Amalaki Ekadashi Vrat Katha: यहां पढ़ें आमलकी एकादशी व्रत कथा

Amalaki (Amla) Ekadashi Vrat Katha In Hindi: आज आमलकी एकादशी है। इसे आंवला एकादशी (Amla Ekadashi) के नाम से भी जाना जाता है। ये एकादशी फाल्गुन शुक्ल पक्ष में आती है। यहां पढ़ें इस एकादशी की व्रत कथा (Ekadashi Vrat Katha)।

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Amalaki Or Amla Ekadashi Vrat Katha: आंवला एकादशी व्रत कथा इन हिंदी

Amalaki (Amla) Ekadashi Vrat Katha In Hindi: फाल्गुन शुक्ल एकादशी (Phalgun Ekadashi) को आमलकी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस एकादशी में आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है। जिस वजह से ये आंवला एकादशी के नाम से भी जानी जाती है। इतना ही नहीं इसे रंगभरनी एकादशी (Rangbhari ekadashi), कुंज एकादशी (Kunj Ekadashi 2023) और खाटू एकादशी (Khatu Ekadashi) के नाम से भी संबोधित किया जाता है। इस एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा के साथ आंवले के पेड़ की भी पूजा होती है।
हिंदू धर्म में आंवले के पेड़ को बेहद ही पवित्र माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि जब भगवान विष्णु ने सृष्टि के निर्माण के दौरान ब्रह्मा जी को अवतरित किया था तब उसी समय आंवले का पेड़ भी धरती पर अवतरित हुआ था। इसलिए आंवले के पेड़ का संबंध भगवान विष्णु से माना जाता है। अगर आपने आमलकी एकादशी का व्रत रखा है तो इस कथा को पढ़ना बिल्कुल भी न भूलें।

Amalaki Ekadashi Vrat Katha In Hindi (आमलकी एकादशी व्रत कथा)

