Seven Chiranjeevi: सात चिरंजीवियों में है रावण का ये भाई भी शामिल, पढ़ें क्यों मिला था ये वरदान

Seven Chiranjeevi: धरती पर सात चिरंजिवियों में शामिल हैं रावण के छोटे भाई। भगवान श्रीराम ने दिया था उन्हें वरदान। हनुमान जी तरह ही भक्त थे श्रीराम के। भक्तमाल की कथा के अनुसार अमर भक्त हैं विभीषण। यहां पढ़ें विभीषण को मिले चिरंजिवी रहने के वरदान की कहानी और इस दौरान की खास बातें।

Seven Chiranjeevi: सात चिरंजीवियों में है रावण का ये भाई भी शामिल, पढ़ें क्यों मिला था ये वरदान
मुख्य बातें
  • दशानन रावण के भाई हैं विभीषण
  • हनुमान जी की तरह हैं वे चिरंजीवी
  • भगवान श्री राम ने दिया था वरदान

Seven Chiranjeevi: दशानन रावण का नाम आते ही उनके पूरे वंश के बारे में यही विचार मन में कौंधता है कि एक दुष्ट वंश लेकिन जैसे कीचड़ में कमल खिलता है वैसे ही दुराचारी समाज में भी सदाचारी व्यक्तित्व भी निखर सकता है। जैसे रावण के भाई विभीषण।

प्रारब्धाें के कारण भले ही विभीषण को राक्षस कुल में जन्म लेना पड़ा था लेकिन वैष्णव भक्त ही बने। उन्होंने निष्काम भक्ति कर भगवान की शरण प्राप्त की थी। प्रातः स्मरणीय सात चिरंजीवियों में भक्त विभीषण भी हैं और वे अभी तक वर्तमान में भी जीवित हैं। आइये जानते हैं आखिर क्यों मिला था उन्हें चिरंजीवी होने का वरदान।

विभीषण ने मांगा था भक्ति का वरदान

पुलस्त्य पुत्र विश्रवा थे। विश्रवा के सबसे बड़े पुत्र कुबेर थे जिन्हें ब्रह्माजी ने चतुर्थ प्रजापति बनाया। विश्रवा के एक असुर कन्या से रावण, कुम्भकर्ण और विभीषण तीन पुत्र हुए। तीनों ने ही घाेर तप किया। उनकी उग्र तपस्या देखकर ब्रह्माजी उनके सामने प्रकट हुए। वरदान मांगने को कहा। रावण ने तीनों लोक विजय होने का वरदान मांगा, कुंभकर्ण ने छह माह नींद मांगी लेकिन विभीषण ने कुछ भी नहीं मांगा। उन्होंने ब्रह्माजी से कहा कि मुझे सिर्फ भगवत भक्ति ही प्रदान करें। इस तरह विभीषण ने अपने भाइयों से अलग ही मार्ग वरदान स्वरूप मांग लिया। जिसके फलस्वरूप उन्हें भगवान श्रीराम की शरण मिली।

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इस तरह हुए विभीषण चिरंजीवी

माता सीता के हरण के बाद रावण को विभीषण ने खूब समझाया था। कहा कि दूसरे की स्त्री को इस तरह हर लाना ठीक नहीं। तुम समझते नहीं, श्रीराम साक्षात परब्रह्म परमात्मा हैं। किंतु रावण ने उनकी बात नहीं मानी। फिर जब हनुमान जी माता सीता की खाेज में लंका गए तब विभीषण ने ही उन्हें माता का पता बताया था। युद्ध में श्रीराम को रावण की नाभि में बाण मारकर कुंभ कलश नष्ट करने का भेद भी विभीषण ने ही दिया था। जब श्रीराम− रावण युद्ध में रावण मारा गया तब विभीषण को लंका का राज्य मिला। उन्होंने वानर− भालुओं का खूब सत्कार किया, जो श्रीराम की सेना में थे। पुष्पक विभान पर चढ़ाकर वे श्रीराम को अवधपुरी तक पहुंचाने गए। वहां भगवान ने गुरुजनों से विभीषण को अपना प्रिय सखा बताकर बड़ी प्रशंसा की। भगवान ने विभीषण का बड़ा सम्मान किया और तभी अजर− अमर होने का आशीर्वाद दिया।

(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)

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