Chanakya Niti: जीवन को बनाना चाहते हैं सुखमय तो आज ही अपना लें आचार्य चाणक्य के ये चार मंत्र
Chanakya Niti in Hindi: आचार्य चाणक्य ने मनुष्य जीवन को सफल और सुखमय बनाने के कई उपाय बताए हैं। आचार्य ने इन उपायों और नीतियों को श्लोकों के माध्यम से बताया है। आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मनुष्य जीवन में शांति जैसा तप, संतोष जैसा सुख, तृष्णा जैसा बीमारी और दया से बड़ा कोई धर्म नहीं होता।
सुखी रहने के लिए आचार्य चाणक्य ने बताए चार मंत्र, घर बन जाएगा स्वर्ग
मुख्य बातें
- खुद पर काबू पाने से बड़ा जीवन में कोई तप नहीं
- संतोष करने वाले व्यक्ति को मिलता है परम सुख
- दया करने वाला कभी नहीं बनता पाप का भागीदार
Chanakya Niti in Hindi: आचार्य चाणक्य को अर्थशास्त्र और नीति शास्त्र का प्रख्यात ज्ञाता माना जाता है। मनुष्य जीवन को सफल और सुखमय बनाने के लिए आचार्य चाणक्य ने कई उपाय बताए हैं। आचार्य कहते हैं कि मनुष्य को अपने जीवन में कई त्याग करने पड़ते हैं, जो व्यक्ति सही गलत की पहचान करने के साथ अपनी इंद्रियों पर काबू पा लेता है वहीं सफलता के रास्ते पर आगे बढ़ सकता है। आचार्य ने अपने इन उपायों को श्लोक के बंधन में पिरोया है। इन श्लोकों से मिलने वाले ज्ञान को जीवन में अपनाने वाले व्यक्ति के लिए सफलता हासिल करना आसान हो जाता है। जो व्यक्ति अपने जीवन को स्वर्ग की तरह सुखमय बनाना चाहते हैं, उन्हें आचार्य चाणक्य की इन बातों का विशेष ध्यान रखना होगा।
क्षान्ति तुल्यं तपो नास्ति सन्तोषान्न सुखं परम् ।
नास्ति तृष्णा समो व्याधिः न च धर्मो दयापरः ॥
शांति है सबसे बड़ा तप
श्लोक के माध्यम से आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मानव जीवन में शांति से बड़ा कोई तप नहीं है। परिस्थिति कितनी भी मुश्किल क्यों न रहे, अगर व्यक्ति अपने अंदर शांति कायम रखना जानता है तो वह हर मुश्किल को आसान बना देगा। क्योंकि शांति हासिल करने से बढ़कर कोई तपस्या नहीं होती, यह अपनी इंद्रियों पर काबू पाना सिखाता है।
संतोष है परमसुख
आचार्य चाणक्य ने संतोष को मानव जीवन का परमसुख माना है। आचार्य कहते हैं कि मनुष्य को खुशमय जीवन व्यतीत करने के लिए अपने मन में हमेशा संतोष का भाव रखना चाहिए। संतोष के साथ ही मनुष्य की जीवन रूपी नाव पार हो सकती है। जिस व्यक्ति के मन में संतोष नहीं होता, वह बेवजह परेशान होकर भटकता रहता है।
तृष्णा सबसे बड़ा रोग
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मानव जीवन का सबसे बड़ा रोग तृष्णा या अभिलाषा है। जिस व्यक्ति को तृष्णा नाम का यह रोग लग जाता है वह जीवन भर इसके ही पीछे दौड़ाता रहता है। यह रोग व्यक्ति को कभी भी शांती से नहीं रहने देता है। व्यक्ति अपना पूरा जीवन लालच में घुट कर व्यतीत कर देता है।
दया है सबसे बड़ा धर्म
आचार्य चाणक्य ने दया के भाव को सभी धर्मों में सबसे ऊंचा स्थान दिया है। आचार्य कहते हैं कि किसी भी जीव पर दया कर उसकी मदद करने वाला व्यक्ति कभी भी पाप कर्म का भागीदार नहीं बनता है। दया भाव रखने वाले व्यक्ति के मन में अवगुण नहीं पनपते हैं।
(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)
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