Anant Chaturashi Katha In Hindi: अनंत चतुर्दशी क्यों मनाई जाती है, यहां जानिए इसकी व्रत कथा

Anant Chaturashi Vrat Katha In Hindi 2024: सनातन धर्म में अनंत चतुर्दशी के त्योहार का विशेष महत्व माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप की पूजा की जाती है। कहते हैं जो व्यक्ति सच्चे मन से अनंत चतुर्दशी का व्रत रखता है उसके जीवन में सुख-समृद्धि की कभी कमी नहीं होती। इस दिन पूजा के समय अनंत चतुर्दशी की कथा पढ़ना बिल्कुल भी न भूलें।

Anant Chaturashi Vrat Katha In Hindi

Anant Chaturashi Vrat Katha In Hindi 2024: अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप की पूजा की जाती है। इसके साथ ही इस दिन गणेश विसर्जन भी किया जाता है। इस साल अनंत चतुर्दशी का त्योहार 17 सितंबर को मनाया जा रहा है। इस दिन लोग पूजा के बाद अपनी बाजू पर अनंत सूत्र बांधते हैं। इस सूत्र में चौदह गांठें होती है। इस त्योहार पर कई जगह धार्मिक झाकियां भी निकाली जाती हैं। पौराणिक मान्यता अनुसार महाभारत काल से अनंत चतुर्दशी के व्रत की शुरुआत हुई थी। चलिए जानते हैं अनंत चतुर्दशी की व्रत कथा।

अनंत चतुर्दशी व्रत कथा (Anant Chaturdashi Vrat Katha In Hindi)

अनंत चतुर्दशी की पौराणिक कथा अनुसार एक बार महाराज युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ किया। उस समय ऐसे यज्ञ मंडप का निर्माण किया गया जो बेहद अद्भुत था। वह यज्ञ मंडप देखने में इतना सुंदर और चमत्कारी था कि जल व थल की भिन्नता प्रतीत ही नहीं होती थी। वह मंडप जल में स्थल और स्थल में जल की तरह दिखाई देता था। कड़ी सावधानी के बाद भी कई लोग इस मंडप में धोखा खा जाते थे। एक बार दुर्योधन भी उस यज्ञ-मंडप में आ गया और तालाब को स्थल समझ उसमें जा गिरा। तब वहां खड़ा हर इंसान हंसने लगा जिससे दुर्योधन को काफी चिड़ हुई।
दुर्योधन को इस घटना से बड़ा अपमान महसूस हुआ और उसने पांडवों से बदला लेने की ठान ली। उसने बदला लेने के लिए पांडवों को द्यूत-क्रीड़ा में हरा कर उन्हें अपमानित करने की योजना बनाई। जिसके चलते उन्होंने धोखे से पांडवों को जुए में पराजित कर दिया। पराजित होने पर पांडवों को बारह वर्ष के लिए वनवास भोगना पड़ा। इस दौरान पांडवों ने अनेक कष्ट भोगे। जब एक दिन पांडवों से कृष्ण भगवान मिलने आए। तब युधिष्ठिर ने उनसे अपना दुःख बताया और साथ ही इस दुःख को दूर करने का उपाय भी पूछा। तब श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को अनंत भगवान का व्रत करने के लिए कहा। इस व्रत को करने से पांडवों को उनका खोया राज्य पुन: प्राप्त हो गया।
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