Brihaspativar Vrat Katha: बृहस्पतिवार को करें इस कथा का पाठ, पूरे होंगे काम
Brihaspativar Vrat Katha: गुरुवार के दिन बृहस्पति देव और भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस कथा का पाठ और श्रवण करने से साधक को तमाम कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। यहां पढ़ें बृहस्पतिवार व्रत कथा।
Brihaspativar Vrat Katha (बृहस्पतिवार कथा)प्राचीन काल में एक अत्यंत शक्तिशाली एवं उदार राज्य था। वह स्वभाव से बहुत परोपकारी और मिलनसार व्यक्ति थे। उन्होंने सदैव न्याय और कर्म का मार्ग अपनाया। लेकिन उनकी रानी को ये सब पसंद नहीं आया। वह न तो व्रत रखता था और न ही दान देता था और राजा को भी ऐसा करने से मना करता था। राजा के जंगल में शिकार खेलने जाने के बाद रानी और उसकी नौकरानी घर पर अकेली रह गईं। तब बृहस्पतिदेव एक बुद्धिमान व्यक्ति का रूप धारण कर राजा के पास भिक्षा मांगने आये। तब रानी ने कहा: “अरे कहो, मैं इन सद्गुणों और सद्गुणों से तंग आ गयी हूँ।” कृपया मुझे इस सारी संपत्ति को नष्ट करने का कोई उपाय बताएं।” मैं आराम से रह सकता हूं और हो सकता है कि मेरे पास नौकरी न हो। रानी की कहानी सुनकर साधु महाराज बोले, हे रानी, तुम कितनी अजीब हो, कुछ लोग संतान और धन होने पर भी दुखी रहते हैं। हालांकि, रानी को बुद्धिमान व्यक्ति की बातों पर यकीन नहीं हुआ और उसने कहा कि उसे ऐसे धन की आवश्यकता नहीं है जिसके प्रबंधन में वह अपना सारा समय लगा सके।
रानी की बात सुनकर ऋषि रूपी बृहस्पतिदेव ने कहा, “यदि तुम चाहती हो तो मैं जैसा तुम्हें बताता हूं तुम वैसा ही करो।” यदि तू सात गुरुवार तक अपने घर को गोबर से लीपना, धोबी में कपड़े धोना, भोजन में मांस-मदिरा खाना आदि कार्य करेगा तो तेरा धन नष्ट हो जाएगा और तू यह कहकर आराम से रह सकेगा कि साधु महाराज अंतर्धान हो गए हैं।
ऋषि की बात माने हुए उसे केवल तीन गुरुवार ही बीते थे और उसकी सारी संपत्ति नष्ट हो गई। इसके बाद राजा के परिवार को भोजन की लालसा हो गई। गरीबी को देखकर राजा एक दिन रानी से कहता है कि मैं परदेस जा रहा हूं क्योंकि यहां सभी लोग मुझे जानते हैं और मैं यहां कोई छोटी-मोटी नौकरी नहीं कर सकता। यह कहकर राजा विदेश चला गया। एक विदेशी देश में, राजा जंगल से जलाऊ लकड़ी काटकर और उसे बेचकर अपना जीवन यापन करने लगा। तब रानी और दासी को राजा के बिना दुःख होने लगा।
वह क्षण आया जब रानी और उसके सेवक को सात दिनों तक बिना भोजन के रहना पड़ा। तब रानी ने अपनी दासी से कहा कि उसकी बहन नगर से अधिक दूर नहीं रहती है। वह बहुत अमीर है, उसके पास जाओ और जीवित रहने के लिए कुछ भोजन मांग लो। दासी रानी की बहन के पास गई। उस दिन गुरुवार था और रानी की बहन बृहस्पति देव की कथा सुन रही थी। जब दासी ने रानी की बहन के पास जाकर उसे समाचार सुनाया तो रानी की बहन ने कोई उत्तर नहीं दिया, जिससे दासी बहुत परेशान और क्रोधित गई।
दासी ने रानी को सारी बात बताई, तब दासी की बात सुनकर रानी ने अपने भाग्य को कोसा। उधर रानी कि बहन से सोचा कि मेरी बहन की दासी आई थी लेकिन मैं उससे नहीं बोली, कथा सुन कर और पूजन समाप्त कर रानी की बहन अपनी बहन के घर आई और कहने लगी, मैं गुरुवार व्रत कर रही थी जब तुम्हारी दासी गई तब मैं कथा सुन रही थी। जब तक कथा होती है तब तक न उठते हैं और न ही बोलते हैं इसलिए नहीं बोली। कहो दासी क्यों आई थी, तब रानी बोली तुम से कुछ छुपा नहीं है हमारे घर खाने को अनाज नहीं है। ऐसे कहते-कहते रानी की आंखें भर आई और उसने अपनी सभी बातें रानी को बता दी। रानी की बहन ने बोला बृहस्पति भगवान सबकी मनोकामना पूर्ण करते हैं। देखो शायद तुम्हारे घर अनाज रखा हो। बहन की बात सुनकर रानी को विश्वास नहीं हुआ। बहन की आग्रह से रानी ने अपनी दासी को रसोई में भेजा तो उन्हें सचमुच एक अनाज से भरा घड़ा मिला।
