Budh Pradosh Vrat 2024 Katha: बुध प्रदोष व्रत के दिन करें इस कथा का पाठ, सारी मनोकामना होगी पूरी

Budh Pradosh Vrat 2024 Katha: बुध प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव की पूजा की जाती है। इस दिन का व्रत रखने से साधक को मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। इस दिन बुध प्रदोष व्रत की कथा का पाठ करना शुभ होता है। यहां पढ़ें बुध प्रदोष व्रत कथा।

Budh Pradosh Vrat 2024

Budh Pradosh Vrat 2024 Katha (बुध प्रदोष व्रत कथा): हर मास की शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष का व्रत रखा जाता है। ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की त्रियोदशी तिथि का 19 जून को पड़ रही है। ऐसे में इस साल ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष का प्रदोष व्रत 19 जून 2024 को रखा जाएगा। बुध प्रदोष का व्रत रखने से साधक को मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने से साधक की कुंडली में बुध ग्रह की स्थिति मजबूत होती है। इस दिन कथा का पाठ करने से साधक की सारी मनोकामना की पूर्ति होती है।

राहु नक्षत्र परिवर्तन

Budh Pradosh Vrat 2024 Katha (बुध प्रदोष व्रत कथा)

पौराणिक कथा के अनुसार किसी नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी। वो अपना जीवन भिक्षा मांगकर यापन किया करती थी। एक दिन ब्राह्मणी संध्या के समय में अपने घर लौट रही थीं, तो राह में वृद्ध ब्राह्मणी को दो बालक खेलते हुए नजर आए। उस समय ब्राह्मणी ने इधर-उधर देखा। जब बालक के समीप उसके कोई नजर ना आया तो उस बच्चे को वो अपने घर ले गई थी।

दोनों बालक वृद्ध ब्राह्मणी का प्रेम पाकर आनंदित हो उठें। समय के साथ दोनों बच्चे बड़े हो गए। दोनों लड़के वृद्ध ब्राह्मणी के काम में हाथ भी बांटाते थे। जब दोनों लड़के बड़े हो गए, तो ब्राह्मणी ऋषि शांडिल्य के पास जाकर अपनी सारी बात सुनाई। उस समय दिव्य शक्ति से दोनों बालकों का भविष्य जानकर ऋषि शांडिल्य बोले- ये दोनों बालक विदर्भ के राजकुमार हैं। बाहरी आक्रमण के कारण इनका राजपाट छीन गया है। जल्द ही इन लोगों को इनका खोया हुआ राज्य वापस मिल सकता है। इसके लिए तुमको प्रदोष व्रत रखना होगा। अगर बच्चे कर सकते हैं, तो उनको भी प्रदोष व्रत करने की सलाह दो।

ऋषि शांडिल्य के वचनों का पालन कर वृद्ध ब्राह्मणी ने प्रदोष व्रत किया। उन्हीं दिनों बड़े लड़के की मुलाकात वहां के स्थानीय राजा की राजकुमारी से हुई। दोनों एक दूसरे से प्रेम करने लगे। यह जानकारी राजा को हुई, तो राजा ने विदर्भ राजकुमार से मिलने की इच्छा व्यक्त की। कालांतर में विदर्भ के राजकुमार से भेंट के बाद राजा ने विवाह की आज्ञा दे दी। विवाह के बाद दोनों राजकुमारों ने अंशुमति के पिता की मदद से विदर्भ पर हमला कर दिया। इस युद्ध में विदर्भ नरेश को करारी हार का सामना करना पड़ा। दोनों राजकुमारों को विदर्भ पर शासन करने का पुनः अवसर मिला। राजकुमारों ने वृद्ध ब्राह्मणी को प्रणाम कर अपने राज्य में अपना स्थान दिया। साथ ही वृद्ध ब्राह्मणी को मां का स्थान दिया। वृद्ध ब्राह्मणी ने आजीवन प्रदोष व्रत करने की ठानी

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