राजा मांधाता बोले, हे वशिष्ठजी! यदि आप मुझ पर उपकार करें तो कृपया किसी ऐसे व्रत की कथा सुनाइए, जिससे मेरा कल्याण हो। महर्षि वशिष्ठ बोले: हे राजन्! सभी व्रतों में उत्तम और मोक्ष देने वाले आमलकी एकादशी व्रत का मैं वर्णन करता हूं। यह एकादशी फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष में आती है।
एक वैदिश नाम का नगर था। वहां ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र चारों वर्ण आनंदपूर्वक रहते थे। उस नगर में वेद ध्वनि सदैव गूंजा करती थी। वहां कोई पापी, दुराचारी तथा नास्तिक नहीं था। उस नगर में चैतरथ नाम के चन्द्रवंशी राजा का शासन चलता था। वह प्रकांड विद्वान और धर्मी था। उस नगर में न तो कोई दरिद्र न ही कोई कंजूस था। संपूर्ण नगरवासी विष्णु भगवान के भक्त थे और आबाल-वृद्ध स्त्री-पुरुष एकादशी का व्रत किया करते थे।
एक बार फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की आमलकी एकादशी के दिन राजा-प्रजा और बाल-वृद्ध सबने हर्षपूर्वक व्रत किया। इस दौरान राजा अपनी प्रजा के साथ मंदिर जाकर पूर्ण कुंभ स्थापित करके धूप, दीप, नैवेद्य, पंचरत्न आदि से धात्री / आंवले का पूजन किए और इस प्रकार स्तुति करने लगे..
हे धात्री! तुम ब्रह्मस्वरूप हो, ब्रह्माजी द्वारा उत्पन्न, श्रीराम चन्द्रजी द्वारा सम्मानित और समस्त पापों का नाश करने वाले महाराज तुम्हें मेरा नमस्कार है। कृपया करके मेरा अर्घ्य स्वीकार करो। मैं आपसे प्रार्थना करता हूं। अत: आप मेरे समस्त पापों का नाश करें। इस तरह उस मंदिर में सब ने रात्रि को जागरण किया।
रात के समय वहां एक अत्यंत पापी और दुराचारी बहेलिया आया। वह अपने कुटुम्ब का पालन जीव की हत्या करके करता था। भूख और प्यास से अत्यंत व्याकुल बहेलिया इस जागरण को देखने के लिए मंदिर के एक कोने में बैठ गया। वह भगवान विष्णु तथा एकादशी माहात्म्य की कथा सुनने लगा। इस प्रकार मनुष्यों के साथ उसने भी सारी रात जागकर में बिता दी।
प्रात:काल होते ही सभी अपने घर चले गए। बहेलिया भी अपने घर चला गया। घर जाकर उसने भोजन ग्रहण किया। कुछ समय बीतने के बाद बहेलिए की मृत्यु हो गई।
लेकिन, आमलकी एकादशी व्रत करने और जागरण में शामिल होने की वजह से उसने राजा विदूरथ के घर जन्म लिया। यहां उसका नाम वसुरथ रखा गया। युवा होने के बाद वह चतुरंगिनी सेना के सहित धन-धान्य से युक्त होकर 10 हजार ग्रामों का पालन करने लगा।
इस प्रकार वह तेज में सूर्य के समान, कांति में चन्द्रमा के समान, क्षमा में पृथ्वी के समान और वीरता में भगवान विष्णु के समान था। वह अत्यंत धार्मिक, कर्मवीर, सत्यवादी तथा परम विष्णु भक्त था। दान देना उसका नित्य कर्तव्य था। वह प्रजा का समान भाव से पालन करता था।
एक दिन राजा शिकार खेलने गया। दैवयोग से वह मार्ग भटक गया और दिशा ज्ञान का अभाव होने के कारण उस वन में एक वृक्ष के नीचे सो गया। थोड़ी देर बाद, पहाड़ी म्लेच्छ वहां आ गए। राजा को अकेला देख मारो, मारो बोलते हुए राजा की ओर दौड़े। म्लेच्छ कहने लगे कि इसी दुष्ट राजा ने हमारे माता, पिता, पुत्र, पौत्र और अनेक संबंधियों को मारा है। इसे देश से निकाल दिया गया है। इसे अवश्य मारना चाहिए।
ऐसा कहकर वे म्लेच्छ राजा को मारने के लिए दौड़े और उन पर अस्त्र-शस्त्र से प्रहार किया। राजा के शरीर पर गिरते ही सारे अस्त्र-शस्त्र नष्ट हो जाते और पुष्प के समान प्रतीत होता। फिर उन म्लेच्छों के अस्त्र-शस्त्र उलटा उन्हीं पर प्रहार करने लगे और वे मूर्छित होकर गिरने लगे। तभी राजा के शरीर से एक दिव्य स्त्री उत्पन्न हुई। वह स्त्री बेहद सुंदर मगर उसकी भृकुटी टेढ़ी थी। उसकी आंखों से लाल-लाल अग्नि निकल रही थी। वह दूसरे काल के समान प्रतीत होती थी।
वह स्त्री म्लेच्छों को मारने दौड़ी। थोड़ी ही देर में उसने सारे म्लेच्छों को काल के गाल में पहुंचा दिया। जब राजा की आंख खुली तो उसने म्लेच्छों को मरा हुआ देख कहा कि इन शत्रुओं को किसने मारा? इस वन में मेरा हितैषी कौन रहता है? वह ऐसा सोच ही रहा था कि आकाशवाणी सुनाई दी: हे राजन! इस संसार में विष्णु भगवान के अतिरिक्त कौन है जो तुम्हारी सहायता कर सकता है। आकाशवाणी को सुनकर राजा अपने राज्य वापस आया और सुखपूर्वक राज करने लगा।
कथा सुनने के बाद महर्षि वशिष्ठ बोले कि हे राजन्! यह आमलकी एकादशी व्रत का प्रभाव था। जो भी मनुष्य इस आमलकी एकादशी का व्रत करते हैं, वे प्रत्येक कार्य में सफल होते हैं। मरने के बाद विष्णुलोक को प्राप्त हो जाते हैं।
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लवीना शर्मा author

धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर की रहने वाली हूं। पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट हूं। 10 साल से मीडिया में काम कर रही हूं। पत्रकारिता में करि...और देखें

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