ये देख दासी को बहुत हैरानी हुई, उसने रानी को सब बता दिया और कहा कि जब हमको अनाज नहीं मिलता है तो हम व्रत करते हैं क्यों न इनसे व्रत और कथा की विधि पूछने जाए ताकि हम भी गुरुवार व्रत कथा करें। तब रानी की अपनी बहन से बृहस्पतिवार के बारे में पूछा रानी की बहन ने बताया कि बृहस्पतिवार के व्रत में चने की दाल और मुनक्का से केले की जड़ में पूजन करें, दीपक जलाएं और व्रत कथा सुने एवं व्रत के दौरान पीला भोजन ही करें, जिससे भगवान प्रसन्न होते हैं और मनोकामना पूर्ण करते हैं। व्रत और कथा की पूजन विधि बता कर रानी की बहन अपने घर लौट गई। एक सप्ताह बाद गुरुवार का दिन आया, तो रानी और दासी ने व्रत रखा। दासी घुड़साल में जाकर व्रत का सामान लेकर आई फिर केले की जड़ एवं विष्णु भगवान की पूजन कर कथा सुनी।
दोनों ने व्रत तो कर ली अब पीला भोजन कहां से आए दोनों बहुत दुखी हुई, लेकिन उन्होंने व्रत किया था इसलिए गुरु भगवान खुश थे। वह एक साधारण व्यक्ति के रूप में दो थालों में सुंदर पीला भोजन लेकर आए और दासी को देकर बोले ये भोजन तुम्हारे लिए और तुम्हारी रानी के लिए है इसे तुम दोनों ग्रहण करना। ऐसे ही रानी और दासी गुरुवार का व्रत और पूजन करने लगी।
गुरु भगवान की कृपा से उनके पास धन संपत्ति आ गई। जिसके बाद रानी फिर से पहले की तरह आलस करने लगी। तब दासी रानी से बोली देखो तुम पहले भी इसी तरह आलस करती थी इसलिए तुम्हें कष्ट होता था, इस कारण सभी धन नष्ट हो गया। अब जब भगवान की कृपा से धन मिला है तो तुम्हें फिर से आलस होता है। बहुत ही मुसीबतों के बाद हमने यह धन पाया है इसलिए हमें दान करना चाहिए और आपको ,भूखे मनुष्यों को भोजन कराना चाहिए प्याऊ लगवाना चाहिए, कुंवारी कन्याओं का विवाह कराना चाहिए। इससे तुम्हारा यश बढ़ेगा और पितृ प्रसन्न होंगे। दासी की बात मानकर रानी शुभ कार्य करने लगी। इससे पूरे नगर में रानी और दासी का यश बढ़ने लगा।
इधर जंगल में राजा दुखी होकर पेड़ के नीचे बैठ गया और अपनी पुरानी बातों को याद करके रोने लगा। तभी गुरु भगवान साधु के रूप में लकड़हारे के पास आए और बोले कि हे, लकड़हारे तू इ सुनसान जंगल में किस चिंता में बैठे हो मुझे बताओ। तब लकड़हारे ने दोनों हाथ जोड़कर साधु से कहा आप सब कुछ जानते हैं। मैं आपसे क्या कहूं ऐसा कहते हुए राजा ने अपनी साधु को अपनी संपूर्ण दशा सुनाई। तब साधु ने उन्हें बताया कि तुम्हारी रानी ने बृहस्पति भगवान का निरादर किया था जिसके कारण तुम्हारी याद दशा हुई है, अब तुम किसी बात की चिंता मत करो तुम्हारे सभी दुख दूर हो जाएंगे और तुम पहले से ज्यादा धनवान हो जाओगे। जीवन में सुख प्राप्ति के लिए बृहस्पतिवार के दिन व्रत कथा करो इससे तुम्हारे दुख दूर होंगे।
इसके लिए तुम गुरुवार के दिन चने और मुनक्का से केला के पेड़ और बृहस्पति भगवान का पूजन और व्रत कथा करो, जिससे तुम्हारे दुख दूर होंगे। साधु की बात सुनकर राजा बोला मुझे लकड़ी बेचकर इतना पैसा नहीं मिलता है जिससे भोजन के उपरांत कुछ बचा सकूं। मैंने रात्रि में अपनी रानी को दुखी देखा है। मेरे पास कोई साधन भी नहीं जिससे मैं उसकी खबर जान सकूं। लकड़हारे की बात सुनकर साधु ने कहा तुम किसी बात की चिंता मत करो तुम रोजाना की तरह लकड़ी लेकर जाना, तुम्हें रोज से दोगुना धन प्राप्त होगा जिससे पूजन के अलावा भोजन भी कर लोगे।
