान रखना
  • अभिषेक का फल तभी मिलता है जब साधक एकाग्रचित हो
  • देवता के अनुरूप अलग−अलग होते हैं अभिषेक पात्र

अभिषेक यानी जल, दूध, रस एवं तेल आदि द्रव रूप पदार्थाें से मूर्ति को सतत सिंचन करते रहना। मंत्रघाेष के समय होने वाले स्पंदनों के कारण अभिमंत्रित द्रव पदार्थ मूर्ति पर गिरते रहते हैं। फलस्वरूप मूर्ति में निहित देवत्व अधिकाधिक जाग्रत होकर इच्छित फलसिद्धि होती है। अभिषेक के लिए उपयोग में लाया जाने वाला यंत्र अभिषेक पात्र है। यांत्रिकता के कारण फलसिद्धि में हमेशा विलंब होता है। यह जड़ता का गुणधर्म है। अतएव प्रभावी अभिषेक करने के लिए पूजा कर्ता एकाग्रचित्त होकर अपने हाथ में अभिषेक पात्र लेकर अभिषेक करें। इससे कार्यसिद्धि अवश्य और शीघ्र होती है।

हर देवता के लिए अभिषेक पात्र होता है अलग

भगवान या इष्ट देवता का प्रभावी अभिषेक करने के लिए साधक एकाग्रचित होकर अपने हाथ में अभिषेक पात्र लेकर अभिषेक करें। एेसे में गव्य का सींग शिव के लिए, दक्षिणावर्ती या वामावर्ती शंख− शंखिनी विष्णु के लिए और ताम्रपत्र गणपति के लिए शास्त्र विहित हैं।

इस तरह करना चाहिए अभिषेक

बाएं हाथ में सींग तथा शंख पकड़ें एवं दाएं हाथ से उसमें पानी भरते जाएं। दूध या तेल का अभिषेक करते समय शंख, सींग और ताम्रपात्र का उपयोग न करें। इसके लिए कांसे, पीतल या चांदी का पात्र उपयोग में लाएं। रस का अभिषेक करते समय कलइ किया हुआ पात्र उपयोग में लाएं। सूर्य एवं देवी को पानी का, विष्णु गणपति को दूध का, शिव को गन्ने के रस का एवं शनि को तेल का अभिषेक विशेष रूप से प्रिय होता है। वैसे सभी देवताओं को पानी का अभिषेक मान्य है। पानी के अलावा किसी अन्य पदार्थ से अभषेक करने के लिए शंख या सींग के अभिषेक पात्र का उपयोग नहीं करना चाहिए। अभिषेक दूध, दही, घी, शहद एवं शक्कर अर्थात पंचामृत द्वारा करें। अभिषेक करने के बाद आम एवं केला आदि फलों का रस और गिरी अर्पण करें।

आखिर में सभी पदार्थाें से मर्दन करने के बाद देवता को साफ धाेकर जल का अभिषेक करें। उस समय अभिषेक के लिए शंख या गव्य का सींग उपयोग में लाएं अथवा चम्मच से अभिषेक करें। अभिषेक पात्र से अभिषेक करना गौण बात है जबकि शंखाेदक में औषधि गुण होते हैं। भगवान के शरीर पर समर्पण किया जाने वाला जल रात भर शंख में रखना आवश्यक है। एेसा शंखाेदक किसी साफ बरतन में रखकर पूजा आरंभ करें। यदि रात भर शंख में जल रखना मुमकिन न हो तो पूजा के आरंभ में शंख धो पोंछकर उसमें पानी भर दें। फिर उसकी पूजा करके उस पानी में कलश जल मिलाकर पूजन सामग्री और स्वयं के उपर छिड़कें। बाद में मूर्ति को स्नान कराते समय आरंभ एवं अंत में शंखाेदक से स्नान कराएं।

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इन जरूरी बातों का रखें ध्यान

भगवान को नहलाते वक्त शंख या सींग पानी में न डुबोएं। शंख या सींग से डुबोया पानी त्याज्य होता है। इसलिए पात्र से शंख या सींग में पानी भरकर देवता काे समर्पित करें। यदि देवाें में पंचायतन हो ताे बाणलिंग पर शंखोदक अर्पित करें परंतु महादेव के पिंड पर शंखाेदक नहीं अर्पण करना चाहिए। मंदिर में महादेव की पूजा में शंखपूजा मान्य नहीं है। अभिषेक के लिए गणपति अथर्वशीर्ष, श्रीसूक्त, पुरुषसूक्त, पवमान, ब्रह्मणस्पति सूक्त, मन्युसूक्त, रुद्र एवं महिम्न स्तोत्र आदि पढ़ने चाहिए। अभिषेक पूर्ण होने पर इत्र लगाकर उष्णाेदक स्नान कराएं, उष्णाेदक से स्नान होने पर पुनः ठंडा पानी नहीं डालना चाहिए। देवता को पोंछने के बाद मूर्ति के चेहरे पर इत्र लेपन अवश्य करें। बाद में बाकी उपचार करें।

(डिस्क्लेमर: यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)

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