Bach Baras Vrat Katha: बछ बारस की कहानी से जानिए इस व्रत का महत्व
Bach Baras Vrat Katha: बछ बारस व्रत को ही गोवत्स द्वादशी के नाम से जाना जाता है। ये व्रत महिलाएं अपनी संतान की लंबी आयु और खुशहाल जीवन की कामना से रखती हैं। यहां देखिए बछ बारस की व्रत कथा।
Bach Baras Vrat Katha In Hindi
Bach Baras Vrat Katha: हिंदू पंचांग अनुसार बछ बारस का व्रत भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की द्वादशी को किया जाता है। इस दिन महिलाएं अपनी संतान की लंबी आयु और खुशहाल जीवन के लिए व्रत रखती हैं। इसे गोवत्स द्वादशी के नाम से भी जाना जाता है। यह व्रत उन महिलाओं के लिए भी खास होता है जो संतान प्राप्ति की इच्छा रखती हैं। गोवत्स द्वादशी या बछ बारस के दिन गाय और बछड़े की पूजा की जाती है। साथ ही बछ बारस की कहानी सुनी जाती है। यहां देखिए बछ बारस की व्रत कथा।
Bach Baras Vrat Katha In Hindi
एक साहूकार था जिसके सात बेटे थे। एक बार साहूकार ने एक तालाब बनवाया लेकिन बारह वर्षों तक भी वह तालाब नहीं भर सका। इससे परेशान होकर साहूकार कुछ विद्वान पंडितों के पास गया और उसने पूछा कि इतने दिन हो गए लेकिन मेरा तालाब क्यों नहीं भरता है? तब पंडितों ने कहा कि तुम्हें तुम्हारे बड़े बेटे या बड़े पोते की बलि देनी होगी तब ही यह तालाब भरेगा।
साहूकार ने पंडित की बात मानकर अपनी बड़ी बहू को पीहर भेज दिया। साहूकार की बड़ी बहू हमेशा बछ बारस का व्रत करती थी। बड़ी बहू के पीहर जाने के बाद साहूकार ने अपने बड़े पोते की बलि चढ़ा दी। तब घनघोर मेघ बरसने लगे और तालाब भर गया। जब साहूकार अपने तालाब की पूजा करने जाने लगा तो अन्य लोग भी उसके साथ उसकी तालाब की पूजा करने जाने लगे। जाते समय साहूकार ने अपनी दासी से कहा कि गेऊंला धानुला (चने, मोठ) बना लेना।
साहूकार की गाय के बच्चे का नाम भी गीऊंला धानुला था। उस दासी ने गाय के बच्चे को ही गीऊंला धानुला समझकर पका दिया। साहूकार व साहूकारनी गाजे-बाजे के साथ तालाब को पूजने लगे। साहूकार के पूजन कर लेने के बाद वहां आए लोग भी तालाब का पूजन करने लगे। उसी समय जिस पोते की बलि दी गई थी वह वहां गोबर में लिपटा हुआ मिला और आकर कहने लगा कि मैं भी तालाब में कूदूंगा।
उस बच्चे को देखकर साहूकार ने कहा कि मैंने तो इसकी बलि दे दी थी जिससे ही ये तालाब भरा था। लेकिन गाय माता ने हमारी लाज रख ली और हमें हमारा पोता वापस लौटा दिया। अपने बेटे को वापस देखकर बहू भी बहुत खुश हुई। तब साहूकार दौड़ा-दौड़ा घर वापस आया और दासी से कहने लगा कि गाय का बच्चा कहां है। तब दासी बोली कि आपने गेऊंला धनुला को पकाने के लिए कहा था तो मैंने उसे पका लिया।
यह सुनते ही साहूकार क्रोधित हो उठा और अपनी दासी से कहने लगा। अरे पापिनी तूने यह क्या अनर्थ कर दिया। अभी हम एक पाप उतार कर आए हैं उससे पहले ही तूने दूसरा पाप हमारे लगा दिया। साहूकार अपना सिर पकड़ कर बैठ गया। साहूकार और साहूकारनी सोचने लगे कि अब गाय आएगी तो उसको क्या जवाब देंगे। साहूकार ने एक हांडी में गाय के बच्चे को डालकर खड्डे में दबा दिया।
जब शाम को जंगल से गाय वापस घर आई तो अपने बच्चे को ना पाकर चिल्लाने लगी और खड्डे में दबी हुई हंडिया को खोदने लगी। जब गाय ने हांडी को खोदकर निकाला तो उसमें बछड़ा निकल आया। जब साहूकार को पता चला तो वह भी बछड़े को देखने के लिए गया तो उसने देखा कि बछड़ा तो अपनी मां यानि गाय का दूध पीने में व्यस्त था। तब साहूकार ने पूरे गांव में ढिंढोरा पिटवाया कि सभी स्त्रियों को बछ बारस का व्रत करना चाहिए। हे बछबारस माता जैसे साहूकार की बहू को दिया वैसे हम सबको देना।
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लवीना शर्मा author
धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर की रहने वाली हूं। पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट हूं। 10 सा...और देखें
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