धीरे-धीरे समय व्यतीत होने पर फिर गुरुवार का दिन आया। लकड़हारा जंगल से लकड़ी काट कर शहर में बेचने गया उसे उस दिन और दिनों से अधिक धन मिला। राजा सामान लाकर गुरुवार का व्रत किया, उस दिन से उसके सभी दुख दूर हुए। लेकिन जब अगले गुरुवार का दिन आया तो राजा व्रत करना भूल गया इस कारण गुरु भगवान नाराज हो गए। उस दिन उस नगर के राजा ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया था और शहर के लोगों को अपने घर में भोजन नहीं बनाने का आदेश दिया था। साथ ही यह भी कहा था कि जो भी राजा की आज्ञा को नहीं मानेगा उसे फांसी की सजा दे दी जाएगी। इस तरह राजा की आज्ञा से नगर के सभी लोग भोजन करने गए, लेकिन लकड़हारा कुछ देर से पहुंचा इसलिए राजा उसे अपने साथ ले गए और साथ में भोजन करा रहे थे। तब रानी की दृष्टि उस खूंटी पर पड़ी जिस पर उसका हार लटका हुआ था। उसे हार खूंटी पर दिखाई नहीं दिया। तब रानी ने निश्चय किया कि मेरा हार इस लकड़हारे ने चुरा लिया है। लकड़हारे को कारागार में डलवा दिया गया। कारागार में जाकर राजा बहुत दुखी हुआ और अपनी पुरानी बातों को याद करके रोने लगा।
तभी साधु के रूप में बृहस्पति देव प्रकट हुए और उसकी दशा देखकर कहा तूने बृहस्पति देव की कथा नहीं की है इसी कारण तुझे यह दुख प्राप्त हुआ है। अब किसी प्रकार की चिंता मत कर गुरुवार के दिन तुझे कारागार के दरवाजे पर चार पैसे पड़े मिलेंगे उससे तु बृहस्पतिवार की कथा करना, तेरे सभी कष्ट दूर हो जाएंगे। बृहस्पतिवार के दिन उसे चार पैसे मिले उससे राजा बृहस्पति देव की कथा किया। उस रात बृहस्पति भगवान उस नगर के राजा के स्वप्न में आकर कहा तूने जिस लकड़हारे को कारागार में बंद किया है उसे छोड़ देना वह निर्दोष है। अगर तू ऐसा नहीं करेगा तो मैं तेरा राज्य नष्ट कर दूंगा।
रात्रि में स्वप्न के बाद राजा प्रातकाल उठा और खूंटी पर हार लटका देकर लकड़हारे को बुलाकर क्षमा मांगी एवं सुंदर वस्त्र आभूषण भेंट कर उसे विदा किया। गुरु भगवान की आज्ञा अनुसार राजा अपने नगर को लौट गया। जब राजा नगर के निकट पहुंचा तो उसे पहले से अधिक बाग और धर्मशालाएं दिखी, तब राजा ने नगर वासियों से पूछा की यह किसने बनवाया है तो सभी ने रानी का नाम लिया। यह सुन राजा को बहुत आश्चर्य हुआ और गुस्सा भी आया।
जब रानी ने यह खबर सुनी की राजा आ रहे हैं तब उसने दासी से कहा हे दासी देख राजा हमको कितनी बुरी हालत में छोड़ गए थे। राजा हमारी ऐसी हालत देखकर लौट ना जाए इसलिए तू दरवाजे पर खड़ी हो जा। रानी की आज्ञा अनुसार दासी दरवाजे पर खड़ी हो गई और जब राजा आए तो उन्हें अपने साथ ले आई। तब राजा ने तलवार निकाली और रानी से पूछा कि तुम्हें यह धन कैसे प्राप्त हुआ? तब रानी ने कहा यह सब धन संपत्ति हमें गुरु भगवान की कृपा से प्राप्त हुआ है। रानी की बात सुनकर राजा ने निश्चय किया कि हर दिन गुरु भगवान का व्रत करेगा और दिन में तीन बार कहानी कहेगा। अब हर समय राजा के दुपट्टे में चने की दाल बंधी रहती और दिन में तीन बार कहानी कहता।
