Bach Baras Ki Kahani In Hindi: बछ बारस व्रत रखने वाली माताएं जरूर पढ़ें ये पौराणिक कथा, इसके बिना अधूरी है पूजा

Bach Baras Ki Kahani In Hindi (बछ बारस की कहानी): इस दिन व्रत रखने वाली महिलाएं गौ माता की बछड़े सहित पूजा करती हैं। साथ ही बछ बारस की पूजा के समय इस कहानी को जरूर सुनती हैं। यहां जानिए बछ बारस की कहानी।

Bach Baras Vrat Katha In Hindi

Bach Baras Vrat Katha In Hindi

Bach Baras Ki Kahani In Hindi (बछ बारस की कहानी): आज बछ बारस का त्योहार मनाया जा रहा है। ये पर्व हर साल भादो कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि पर पड़ता है। इस दिन मां अपने बेटे की लंबी उम्र और सुखी जीवन के लिए व्रत रखती हैं। इस पर्व में गाय की बछड़े सहित पूजा की जाती है। इस दिन माताएं अपने पुत्रों के लिए उनकी पसंद के पकवान बनाती हैं जो उन्हें वे भेंट स्वरूप देती हैं। यहां देखें बछ बारस की कथा।

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बछ बारस की कहानी (Bach Baras Ki Kahani In Hindi)

एक समय की बात है किसी गांव में एक साहूकार रहता था। जिसके सात बेटे और ढेर सारे पोते थे। एक दिन गांव में भीषण अकाल पड़ गया। तब साहूकार ने गांव में एक जोहड़ यानी तालाब बनवाया। लेकिन उस तालाब में कई साल तक पानी नहीं आया। तब साहूकार ने पंडितों से इसका उपाय पूछा। पंडितो ने कहा कि तुम्हें अपने बड़े बेटे या बड़े पोते की बलि देनी होगी तब यहां पानी आ सकता है। साहूकार ने गांव की भलाई का सोचते हुए बलि देने का निर्णय किया।

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साहूकार ने अपनी बहु को एक पोते हंसराज के साथ उसके पीहर भेज दिया और बड़े पोते को अपने पास रख लिया कहते हैं उसका नाम बच्छराज था। उस तरह से बच्छराज की बलि दे दी गई। जिसके बाद तालाब में पानी भी आ गया। इसके बाद साहूकार ने तालाब पर ही एक बड़े यज्ञ का आयोजन किया। लेकिन अपने पोते की बलि के झिझक में वह अपनी बहू को बुलावा नहीं भेज पाया। बहु के भाई ने कहा तेरे यहां पर इतना बड़ा उत्सव है पर तेरे ससुर ने तुझे क्यों नहीं बुलाया ? मुझे बुलाया है, मैं जा रहा हूं।

बहू बोली शायद काम में वे भूल गए होंगे और अपने घर जाने में कैसी शर्म? मैं भी चलती हूं। जब बहू घर पहुंची तो सास ससुर डरने लगे कि बहु को पता लग गया तो क्या जवाब देंगे। फिर भी सास हिम्मत करके बोली बहू चलो बछ बारस की पूजा करने तालाब पर चलते हैं। दोनों जाकर पूजा करने लगीं। सास बोली, बहु तालाब की किनार कसूम्बल से खंडित करो।

बहु बोली मेरे तो दो पुत्र हैं हंसराज और बच्छराज फिर मैं खंडित क्यों करूं। सास बोली जैसा मैं कहू वैसे करो। बहू ने अपनी सास की बात मानते हुए किनार खंडित की और कहा “आओ मेरे हंसराज , बच्छराज लडडू उठाओ। ” उसकी सास मन में भगवान से प्रार्थना करने लगी कि हे बछ बारस माता मेरी लाज रखना। कुछ देर बाद तालाब की मिट्टी में लिपटा बच्छराज व हंसराज दोनों दौड़े चले आये। बहू पूछने लगी “सासू मां ये सब क्या है ?” तब सास ने बहू को सारी बात बता दी और कहा भगवान ने मेरा सत रखा है। आज भगवान की कृपा से सबकुछ सही हो गया। हे बछ बारस माता ! जैसे सास का सत रखा वैसे ही सभी का रखना।

बछ बारस की कथा (Bach Baras Ki Katha In Hindi)

बछ बारस की पौराणिक कथा के अनुसार जब भगवान कृष्ण थोड़े बड़े हुए तो उनके मन में गाय चराने की इच्छा जागृत हुई। तब उन्होनें अपनी माता यशोदा से गाय चराने के लिए कहा तब मां यशोदा ने अपने बेटे की हिफाज़त का सोचते हुए उन्हें जाने से मना कर दिया। लेकिन माता यशोदा ये अच्छे से जानती थी कि वो अपने बेटे को ज्यादा दिनों तक कैद करके नहीं रख पाएंगी। कुछ दिन बाद माता यशोदा ने कृष्ण जी को गाय चराने जाने की इजाजत दे दी। कहते हैं उस दिन भाद्रपद कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि थी।

यशोदा माता ने अपने लाडले को वन में भेजने से पहले उनकी पसंद के ढेर सारे पकवान बनाएं। साथ ही नन्द गावं की अन्य महिलाएं भी उस दिन कान्हा के लिए बहुत से उपहार और तरह-तरह के पकवान तैयार करके लाईं। इसके बाद गायों को भी सजाया गया और उनके लिए अंकुरति अनाज साथ में बांधें गए। माता यशोदा को अपने बेटे कृष्ण की इतनी चिंता थी कि वह जब तक वापस नहीं लौटे तब तक माता ने कुछ खाया नहीं सिर्फ अंकुरित अनाज का ही सेवन किया। कहते हैं इसी दिन को बछ बारस के रूप में मनाया जाने लगा।

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लवीना शर्मा author

धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर की रहने वाली हूं। पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट हूं। 10 साल से मीडिया में काम कर रही हूं। पत्रकारिता में करि...और देखें

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