Chanakya Niti: चाणक्‍य ने बताया कब बुद्धि हो जाती है भ्रष्ट, श्रीराम भी नहीं बच पाए थे, ऐसे करें खुद का बचाव

Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य कहते हैं कि, हर व्‍यक्ति के जीवन में एक पल ऐसा जरूर आता है, जब उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है। व्‍यक्ति कितना भी विवेकवान क्‍यों न हो, लेकिन ऐसे समय में वह सही निर्णय नहीं ले पाता है। आचार्य ने अपने नीतिशास्‍त्र में इसका कारण बताते हुए इससे बचने के उपाय भी बताए हैं।

Chanakya Niti

चाणक्‍य ने बताया कब बुद्धि हो जाती है भ्रष्ट

तस्वीर साभार : Times Now Digital
मुख्य बातें
  • अहंकार, लालच, और क्रोध बुद्धि को भ्रष्‍ट करने के कारण
  • बुद्धि भ्रष्‍ट होने पर विवेकवान व्‍यक्ति भी लेने लगता है गलत निर्णय
  • श्रीराम भी गलत निर्णय लेकर चले गए थे स्‍वर्ण हिरण के पीछे

Chanakya Niti in Hindi: मनुष्‍य का जीवन असफलता और सफलता की कहानी से भरा रहता है। कोई एक पल या मौके का फायदा उठाकर सफलता के शिखर पर पहुंच जाता है, तो कोई अपनी एक गलती की वजह से जीवन की अपनी पूरी कमाई खो देता है। आचार्य चाणक्‍य कहते हैं कि, सभी के जीवन में एक पल ऐसा जरूर आता है, जब व्यक्ति की सोचने-समझने की शक्ति खत्‍म हो जाती है और वह अपने दिमाग से काम नहीं कर पाता, फिर चाहे वह कितना ही बुद्धिमान और विवेकवान ही क्यों न हो। इस तरह की हालत में फंसा व्‍यक्ति गलत रास्‍ते पर चल पड़ता है और फिर समस्या का समाधान निकलने की बजाय परेशानी और कष्‍ट के दलदल में फंसता चला जाता है। आचार्य चाणक्य ने नीति शास्‍त्र बताया है कि, व्यक्ति की बुद्धि कब भ्रष्ट हो जाती है और उसे इन हालातों में क्या करना चाहिए।

न निर्मिता केन न दृष्टपूर्वा न श्रूयते हेममयी कुरङ्गी ।

तथाऽपि तृष्णा रघुनन्दनस्य विनाशकाले विपरीतबुद्धिः ।।

- आचार्य चाणक्य कहते हैं कि, जब किसी व्‍यक्ति का जीवन चारों तरफ से संकट में घिरा हो, तो उस मनुष्य की बुद्धि और विवेक उसका साथ छोड़ देते हैं। इन कठिन हालातों में बेहद बुद्धिमान व्यक्ति भी कई बार सही-गलत में फर्क नहीं कर पाता है। उसकी अक्‍ल पर पर्दा पड़ जाता है। वह गलत रास्‍ते पर चलकर अपना नुकसान कर बैठता है।

- आचार्य चाणक्य ने भगवान श्रीराम का उदाहरण देते हुए श्‍लोक में समझाया है कि स्वर्ण का हिरण न कभी होता, न ही आज तक इसे किसी ने देखा है, लेकिन वनवास के दौरान माता सीता के कहने पर श्रीराम स्‍वर्ण हिरण को पकड़ने निकल पड़े और पीछे से रावण माता सीता का हरण कर लेता है। इस एक गलत निर्णय ने माता सीता का हरण और युद्ध करा दिया।

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आचार्य चाणक्‍य कहते हैं कि, विनाश के समय बुद्धि पर पर्दा डल जाता है। ऐसे समय में मन विचलित होकर गलत फैसले लेने लगता है। चाणक्य कहते हैं कि, अगर संकट के समय मन पर काबू पाना सीख लिया जाए तो कई समस्याएं टल सकती हैं। आचार्य कहते हैं, कि अहंकार, लालच, और क्रोध भी व्यक्ति की बुद्धि भ्रष्ट करने के प्रमुख कारण होते हैं। इसका परित्‍याग कर व्‍यक्ति को धैर्य के साथ सही समय का इंतजार करना आना चाहिए। तभी सफलता मिल सकती है।

(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)

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