Akshaya Tritiya Story: अक्षय तृतीया क्यों मनाई जाती है क्या जानते हैं आप
Akshaya Tritiya Story: अक्षय तृतीया क्यों मनाई जाती है, इस दिन को सबसे ज्यादा शुभ क्यों माना जाता है, इस दिन दान का क्या महत्व है जानिए अक्षय तृतीया की पौराणिक कथा से इस त्योहार के बारे में सबकुछ।
अक्षय तृतीया क्यों मनाई जाती है, जानें इस दिन का महत्व
Akshaya Tritiya Story: सनातन धर्म में अक्षय तृतीया का त्योहार बेहद खास माना जाता है। अक्षय तृतीया को कई जगह अखा तीज (Akha Teej 2023) के नाम से भी जाना जाता है। अक्षय तृतीया पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा होती है। मान्यता है कि अक्षय तृतीया पर ही सतयुग और त्रेता युग का भी प्रारंभ हुआ था। इतना ही नहीं भगवान विष्णु के दो अवतार हयग्रीव और भगवान परशुराम का जन्म भी इसी दिन हुआ माना जाता है। इसलिए अक्षय तृतीया के दिन परशुराम जयन्ती (Parshuram Jayanti 2023) भी मनाई जाती है। इसी दिन से चार धामों की यात्रा भी शुरू हो जाती है। इस दिन दान-पुण्य करने का विशेष महत्व बताया जाता है। कहते हैं जो व्यक्ति इस दिन जरूरतमंदों को दान देता है उसे उस दान का फल युग-युगांतर तक मिलता है। अब जानिए अक्षय तृतीया की कथा...
Akshaya Tritiya Story
अक्षय तृतीया की कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक धर्मदास नामक का एक वैश्य अपने परिवार के साथ एक छोटे से गांव में रहता था। वह बहुत गरीब था। जिससे वो अपने परिवार का भरण-पोषण ठीक से नहीं कर पा रहा था। धर्मदास बहुत धार्मिक पृव्रत्ति का था उसका सदाचार और देव एवं ब्राह्मणों के प्रति उसकी श्रद्धा अटूट थी।
उसने एक दिन किसी से अक्षय तृतीया व्रत के महात्म्य को सुना। जिसके बाद उसने अक्षय तृतीया पर्व को विधि विधान मनाने के बारे में सोचा। उसने अक्षय तृतीया पर सुबह जल्दी उठकर गंगा में स्नान किया और विधिपूर्वक देवी-देवताओं की पूजा की, फिर व्रत के दिन अपने सामर्थ्यानुसार जल से भरे घड़े, पंखे, जौ, सत्तू, चावल, नमक, गेंहू, गुड़, घी, दही, सोना तथा वस्त्र भगवान के चरणों में रख कर ब्राह्मणों को दान दिया।
धर्मदास को इतना दान देते हुए देखकर उसके परिवार ने उसे रोकने की कोशिश की लेकिन धर्मदास ने किसी की नहीं सुनी। धर्मदास की पत्नी ने कहा कि धर्मदास इतना सब कुछ दान में दे देगा, तो उसके परिवार का पालन-पोषण कैसे होगा। फिर भी धर्मदास अपने दान और पुण्य कर्म करने से पीछे नहीं हटा और उसने ब्राह्मणों को कई प्रकार का दान दिया। उसके जीवन में जब भी अक्षय तृतीया का पावन पर्व आया, प्रत्येक बार धर्मदास ने ऐसा ही किया।
अनेक रोगों से ग्रस्त और वृद्ध होने के बाद भी उसने उपवास करके धर्म-कर्म और दान पुण्य किया। कहते हैं यही वैश्य अगले जन्म में कुशावती का राजा बना। मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन किए गए दान-पुण्य और पूजन के कारण ही उस वैश्य को अगले जन्म में धनी और प्रतापी राजा बनने का अवसर प्राप्त हुआ।
वह प्रतापी राजा महान और वैभवशाली होने के बाद भी अपने धर्म मार्ग से कभी नहीं हटा। माना जाता है कि यही राजा आगे के जन्मों में भारत के प्रसिद्ध सम्राट चंद्रगुप्त के रूप में पैदा हुए थे। जैसे भगवान ने धर्मदास पर अपनी कृपा बरसायी वैसे ही जो व्यक्ति इस अक्षय तृतीया की कथा को सुनता है और विधि विधान इस दिन पूजा और दान आदि करता है, उसे अक्षय पुण्य और यश की प्राप्ति होती है।
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धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर की रहने वाली हूं। पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट हूं। 10 साल से मीडिया में काम कर रही हूं। पत्रकारिता में करि...और देखें
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