महाकाल: भस्म आरती से लेकर शयन आरती की एक अनूठी परंपरा,क्या है भस्म आरती का रहस्य

Ujjain Mahakal Mandir Aarti: उज्जैन के महाकाल मंदिर की आरती बेहद अनूठी है जिसका नाता सदियों पुरानी परंपरा से है जो अबतक चली आ रही है। महाकाल की सबसे सुबह भस्म आरती होती है जो तकरीबन दो घंटे तक चलती है और उसके बाद सबसे आखिर में शयन आरती होती है।

mahakal temple

महाकाल मंदिर में अनूठी है आरती की परंपरा।

ujjain mahakal mandir aarti: विश्व में अकेले राजा महाकाल हैं जो भक्तों को अपने विभिन्न रूपों में दर्शन देते हैं। कभी प्राकृतिक रूप में तो कभी राजसी रूप में आभूषण धारण कर लेते हैं। कभी भांग तो कभी पुष्प, कभी चंदन तो कभी सूखे मेवे, कभी फल तो कभी फूलों से से बाबा का प्रतिदिन श्रृंगार किया जाता है। राजाधिराज महाकाल भक्तों को पूरे वर्ष अपने विभिन्न रूपों में दर्शन देते हैं। दर्शन देने का यह सिलसिला प्रतिदिन भस्म आरती से शुरू होकर शयन आरती तक चलता है। मंदिर में होने वाली आरतियों में बाबा का विभिन्न ढंग से श्रृंगार किया जाता है। महाकाल मंदिर दुनिया का पहला ऐसा मंदिर है जहां प्रतिदिन 6 आरती होती हैं।

भस्म आरती की परंपरा सैकड़ों वर्ष पुरानी

देश के बारह ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख भगवान महाकाल की भस्म आरती की परंपरा सैकड़ों वर्ष पुरानी है। ऐसा कहा जाता है प्राचीन समय में उज्जैन में महाराज चन्द्रसेन का शासन था जो कि शिव के अनन्य उपासक थे। उनके साथ यहाँ की जनता भी शिव से अनन्य अनुराग रखती थी।

एक बार राज रिपुदमन ने राजा चन्द्रसेन के महल में आक्रमण कर दिया और राक्षस दूसन के माध्यम से प्रजा को नुकसान पहुंचाया। ऐसे में प्रजा ने शिव को याद किया और भोलेशंकर ने खुद प्रकट होकर उस राक्षस के आतंक से प्रजा को मुक्ति दिलाई। इसके बाद उन्होंने खुद राक्षस की राख से खुद का श्रृंगार किया और हमेशा के लिए यहाँ बस गए। तभी से इस स्थान का नाम महाकाल रखा गया और भस्म आरती की परम्परा शुरू हुई।

भस्म आरती का विशेष महत्व

महाकाल की विभिन्न पूजाओं तथा आरतियों में भस्म आरती का अपना अलग महत्व है। यह अपने तरह की एकमात्र आरती है जो विश्व में सिर्फ महाकालेश्वर मंदिर उज्जैन में ही की जाती है। हर शिवभक्त को अपने जीवन में कम से कम एक बार भगवान महाकालेश्वर की भस्म आरती में जरुर शामिल होना चाहिए।

भस्म आरती भगवान शिव को जगाने, उनका श्रृंगार करने तथा उनकी प्रथम आरती करने के लिए किया जाता है। यह आरती प्रतिदिन सुबह चार बजे, श्मशान घाट से लायी गयी ताजी चिता की राख से की जाती है। भोर में चार बजे भगवान का जलाभिषेक किया जाता है। तत्पश्चात श्रृंगार और उसके बाद ज्योतिर्लिंग को चिता भस्म से सराबोर कर दिया जाता है। शास्त्रों में चिता भस्म अशुद्ध माना गया है। चिता भस्म का स्पर्श हो जाये तो स्नान करना पड़ता है परन्तु भगवान शिव के स्पर्श से भस्म पवित्र होता है क्योंकि शिव निष्काम हैं। उन्हें काम का स्पर्श नहीं है। अनादिकाल से ही यहाँ भस्म रमाने की परंपरा चलती आ रही है।

भस्म आरती रहस्यमयी अनुष्ठान

यह एक रहस्यमयी अनुष्ठान है जो केवल उज्जैन महाकाल मंदिर में ही किया जाता है। भगवान महाकाल की सेवा पूजन-अर्चन कर रहे 16 पुजारियों में से 10 पुजारी जनोई पति परिवार से और छह पुजारी खूँट पाती पुजारी परिवार से ही होते हैं जो भस्म आरती की व्यवस्थाएं संभालते हैं। भगवान महाकाल के दिन की शुरुआत सुबह 4 बजे इसी आरती से होती है। इसके साथ ही महाकाल के पट खोले जाते हैं। अघोर मंत्र से भस्म रमाकर श्रृंगार किया जाता है। देश के कोने कोने से आने वाले श्रद्धालु भोर में होने वाली भस्म आरती में शामिल होने हजारों की संख्या में शामिल होते हैं।

