Adhik Maas Ki Katha: अधिक मास माहात्म्य कथा यहां देखें

Adhik Maas Ka Pehla Adhyay: अधिक मास में दान, धर्म, पूजन का विशेष महत्व बताया गया है। इस माह में व्रत-उपवास करने से मनुष्य को कई गुना पुण्य फल प्राप्त होता है। इस महीने में पुरुषोत्तम मास माहात्म्य कथा पढ़ने से भगवान विष्ण की कृपा प्राप्त होती है।

Adhik Maas Ka Pehla Adhyay

Adhik Maas Ka Pehla Adhyay: अधिक मास का पहला अध्याय

पुरुषोत्तम मास माहात्म्य कथा अध्याय 1 (Purushottam Mas Mahatmya Katha Adhyaya 1): अधिक मास में भगवान विष्णु और कृष्ण भगवान की पूजा की जाती है। इस महीने में पुरुषोत्तम मास माहात्म्य की कथा पढ़ना बेहद शुभ माना जाता है। कथा की शुरुआत ऐसा कहकर करें- कल्पवृक्ष के समान अपने भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूरा करने अलौकिक कार्यों द्वारा समस्त लोक को चकित करने वाले वृन्दावनबिहारी पुरुषोत्तम भगवान को मेरा नमस्कार। नारायण, नर, नरोत्तम, देवी सरस्वती और श्रीव्यासजी को भी मैं नमस्कार करता हूं या करती हूं।
यज्ञ करने की इच्छा से असित, कश्यप, जाबालि, भृगु, अंगिरा, देवल, पैल, सुमन्तु, पिप्पलायन, शरभंग, पर्वत, आपस्तम्ब, माण्डव्य, अगस्त्य, सुमति, वामदेव, सुतीक्ष्ण, कात्यायन, मुद्गल, कौशिक, गालव, क्रतु, अत्रि, बभ्रु, रथीतर, ऋभु, कपिल, रैभ्य, गौतम, त्रित, पृथु, हारीत, ध्रूम, शंकु, संकृति, शनि, विभाण्डक, पंक, गर्ग, काणाद, जमदग्नि, भरद्वाज, धूमप, मौनभार्गव, जर्जर, जय, जंगम, पार, पाशधर, पूर, महाकाय, जैमिनि, महाग्रीव, महाबाहु, महोदर, महाबल, उद्दालक, शक्ति, बधु, बौधायन, वसु, कौण्डिन्य, कर्कश, शौनक तथा महातपस्वी शतानन्द, विशाल, वृद्धविष्णु, पिंगल, अत्रि, ऋभु, शाण्डीर, करुण, काल, कैवल्य, कलाधार, श्वेतबाहु, रोमपाद, कद्रु, महासेन, आर्त, आमलकप्रिय, ऊर्ध्वबाहु, ऊर्ध्वपाद, एकपाद, दुर्धर, उग्रशील, जलाशी, कालाग्निरुद्रग, श्वेताश्वर, आद्य, शरभंग, पृथुश्रवस् आदि बहुत से मुनि आए।
शिष्यों सहित ये सभी ऋषि अंगों के सहित वेदों को जानने वाले, ब्रह्मनिष्ठ, संसार की भलाई करने वाले, स्मार्त कर्म करने वाले। नैमिषारण्य में आकर यज्ञ करने को तत्पर हुए। इधर तीर्थयात्रा के लिए सूत जी अपने आश्रम से निकले और पृथ्वी का भ्रमण करते हुए उन्होंने नैमिषारण्य में आकर सभी मुनियों को देखा। संसार रूपी समुद्र से पार करने वाले उन ऋषियों को नमस्कार करने के लिये, जहां सभी इकट्‌ठे थे वहीं सूतजी भी जा पहुंचे।
इसके अनन्तर पेड़ की लाल छाल को धारण करने वाले, प्रसन्नमुख, शान्त, सम्पूर्ण आनन्दों से परिपूर्ण, राम नाम मुद्रा से युक्त, गोपीचन्दन मृत्तिका से दिव्य, शंख, चक्र का छापा लगाये, तुलसी की माला से शोभित, अलौकिक चमत्कार दिखाने वाले, समस्त शास्त्रों के सार को जानने वाले, जितेन्द्रिय तथा क्रोध को जीते हुए, जीवन्मुक्त, जगद्गुरु श्री व्यास की तरह निःस्पृह्‌ आदिगुणों से युक्त उनको देख उस नैमिषारण्य में रहने वाले समस्त महर्षिगण सहसा उठ खड़े हुए।
