Bhagwat Geeta Shlok In Hindi: गीता के श्लोक
Bhagwad Geeta Shlok In Hindi: सनातन धर्म में श्रीमद्भगवद्गीता का विशेष महत्व माना जाता है। ये हिन्दू धर्म के पवित्र ग्रंथों में से एक है। इस ग्रंथ में भगवान कृष्ण ने जो दिव्य उपदेश दिए हैं उन्हें पढ़ने मात्र से व्यक्ति का जीवन सफल हो जाता है। गीता के श्लोकों में मनुष्य जीवन की सभी परेशानियों का निवारण छिपा है। आज यहां हम आपको बताएंगे भगवद्गीता के कुछ ऐसे श्लोकों के बारे में जिनके जाप से आप अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। इन श्लोकों के प्रभाव से दुश्मन घुटनों के बल आ जाता है। जानते हैं ये कौन से श्लोक हैं।
Bhagwat Geeta Shlok In Hindi
1. कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
इस श्लोक में कहा गया है व्यक्ति को फल की बजाय अपने कर्म पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। क्योंकि जब व्यक्ति फल की इच्छा से कर्म करता है तो उसका ध्यान अपने कर्म पर कम बल्कि उससे मिलने वाले फल पर ज्यादा होता है। इसलिए अपने शत्रु को हराने के लिए खुद को आगे कैसे बढाएं इस पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए।
2. क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:।
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।।
इस श्लोक में मन को शांत रखने का महत्व बताया गया है। अगर व्यक्ति का मन शांत होगा तो वो हर स्थिति में स्थिर रह सकेगा और यही स्थिरता उसके विवेक को जागृत करने का काम करेगी। जिससे वह अपनी सूज-बूझ के साथ बिना क्रोध किए कोई निर्णय ले पाएगा। इसलिए शत्रु के समक्ष भी अपने मन को शांत रखना चाहिए। तभी आप अपने दुश्मन को मात दे सकेंगे।
3. अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति।
नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मनः।।
इस श्लोक के अनुसार जरूरत से ज्यादा किसी भी चीज पर शक करना व्यक्ति को असफलता दिला सकता है। यही बात इस स्थिति में भी लागू होती है कि अगर आपका दुश्मन आपसे हाथ मिलाना चाहता है तो आप सतर्क जरूर बरतें लेकिन जरूरत से ज्यादा संदेह भी न करें। नहीं तो दुश्मनी और बढ़ जाएगी।
4. ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।
सङ्गात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥
इस श्लोक में कहा गया है कि किसी भी वस्तु से लगाव होना साधारण बाता है लेकिन जरूरत से ज्यादा लगाव होना व्यक्ति को सफलता पाने में बाधा उत्पन्न कर सकता है। यही बात इस रूप में भी लागू होती है कि अगर किसी वस्तु, व्यक्ति या स्थान को छोड़ देने पर आपसी बैर कम या खत्म हो सकता है तो इस रास्ते को तुरंत अपना लें।
5. हतो वा प्राप्यसि स्वर्गम्, जित्वा वा भोक्ष्यसे महिम्।
तस्मात् उत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय:॥
इस श्लोक के अनुसार जब तक व्यक्ति के मन में भय रहेगा उसे सफलता नहीं मिल सकती। इसलिए अपने शत्रु से डरने की बजाय निडर होकर अपना कर्म करते रहें अगर आप सही हैं तो आपका दुश्मन खुद ब खुद आपके सामने झुक जाएगा।