अहोई अष्टमी कथा हिंदी में
Ahoi Ashatami Vrat Katha In Hindi: इस साल अहोई अष्टमी का व्रत 17 अक्टूबर को रखा जा रहा है। ये व्रत महिलाओं के लिए बेहद खास होता है। क्योंकि अहोई अष्टमी व्रत संतान की लंबी उम्र और खुशहाल जीवन की कामना से रखा जाता है। इस दिन अहोई माता का चित्र बनाकर उनकी पूजा की जाती है और फिर शाम के समय तारों को अर्घ्य दिया जाता है। लेकिन इस व्रत में जो चीज सबसे ज्यादा जरूरी होती है वो है इस व्रत की पावन कथा।
अहोई अष्टमी की व्रत कथा (Ahoi Ashtami Katha)
प्राचीन काल में किसी गांव में एक साहुकार रहता था। उसके सात पुत्र और एक पुत्री थी। साहुकार ने अपने सभी बेटों और बेटी की शादी कर दी थी। हर साल दिवाली के समय साहूकार की बेटी अपने मायके आती थी। एक समय दिवाली पर घर की लीपापोती के लिए साहुकार की सभी सातों बहुएं जंगल से मिट्टी लेने जा रही थीं। उन्हें जाता देख साहुकार की बेटी भी उनके साथ चल पड़ी। साहूकार की बेटी जंगल पहुंच कर मिट्टी खोदने लगी, उस स्थान पर एक स्याहु (साही) अपने पुत्रों के साथ रहती थी। साहूकार की बेटी से मिट्टी काटते समय कुदाल स्याहु के एक बच्चे को लग गई जिससे उसका एक बच्चा मर गया। इसपर स्याहु ने क्रोधित होकर कहा कि जिस तरह तुमने मेरे बच्चे को मार डाला, मैं भी तुम्हारी कोख बांधूंगी।स्याहु की बात सुनकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभियों से विनती करने लगी कि वे उसके बदले अपनी कोख बंधवा ले। नन्द की विनती सुनकर उसकी सबसे छोटी भाभी तैयार हुई और अपनी नन्द के बदले उसने अपनी कोख बंधवा ली। ऐसा करने के बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते हैं, वे सात दिन के बाद ही मर जाते। अपने सात पुत्रों की मृत्यु का सोचकर वह बहुत दुखी हुई और उसने पंडित को बुलवाकर इसका कारण पूछा।
पंडित ने उसकी व्यथा सुनकर उसे सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी। सुरही गाय, छोटी बहु की सेवा से प्रसन्न हुई और उससे पूछती है कि तू किस लिए मेरी इतनी सेवा कर रही है और मुझसे क्या चाहती है? साहूकार की छोटी बहु ने सुरही गाय को बताया कि स्याहु माता ने उसकी कोख बांध दी है जिसके चलते जब भी वो किसी बच्चे को जन्म देती वो सात दिनों के अंदर ही मर जाते हैं। अगर आप मेरी कोख खुलवा दें तो मैं आपका बहुत उपकार मानूंगी।
सुरही गाय उसकी बात मान कर उसे स्याहु माता के पास ले जाने लगी। रास्ते में दोनों थक जाने पर आराम करने लगती हैं। तभी अचानक साहूकार की छोटी बहू देखती है, कि एक सांप गरूड़ पंखनी के बच्चे को डंसने जा रहा होता है। ऐसा देख वो उस बच्चे को बचाने के लिए सांप को ही मार डालती है। जब गरूड़ पंखनी वहां खून बिखरा हुआ देखती है, तो उसे लगता है कि छोटी बहू ने उसके बच्चे को मार दिया है। अपने बच्चे की मौत का हत्यारा समझ वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है।
छोटी बहू उसे समझाती है कि वो खून एक सांप का है, जिसे मैंने तुम्हारे बच्चे की जान बचाने के लिए मारा है। यह सुनकर गरूड पंखनी प्रसन्न हुई और उससे बोली कि माँग तू क्या माँगती है? वह बोली कृप्या आप मुझे सात समुद्र पर स्याऊ माता के पास पहुचा दें। गरूड़ पंखनी ने दोनो को अपनी पीठ पर बैठाकर स्याऊ माता के पास पहुचां दिया। स्याऊ माता उन्हें देखकर बोली कि बहन बहुत दिनो बाद आई, फिर कहने लगी कि बहन मेरे सिर में जूँ पड गई हैं। तब सुरही के कहने पर साहुकार की बहु ने सलाई से उनकी जुएँ निकाल दी।
इस पर स्याऊ माता प्रसन्न हो गईं और कहने लगीं कि तुने मेरे सिर मे बहुत सलाई डाली हैं इसलिये तेरे सात बेटे और बहु होगी। वह बोली मेरे तो एक भी बेटा नहीं है सात बेटा कहाँ से होंगे। स्याऊ माता बोली- वचन दिया, वचन से फिरूँ तो धोबी कुण्ड पर कंकरी होऊँ। जब साहुकार की बहु बोली मेरी कोख तो तुम्हारे पास बन्द पड़ी है ये सुनकर स्याऊ माता बोली कि तुने मुझे बहुत ठग लिया, मैं तेरी कोख खोलती जो नहीं परन्तु अब खोलनी पड़ेगी।
जा तेरे घर तुझे सात बेटे और सात बहुएं मिलेंगी तू जाकर उजमन करियो। सात अहोई बनाकर सात कढ़ाई करियो। वह लौटकर घर आई तो देखा सात बेटे सात बहुएं बैठी हैं वह खुश हो गई। फिर उसने सात अहोई बनाई, साज उजमन किए तथा सात कढ़ाई की। रात्रि के समय जेठानियाँ आपस मे कहने लगीं कि जल्दी-जल्दी नहाकर पूजा कर लो, कहीं छोटी बच्चों को याद करके रोने न लगे।
जब जेठानियों को साहुकार की छोटी बहू के रोने की आवाज नहीं आई तो थोड़ी देर में उन्होंने अपने बच्चों से कहा कि अपनी चाची के घर जाकर देखकर आओ कि वो आज अभी तक रोई क्यों नहीं। बच्चों ने जाकर कहा कि चाची तो कुछ माडँ रही हैं खूब उजमन हो रहा है। यह सुनते ही जेठानियां दौड़ी-दौड़ी उसके घर आईं और जाकर कहने लगीं कि तूने कोख कैसे छुड़ाई? वह बोली तुमने तो कोख बधाई नहीं सो मैने कोख खोल दी है। इस तरह स्याहु के आशीर्वाद से साहुकार की सबसे छोटी बहू का घर फिर से हरा-भरा हो गया। अहोई का एक अर्थ यह भी होता है ‘अनहोनी को होनी बनाना’। जैसे साहूकार की छोटी बहू ने अनहोनी को होनी कर दिखाया। तभी से अहोई अष्टमी का व्रत करने की परंपरा चली।