Anant Chaturdashi Vrat Katha In Hindi: अनंत चतुर्दशी की व्रत कथा, इसे पढ़ने से मां लक्ष्मी की बरसने लगेगी कृपा
Anant Chaturdashi Vrat Katha In Hindi: अनंत चतुर्दशी हिंदू धर्म का प्रमुख त्योहार माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप की पूजा की जाती है। इस दिन कई लोग गणेश विसर्जन (Ganesh Visarjan 2923) भी करते हैं। यहां जानिए अनंत चतुर्दशी की व्रत कथा।
Anant Chaturdashi Vrat Katha In Hindi
Anant Chaturdashi Vrat Katha In Hindi: अनंत चतुर्दशी का पर्व हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। हिंदू धर्म में इस त्योहार का विशेष महत्व माना गया है। इस दिन कई लोग गणेश विसर्जन भी करते हैं। अन्नत चतुर्दशी पर भगवान विष्णु को 14 गांठ वाले अनंत डोर अर्पित करने की परंपरा है। यहां जानिए अन्नत चतुर्दशी की व्रत कथा।
अन्नत चतुर्दशी की पौराणिक कथा के अनुसार एक बार महाराज युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ किया। उस समय यज्ञ मंडप का निर्माण इतना सुंदर और अद्भुत था कि जल और थल की भिन्नता प्रतीत ही नहीं होती थी। ये मंडप देखने में जल में स्थल तथा स्थल में जल की भांति प्रतीत होता था।
बहुत सावधानी बरतने के बाद भी बहुत से व्यक्ति उस अद्भुत मंडप में धोखा खा चुके थे। एक बार दुर्योधन भी उस यज्ञ-मंडप में आया और गलती से एक तालाब को स्थल समझकर उसमें गिर गया। तब वहां मौजूद लोगों ने उसका काफी उपहास किया। जिससे दुर्योधन चिढ़ गया।
यह बात दुर्योधन के हृदय में बाण समान लग गई और उसने पांडवों से बदला लेने की ठान ली। उसने अपने अपमान का बदला लेने के लिए पांडवों के साथ एक खेल खेलने की सोची। उसने पांडवों को जुए में पराजित कर दिया।
पराजित होने पर पांडवों को बारह वर्ष का वनवास भोगना पड़ा। वन में रहते हुए पांडवों ने अनेक कष्टों का सामना किया। एक दिन भगवान कृष्ण जब मिलने आए, तो युधिष्ठिर ने उनसे अपना दुःख कहा साथ ही दुःख दूर करने का उपाय भी पूछा। तब श्रीकृष्ण ने कहा: हे युधिष्ठिर! तुम विधिपूर्वक अनंत भगवान का व्रत करो, इससे तुम्हारे सारा कष्ट दूर हो जाएंगे और तुम्हारा खोया राज्य पुन: प्राप्त हो जाएगा।
श्रीकृष्ण ने फिर अनंत चतुर्दशी की कथा सुनाई:
प्राचीन काल में सुमंत नाम का एक नेक तपस्वी ब्राह्मण रहता था। जिसकी पत्नी दीक्षा था। उसकी एक परम सुंदरी और धर्मपरायण कन्या भी थी। जिसका नाम सुशीला था। सुशीला जब बड़ी हुई तो उसकी माता की मृत्यु हो गई। पत्नी के मरने के बाद उस ब्राह्मण ने कर्कशा नामक स्त्री से शादी कर ली। वहीं उसने अपनी पुत्री सुशीला का विवाह कौंडिन्य ऋषि के साथ कर दिया। विदाई में उस कन्या की सौतेली मां कर्कशा ने दामाद को कुछ ईंटें और पत्थरों के टुकड़े बांध कर दे दिए।
कौंडिन्य ऋषि दुखी मन से अपनी पत्नी को लेकर अपने आश्रम की ओर चल दिए। परंतु रास्ते में ही रात हो गई। फिर वे नदी तट पर संध्या करने लगे। सुशीला ने वहां देखा कि बहुत-सी स्त्रियां सुंदर वस्त्र पहनकर किसी देवता की पूजा पर रही थीं। सुशीला के पूछने पर उन्होंने विधिपूर्वक अनंत व्रत का महत्व बताया। सुशीला ने भी वहीं व्रत का अनुष्ठान किया और चौदह गांठों वाला डोरा हाथ में बांध कर ऋषि कौंडिन्य के पास आ गई।
कौंडिन्य ने सुशीला से डोरे के बारे में पूछा तो उसने अपने पति को सारी बात बता दी। उन्होंने डोरे को तोड़ कर अग्नि में डाल दिया, जिससे भगवान अनंत जी का अपमान हुआ। परिणामत: ऋषि कौंडिन्य दुःखी रहने लगे और उनकी सारी सम्पत्ति नष्ट हो गई। इस दरिद्रता का उन्होंने अपनी पत्नी से कारण पूछा तो सुशीला ने उन्हें उनकी गलती का अहसास कराया। कि कैसे उन्होंने अनंत भगवान का डोरा जलाकर उनका अपमान किया।
पश्चाताप करते हुए ऋषि कौंडिन्य अनंत डोरे की प्राप्ति के लिए वन में चले गए और कई दिनों तक वहां भटकते रहे और निराश होकर एक दिन भूमि पर गिर पड़े। तब अनंत भगवान ने उन्हें दर्शन दिए और बोले: हे कौंडिन्य! तुमने मेरा तिरस्कार किया था, उसी से तुम्हें इतना कष्ट भोगना पड़ा है। लेकिन अब तुमने पश्चाताप किया है। मैं तुमसे प्रसन्न हूं। अब घर जाकर विधिपूर्वक अनंत व्रत करो। चौदह वर्षपर्यंत व्रत करने से तुम्हारा सारा दुःख दूर हो जाएगा। कौंडिन्य ने वैसा ही किया और उनके सारे दुख दूर हो गए।
श्रीकृष्ण की आज्ञा से युधिष्ठिर ने भी अनंत भगवान का व्रत करके महाभारत के युद्ध में विजय प्राप्त की तथा चिरकाल तक राज्य करते रहे।
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