विचित्र कथाओं को सुनने की इच्छा प्रगट करने लगे। तब नम्रस्वभाव सूतजी प्रसन्न होकर सब ऋषियों को हाथ जोड़कर बारम्बार दण्डवत् प्रणाम करने लगे। ऋषि लोग बोले, 'हे सूतजी! आप चिरन्जीवी तथा भगवद्भक्त होवो। हे महाभाग! आप थके हैं, इस आसन पर बैठ जाइये।' ऐसा सब ब्राह्मणों ने कहा।
सूत को सुखपूर्वक बैठे हुए पुण्यकथाओं को सुनने की इच्छा वाले समस्त ऋषि यह बोले, 'हे सूतजी! आप भाग्यवान् हैं। भगवान् व्यास के वचनों के हार्दि्‌क अभिप्राय को गुरु की कृपा से आप जानते हैं। हे महाभाग! संसार-समुद्र में डूबते हुओं को पार करने वाला तथा शुभफल देने वाला, आपके मन में निश्चित विषय जो हो वही हम लोगों से कहिये।
इस प्रकार ऋषियों के पूछने पर हाथ जोड़कर सूतजी बोले, 'हे समस्त मुनियों! मेरी कही हुई सुन्दर कथा को आप लोग सुनिये। हे विप्रो! पहले मैं पुष्कर तीर्थ को गया, फिर वहां स्नान करके ऋषियों, देवताओं और पितरों को तर्पणादि से तृप्त करके फिर प्रतिबन्धों को दूर करने वाली यमुना के तट पर गया, फिर क्रम से अन्य सभी तीर्थों को जाकर गंगा तट पर गया। फिर काशी आकर गयातीर्थ पर गया। पितरों का श्राद्ध कर तब त्रिवेणी पर गया। फिर गण्डकी में स्नान कर पुलह ऋषि के आश्रम पर गया। धेनुमती में स्नान कर फिर सरस्वती के तीर पर गया, फिर वहां त्रिरात्रि उपवास कर गोदावरी गया। फिर कृतमाला, कावेरी, वैहायसी, नन्दा, नर्मदा, निर्विन्ध्या, ताम्रपर्णिका, तापी, शर्मदा, नदियों पर गया। पुनः चर्मण्वती में स्नान कर सेतुबन्ध रामेश्वर पहुंचा। फिर नारायण का दर्शन करने के लिए बदरी वन गया। नारायण का दर्शन कर, वहां तपस्वियों को अभिनन्दन कर, पुनः नारायण को नमस्कार कर और उनकी स्तुति कर सिद्धक्षेत्र पहुंचा। इस प्रकार सभी तीर्थों में घूमता हुआ घूमता-घूमता फिर हस्तिनापुर में गया।
हे द्विजो! वहां यह सुना कि राजा परीक्षित राज्य को त्याग कर बहुत ऋषियों के साथ परम पुण्यप्रद गंगातीर गये हैं और उस गंगातट पर बहुत से सिद्ध, सिद्धि हैं भूषण जिनका ऐसे योगिलोग और देवर्षि वहां पर आये हैं। हे द्विजो! उस समाज में कुछ पूछने की इच्छा से हम भी गये। वहां ब्रह्मस्वरूप भगवान् महामुनि, व्यास के पुत्र, बड़े तेजवाले, बड़े प्रतापी श्रीशुकदेव जी आये। उन 16 वर्ष के योगिराज, शंख की तरह कण्ठवाले, बड़ी पुष्ट कन्धों की सन्धिवाले, अवधूत रूपवाले, ब्रह्मरूप, सर्वांग धूल रमाए महामुनि शुकदेव को देख सब मुनि प्रसन्नता पूर्वक हाथ जोड़ कर खड़े हो गये।
इस प्रकार महामुनियों द्वारा सत्कृत भगवान् शुक को देखकर पश्चात्ताप करती हुई स्त्रियां और उनके बालक जो उनको चिढ़ा रहे थे, दूर ही खड़े रह गये और भगवान शुक्र को प्रणाम करके अपने-अपने घरों की ओर चले गये। इधर मुनि लोगों ने शुकदेव के लिए बड़ा ऊंचा आसन बिछाया। यहां बैठे हुए महामुनि व्यासजी के पुत्र शुकदेव ब्राह्मणों द्वारा की हुई पूजा को धारण कर तारागणों से घिरे हुए चन्द्रमा की तरह शोभा पा रहे थे।
इति बृहन्नारदीये श्रीपुरुषोत्तममाहात्म्ये प्रथमोऽध्यायः ॥१॥
॥ हरिः शरणम् ॥
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    TNN अध्यात्म डेस्क author

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