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Brihaspativar Vrat Katha And Aarti: बृहस्पतिवार की व्रत कथा और आरती, बनाएगी आपको धनवान

Brihaspativar Vrat Katha And Aarti (बृहस्पतिवार व्रत कथा और आरती): बृहस्पतिवार का दिन देवगुरु बृहस्पति (जो भगवान विष्णु के अंश हैं) को समर्पित है। इस दिन पूजा, व्रत और आरती करने का विशेष महत्व है। यहां के आप बृहस्पतिवार व्रत की कथा लिखित में और गुरुवार की आरती देख सकते हैं।

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Brihaspativar Vrat Katha And Aarti (बृहस्पतिवार व्रत कथा और आरती): जिसतरह सोमवार को भोलेनाथ, मंगलवार को हनुमान जी और बुधवार को गणेश जी की पूजा होती है, ठीक वैसे ही बृहस्पतिवार यानी गुरुवार का दिन भगवान विष्णु को समर्पित है। इस खास दिन पर भगवान विष्णु और देवगुरु बृहस्पति की पूजा-उपासना करना शुभ होता है। भक्त इस दिन व्रत भी रखते हैं। गुरुवार के व्रत के कई नियम हैं, जिन्हें सही से माना जाए और व्रत विधि पूरी की जाए तो इंसान का घर धन-धान्य से भर जाता है और साथ ही मनचाहे जीवनसाथी का आशीर्वाद भी मिलता है। बृहस्पतिवार के व्रत में व्रत कथा सुनना भी अनिवार्य है। कथा सुनने के बाद बृहस्पति देव की आरती की जाती है। यहां देखें बृहस्पतिवार व्रत कथा आरती सहित-

Brihaspativar Vrat Katha (बृहस्पतिवार व्रत कथा):

प्राचीन समय की बात है। भारतवर्ष में एक राजा राज्य करता था। वह बड़ा प्रतापी और दानी था। वह नित्य गरीबों और ब्राह्मणों की सेवा-सहायता करता था। वह प्रतिदिन मंदिर में भगवान दर्शन करने जाता था लेकिन यह बात उसकी रानी को अच्छी नहीं लगती थी। वह न ही पूजन करती थी और न ही दान करने में उसका मन लगता था। एक दिन राजा शिकार खेलने वन को गए हुए थे तो रानी और दासी महल में अकेली थी। उसी समय बृहस्पतिदेव साधु भेष में राजा के महल में भिक्षा के लिए गए और भिक्षा मांगी तो रानी ने भिक्षा देने से मन कर दिया। रानी ने कहा कि हे साधु महाराज मैं तो दान पुण्य से तंग आ गई हूं। इस कार्य के लिए मेरे पतिदेव ही बहुत है अब आप ऐसी कृपा करें कि सारा धन नष्ट हो जाए तथा मैं आराम से रह सकूं। साधु ने कहा- देवी तुम तो बड़ी अजीब हो। धन और संतान से कौन दुखी होता है। इसकी तो सभी कामना करते हैं। पापी भी पुत्र और धन की इच्छा करते हैं। अगर तुम्हारे पास अधिक धन है तो भूखे मनुष्यों को भोजन कराओ, प्याऊ लगवाओ, ब्राह्मणों को दान दो, कुआं, तालाब, बावड़ी बाग-बगीचे आदि का निर्माण कराओ। मंदिर, पाठशाला धर्मशाला बनवाकर दान दो। निर्धनों की कुंवारी कन्याओं का विवाह कराओ। साथ ही यज्ञ आदि कर्म करो अपने धन को शुभ कार्यों में खर्च करो। ऐसे करने से तुम्हारा नाम परलोक में सार्थक होगा एवं होगा एवं स्वर्ग की प्राप्ति होगी। लेकिन रानी पर उपदेश का कोई प्रभाव न पड़ा। वह बोली- महाराज मुझे ऐसे धन की आवश्यकता नहीं जिसको मैं अन्य लोगों को दान दूं, जिसको रखने और संभालने में ही मेरा सारा समय नष्ट हो जाए अब आप ऐसी कृपा करें कि सारा धन नष्ट हो जाए तथा मैं आराम से रह सकूं।

साधु ने उत्तर दिया यदि तुम्हारी ऐसी इच्छा है तो जैसा मैं तुम्हें बताता हूं तुम वैसा ही करना बृहस्पतिवार को घर को गोबर से लीपना अपने केशों को पीली मिट्टी से धोना। राजा से कहना वह बृहस्‍पतिवार को हजामत बनवाए, भोजन में मांस- मदिरा खाना और कपड़ा धोबी के यहां धुलने डालना। ऐसा करने से सात बृहस्पतिवार में ही आपका सारा धन नष्ट हो जाएगा। इतना कहकर वह साधु महाराज वहां से अंतर्धान हो गये। इसके बाद रानी ने वही किया जो साधु ने बताया था। तीन बृहस्पतिवार ही बीते थे कि उसका समस्त धन- संपत्ति नष्ट हो गया और भोजन के लिए राजा-रानी तरसने लगे। तब एक दिन राजा ने रानी से कहा कि तुम यहां पर रहो मैं दूसरे देश में चाकरी के लिए चला जाउं क्योंकि यहां पर मुझे सभी मनुष्य जानते हैं इसलिए कोई कार्य नहीं कर सकता। देश चोरी परदेश भीख बराबर है ऐसा कहकर राजा परदेश चला गया वहां जंगल को जाता और लकड़ी काटकर लाता और शहर में बेंचता इस तरह जीवन व्यतीत करने लगा।

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