एक रोज राजन विचार किया चलो अपनी बहन के यहां हो आए। इस तरह का राजा घोड़े पर सवार हो अपनी बहन के यहां चल दिया। उसने देखा कि कुछ आदमी एक मुर्दे को लिए जा रहे हैं। तब राजा ने उन्हें रोक कर कहा अरे भाइयों मेरी बृहस्पतिवार की कथा सुन लो, तब कुछ ने कहा लो हमारा तो आदमी मर गया है और इसको अपनी कथा की पड़ी है, लेकिन कुछ ने कहा अच्छा कहो हम तुम्हारी कथा सुनेंगे। राजा ने दाल निकाली और कथा शुरू की। जब कथा आधी हुई तो मुर्दा हिलने लगा और जब कथा समाप्त हुई तो राम-राम कहते हुए मुर्दा खड़ा हो गया।
राजा आगे बढ़ा तो उसे एक किसान खेत में हल चलाता मिला। राजा ने उससे कथा सुनने का आग्रह किया लेकिन किसान नहीं माना। राजा आगे बढ़ा, राजा के हटते ही बैल पछाड़ खाकर गिर गए और किसान के पेट में जोर से दर्द होने लगा। थोड़ी देर में जब किसान की मां रोटी लेकर आई तब उसने अपने पुत्र से सभी हाल पूछा तो बेटे ने बता दिया। तब बुढ़िया दौड़ी-दौड़ी राजा के पास गई और कहने लगी मैं तेरी कथा सुनुंगी तू अपनी कथा मेरे खेत पर चलकर कहना। राजा लौट कर कथा कही जिसे सुनकर बैल खड़े हो गए और किसान के पेट का दर्द बंद हो गया।
राजा अपनी बहन के घर पहुंच गया, बहन के भाई की खूब मेहमानी की। दूसरे रोज जब राजा जागा तो वह देखने लगा कि सब लोग भोजन कर रहे हैं, तब राजा ने अपनी बहन से पूछा ऐसा कोई मनुष्य है जिसने भोजन नहीं किया हो तब बहन बोली हे भैया यह देश ऐसा ही है पहले यहां के लोग भोजन करते हैं बाद में अन्य काम करते हैं। ऐसा कह कर बहन चली गई और सबसे पूछने लगी कि कोई ऐसा है जिसने भोजन नहीं किया हो, तब वह एक कुम्हार के घर गई जिसका लड़का बीमार था, उसे मालूम हुआ कि वहां किसी ने 3 दिन से भोजन नहीं किया है। रानी ने कुम्हार से अपने भाई की कथा सुनने के लिए आग्रह किया तो वह तैयार हो गया। राजा जाकर अपनी कथा कही जिसको सुनकर उसका लड़का ठीक हो गया। अब तो राजा की प्रशंसा होने लगी थी। एक दिन राजा ने अपनी बहन से कहा बहन मैं अपने घर जाऊंगा तुम भी तैयार हो जाओ। राजा की बहन ने अपने सास से भाई के साथ जाने की आज्ञा मांगी। तब उसकी सास बोली चली जा लेकिन अपने लड़के को मत ले जाना क्योंकि तेरे भाई की कोई संतान नहीं है। बहन ने अपने भाई से कहा हे भैया मैं तो चलूंगी परंतु कोई बालक नहीं जाएगा। तब राजा ने अपनी बहन से कहा जब कोई बालक नहीं जाएगा तो तुम ही चलकर क्या करोगी। राजा दुखी मन से नगर को लौटा और रानी को सब बात बता दिया। तब रानी ने कहा बृहस्पति भगवान ने हमें सब कुछ दिया है वह हमें संतान अवश्य देंगे।
उसी रात बृहस्पति देव ने राजा को सपने में कहा हे राजा उठ सभी सोच त्याग दे तेरी रानी गर्भवती है। भगवान की बात सुनकर राजा बहुत खुश हुआ। नवे महीने में रानी के गर्भ से एक सुंदर पुत्र पैदा हुआ। तब राजा रानी से बोला हे रानी स्त्री बिना भोजन के रह सकती हैं लेकिन बिना कहे नहीं। इसलिए जब मेरी बहन आए तो तुम उसे कुछ मत कहना। रानी ने हां कर दी और जब राजा की बहन ने ये शुभ समाचार सुना तो बहुत खुश हुई और अपने भाई के यहां बधाई लेकर आई। तब रानी बोली घोड़ा चढ़कर तो नहीं आई गधा चढ़ी आई तब राजा की बहन बोली भाभी अगर मैं इस प्रकार ना कहती तो तुम्हें औलाद कैसे होती। बृहस्पति भगवान ऐसे ही हैं वो सबकी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं, जो सद्भावना पूर्वक बृहस्पतिवार का व्रत रखता है, कथा पढ़ता है, सुनता है एवं दूसरों को सुनाता है गुरु भगवान आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। कथा सुनने के बाद प्रसाद लेकर ही जाना चाहिए नहीं तो भगवान का अपमान होता है।
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