Vat Amavasya Vrat Katha: बड़ अमावस्या पर बरगद के पेड़ की क्यों होती है पूजा, यहां जानिए बड़मावस की कथा

Vat Amavasya Ki Kahani In Hindi: ज्येष्ठ अमावस्या को ही बड़ अमावस्या, बड़मावस और वट अमावस्या के नाम से जाना जाता है। इस दिन बरगद के पेड़ की पूजा का विशेष महत्व होता है। यहां आप जानेंगे बड़मावस की कहानी।

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Bad Amavasya Ki Katha In Hindi

Vat Amavasya (Badmavas) Ki Katha And Kahani In Hindi: आज बड़ अमावस्या मनाई जा रही है। जिसे बड़मावस और वट अमावस्या (Vat Amavasya Katha) के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन शादीशुदा महिलाएं पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं और बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं। मान्यताओं अनुसार ज्येष्ठ अमावस्या के दिन ही सावित्री के पति सत्यवान को बरगद के पेड़ के नीचे दोबारा से जीवनदान मिला था इसलिए ही इस अमावस्या को वट अमावस्या और बड़मावस के नाम से जाना जाता है। चलिए जानते हैं बड़मावस या बड़ अमावस्या की कहानी (Badmavas Ki Kahani)।

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बड़ अमावस्या कथा (Bad Amavasya Katha In Hindi)

मद्र देश के राजा अश्वपति ने संतान प्राप्ति के सावित्री देवी का विधिपूर्वक व्रत पूजन किया जिसके पश्चात उन्हें पुत्री सावित्री की प्राप्त हुई। जब सावित्री बड़ी हुईं तो एक दिन अश्वपति ने मंत्री के साथ उन्हें वर चुनने के लिए भेजा। तब सावित्री ने सत्यवान को वर रूप में चुना। लेकिन उसी समय देवर्षि नारद पधारे और उन्होंने सभी को बताया कि महाराज द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान की उम्र कम है ये शादी के 12 वर्ष पश्चात मर जाएंगे। ये सुनकर राजा ने अपनी पुत्री सावित्री को दूसरा वर चुनने के लिए कहा लेकिन सावित्री नहीं मानीं।

नारदजी से सत्यवान की मृत्यु का समय जानने के बाद भी सावित्री ने सत्यवान से शादी की और वह अपने पति और सास-ससुर के साथ जंगल में रहने लगीं। जब सत्यवान की मृत्यु का समय नजदीक आया तो उससे कुछ दिनों पूर्व से ही सावित्री ने व्रत रखना शुरू कर दिया। जब यमराज उनके पति के प्राण लेकर जा रहे थे तब सावित्री भी उनके पीछे चल दीं। इस पर यमराज ने उनकी धर्म निष्ठा से प्रसन्न होकर कोई वर मांगने के लिए कहा तब सावित्री ने सबसे पहले अपने नेत्रहीन सास-ससुर के आंखों की ज्योति मांगी। इसके बाद भी सावित्री को पीछे आता देख यमराज ने दूसरा वर मांगने को कहा तब दूसरे वरदान में उन्होंने अपने ससुर का छूटा राजपाट वापस मांगा।

तो वहीं तीसरे वरदान में सावित्री ने अपने सौ पुत्रों का वरदान मांगकर अपने पति सत्यवान के प्राण वापिस पाए। मान्यताओं अनुसार सावित्री को अपने पति के प्राण बरगद के पेड़ के नीचे प्राप्त हुए थे इसलिए ही ज्येष्ठ अमावस्या के दिन बरगद के पेड़ की पूजा होती है और इसे बड़मावस के नाम से जाना जाता है।

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लवीना शर्मा author

धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर की रहने वाली हूं। पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट हूं। 10 साल से मीडिया में काम कर रही हूं। पत्रकारिता में करि...और देखें

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