Ahoi Ashtami 2023: अहोई आठे कब की है- जानें अहोई व्रत की डेट, तिथि, मुहूर्त और महत्व
Ahoi Ashtami 2023 Date (अहोई आठे कब की है): अपनी संतान की लंबी आयु और सुरक्षा के लिए महिलाएं अहोई अष्टमी का व्रत करती हैं। अहोई आठे का व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। जानें अहोई व्रत 2023 में कब है और क्या है अहोई आठे पर तारे देखने का समय।
Ahoi Ashtami 2023 Date and Time In India
अष्टमी तिथि समाप्तAhoi Ashtami 2023 Date (अहोई आठे कब की है): हमारी परंपराओं में संतान की दीर्घायु और सुरक्षा के लिए जो व्रत किए जाते हैं, उनमें से अहोई अष्टमी यानी अहोई आठे का व्रत भी अहम है। इस व्रत को हिंदू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है। महिलाएं इस व्रत में चांद नहीं बल्कि तारों को देखकर व्रत का पारण करती हैं और अहोई माता से अपने बच्चों की लंबी उम्र और अच्छी सेहत का आशीर्वाद मांगती हैं। 2023 में कार्तिक मास 29 अक्टूबर से शुरू होगा। यहां जानें अहोई माता का व्रत कब रखा जाएगा।
Ahoi Ashtami 2023 Date In India
अहोई अष्टमी को अहोई आठे ( Ahoi Aathe) भी कहते हैं क्योंकि ये व्रत आठवीं तिथे को रखा जाता है। 2023 में अहोई माता का व्रत 5 नवंबर, दिन रविवार को रखा जाएगा। अहोई अष्टमी व्रत पर तारों को देखने का समय 5 नवंबर को शाम 05:58 बजे का रहेगा।
अहोई अष्टमी 2023 व्रत की तारीख और समय
अहोई अष्टमी 2023 डेट | 5 नवंबर, रविवार |
अष्टमी तिथि प्रारंभ | 5 नवंबर को 00:59 बजे से |
अष्टमी तिथि समाप्त | 6 नवंबर को सुबह 3:18 बजे पर |
अहोई अष्टमी 2023 पूजा मुहूर्त | 5 नवंबर को शाम 5:33 बजे से 06:52 बजे तक |
अहोई अष्टमी पर तारों को देखने का समय | 5 नवंबर को शाम 05:58 पर |
अहोई अष्टमी पर चांद निकलने का समय | 6 नवंबर को रात 00:02 बजे पर |
अहोई अष्टमी व्रत का महत्व
अहोई अष्टमी का व्रत दिवाली के त्योहार से आठ दिन पहले रखा जाता है। वहीं ये व्रत करवा चौथ के चार दिन बाद आता है। करवाचौथ की तरह ही ये व्रत भी महिलाएं पूरा दिन बिना पानी पिए रखती हैं। हालांकि इसका पारण तारे देखकर किया जाता है। कई जगहों पर महिलाएं चांद को देखने के बाद ही अहोई अष्टमी के व्रत का पारण करती हैं लेकिन इस तरह ये व्रत काफी कठिन हो जाता है। दरअसल, इस तिथि पर चंद्र दर्शन आधी रात के आस पास होते हैं।
वहीं इस व्रत में अहोई माता की पूजा होती है। माताएं इस व्रत को अपनी संतान के मंगल की मनोकामना से करती हैं। इस व्रत में देवी कूष्मांडा की पूजा होती है। वहीं संतान की कामना से इस व्रत के पूर्ण होने पर मथुरा के राधा कुंड में स्नान करने की मान्यता भी है।
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