भस्म आरती में भस्म रमाने का काम श्री पंचायती अखाड़ा के महानिर्वाणी के महंत या उनके प्रतिनिधि महाकाल के जिम्मे रहता है। इसमें शामिल होने के लिए एक दिन पूर्व मंदिर प्रशासन को आवेदन पत्र देकर अनुमति पत्र हासिल किया जाता है। अघोर मंत्र से भस्म रमाकर श्रृंगार किया जाता है। इस आरती में शामिल होने के लिए पुरुषों को सिर्फ धोती और महिलाओं को साड़ी में ही प्रवेश दिया जाता है। भस्म आरती के दौरान जब ज्योतिर्लिंग पर भस्म न्यौछावर की जाती है उस दृश्य को देखना महिलाओं के लिए वर्जित है अतः उस समय महिलाओं को घूँघट करना अनिवार्य होता है। जिस वक्‍त शिवलिंग पर भस्‍म चढ़ती है उस वक्‍त महिलाओं को घूंघट करने को कहा जाता है। मान्‍यता है कि उस वक्‍त भगवान शिव निराकार स्‍वरूप में होते हैं। इस स्‍वरूप के दर्शन करने की अनुमति महिलाओं को नहीं होती।

पुरुष और महिलाओं के लिए अलग - अलग नियम

भस्म आरती के दर्शन करने के लिए पुरुषों को कुछ विशेष नियमों का पालन करना होता है उन्हें इस आरती को देखने के लिए केवल धोती पहननी होती है। धोती साफ-स्‍वच्‍छ और सूती होनी चाहिए। पुरुष इस आरती को केवल देख सकते हैं और आरती को करने का अधिकार केवल यहां के पुजारियों को ही होता है। वहीं महिलाओं के लिए हर सुबह होने वाली भस्म आरती में कुछ खास नियमों का पालन करना अनिवार्य होता है। महिलाओं को आरती में शामिल होने के लिए साड़ी पहनना जरूरी होता है। उसी के साथ-साथ जिस वक्‍त शिवलिंग पर भस्‍म चढ़ती है उस वक्‍त महिलाओं को घूंघट करने को कहा जाता है। माना जाता है कि उस वक्‍त भगवान शिव निराकार स्‍वरूप में होते हैं और महिलाओं को भगवान के इस स्‍वरूप के दर्शन करने की अनुमति नहीं होती। भस्म आरती से जुड़े नियमों का पालन आरती में मौजूद व्यक्ति को करना होता है। भस्म आरती के बाद दत्योदक आरती, महाभोग आरती, संध्या आरती, पुनः संध्या आरती और रात शयन आरती की जाती है।

दत्योदक आरती

भस्मारती के बाद सुबह 7.30 बजे बाबा महाकाल की दत्योदक आरती की जाती है। इस आरती में मंदिर के शासकीय पुजारी भगवान महाकाल का आकर्षक श्रृंगार कर दही चावल का भोग लगाते हैं ।

महाभोग आरती

महाकाल बाबा को प्रतिदिन सुबह 10.30 बजे भोग लगाया जाता है। मंदिर में पुजारी परिवार की ओर से पहले बाबा का आकर्षक श्रृंगार किया जाता है । इसके बाद मंदिर समिति की ओर तैयार किए गया भोग महाकाल का अर्पित किया जाता है। इसके बाद समिति द्वारा संचालित अन्नक्षेत्र में श्रद्धालुओं को भोजन मिलता है।

संध्या आरती

मंदिर में होने वाली चौथी आरती संध्या आरती होती है जो शाम 5 से 6 के बीच संपन्न होती है।

पुनः संध्या आरती

मंदिर में होने वाली पांचवी आरती संध्या आरती होती हैं। शाम 7.30 बजे होने वाल इस आरती को संध्या आरती कहा जाता है। आरती के पूर्व पुजारी बाबा का आकर्षक श्रृंगार करते है। इसके बाद शाम 5.30 बजे संध्या पूजन किया जाता है। पूजन के ठीक दो घंटे बाद बाबा की आरती की जाती है।

शयन आरती

इस आरती के साथ बाबा विश्राम लेते हैं। रात 10.30 बजे शयन आरती शुरू की जाती है। आधे घंटे की इस आरती के साथ ही बाबा को गुलाब के फूलों से श्रृंगारित किया जाता है जिसके बाद बाबा शयन करते हैं।

वर्ष में दो बार 6-6 माह के अंतराल से इन आरतियों के समय में परिवर्तन होता है। दिवाली से होली तक और फिर शेष 6 माह इस तरह क्रम चलता रहता है। सर्दी के मौसम सुबह आरती देरी से होती है क्योंकि सुबह के समय अधिक ठंड लगती है। वहीं शाम को जल्दी आरती की जाती है इसका भी कारण मौसम की ठंडक रहती है। भस्म आरती एवं शयन आरती हमेशा अपने निर्धारित समय पर ही होती है।

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