Budh Pradosh Vrat Katha: बुध प्रदोष व्रत के दिन पूजा के समय पढ़ें ये कथा, शिव जी की बनेगी कृपा
Budh Pradosh Vrat Katha: सनातन धर्म में प्रदोष व्रत का बहुत महत्व होता है। ये व्रत महीने में दो बार आता है। इस व्रत को त्रयोदशी तिथि के दिन रखा जाता है। इस कारण इसे त्रयोदशी व्रत भी कहते हैं। इस व्रत के दिन भगवान शिव जी की पूजा का विधान है। आइए जानते हैं बुध प्रदोष व्रत की कथा के बारे में।

Budh Pradosh Vrat Katha
Budh Pradosh Vrat Katha: प्रदोष व्रत पूरी तरह से भगवान शिव को समर्पित है। ये व्रत त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है। इस पूरे विधि- विधान से भगवान शिव की पूजा की जाती है। इस दिन प्रदोष काल में पूजा करना शुभ माना जाता है। इस कारण इसे प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाता है। बुधवार के दिन प्रदोष व्रत रखने से बुध प्रदोष व्रत कहा जाता है। आज यानि 11 अक्टूबर को आश्विन मास का पहला बुध प्रदोष व्रत रखा जा रहा है। इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से साधक की सारी मनोकामना की पूर्ति होती है। इस बार बुध प्रदोष व्रत 11 अक्टूबर को शाम के बजकर 37 मिनट पर शुरू होगा। बुध प्रदोष व्रत की पूजा के लिए शुभ समय 11 अक्टूबर को शाम 6 बजे से लेकर रात 8 बजे तक रहने वाला है। आइए जानते हैं इस व्रत की कथा के बारे में।
बुध प्रदोष व्रत कथा ( Budh Pradosh Vrat Katha)
प्राचीन समय में एक ब्राह्मणी थी जो अपने पति की मृत्यु के बाद भिक्षा मांगकर अपना जीवन यापन करती थी। एक दिन जब वह वहां से लौट रही थी तो उसने रास्ते में दो बच्चों को देखा और उन्हें अपने घर ले आई। जब दोनों बच्चे बड़े हो गए तो ब्राह्मणी दोनों बच्चों को लेकर शांडिल्य ऋषि के आश्रम में गई। जहां ऋषि शांडिल्य ने तपो की शक्ति से बच्चों के बारे में पता कर लिया और कहा "हे देवी!" दोनों बच्चे विदर्भ साम्राज्य के राजकुमार हैं। राजा गंधर्भ के आक्रमण के कारण उनके पिता से राज्य छीन लिया गया। ब्राह्मणों और राजकुमारों ने शीघ्र ही विधि-विधान से प्रदोष व्रत का आयोजन किया। फिर एक दिन बड़े राजकुमार की मुलाकात अंशुमती से हुई और वे दोनों प्रेम करने लगे। तब अंशुमती के पिता ने राजकुमार की सहमति से उससे विवाह कर लिया। तब दोनों राजकुमारों ने गंधर्भ पर आक्रमण किया और विजयी हुए। आपको बता दें कि इस युद्ध में अंशुमती के पिता ने राजकुमारों की मदद की थी। दोनों राजकुमारों को अपना राजपाट वापस मिल गया और गरीब ब्राह्मण को भी एक विशेष स्थान दिया गया, जिससे उनकी सारी पीड़ाएं समाप्त हो गईं। उनकी राजगद्दी पर वापसी का कारण प्रदोष व्रत था, जिसके प्रभाव से उन्हें जीवन में धन और सुख की प्राप्ति हुई। तब से ही प्रदोष व्रत करने की परंपरा हो गई है। जो भी साधक सच्चे मन से प्रदोष व्रत करता है उसकी हर इच्छा पूरी होती है।
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