Chandra Grahan Katha 2024 In Hindi: चंद्र ग्रहण क्यों लगता है, जानिए इसके पीछे की कथा

Chandra Grahan Katha 2024 In Hindi: चंद्र ग्रहण लगना एक खगोलिय घटना मानी जाती है। इसका धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों ही महत्व होता है। आइए जानते हैं चंद्र ग्रहण लगने की पीछे की कहानी के बारे में।

Chandra grahan katha
Chandra Grahan Katha 2024 In Hindi: साल 2024 का आखिरी चंद्र ग्रहण 18 सितंबर 2024 को लगने जा रहा है। इस साल का पहला चंद्र ग्रहण 25 मार्च, 2024 को लगा था। अब साल का दूसरा चंद्र ग्रहण लगेगा। ये इस साल का अंतिम चंद्र ग्रहण रहेगा। वैज्ञानिकों के अनुसार जब सूर्य और चंद्रमा के बीच पृथ्वी आ जाती है। उस समय में चंद्र ग्रहण लगता है। साल के आखिरी चंद्र ग्रहण का असर भारत में दिखाई नहीं देगा। ये भारत में मान्य नहीं होगा। 18 सितंबर के चंद्र ग्रहण भारत के समय के अनुसार सुबह 06.11 बजे से लेकर 10 बजकर 17 मिनट तक रहने वाला है। चंद्र ग्रहण लगने के पीछे वैज्ञानिक कारण तो होता है, लेकिन इसके पीछे पौराणिक कथा भी प्रचलित है। ऐसे में आइए जानते हैं चंद्र ग्रहण की कहानी के बारे में।

Chandra Grahan Katha 2024 In Hindi (चंद्र ग्रहण की कथा 2024)

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार सारे देवता और दानवों ने मिलकर समुद्र का मंथन किया था। समुद्र मंथन के दौरान समुद्र में से अमृत और विष दो कलश की प्राप्ति हुई थी। विष का धारण भगवान शिव ने अपने कंठ में किया था। वहीं अमृत पान के लिए देवताओं और दानव में होड़ मची थी। दानव अमृत का पान करके अमर होना चाहते थे, लेकिन भगवान विष्णु देवताओं को अमर करना चाहते थे। देवताओं को अमृत पिलाने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी का रुप धारण किया। भगवान विष्णु के मोहिनी रूप को देखर सारे दानव मंत्र मुग्ध हो गए। मोहिनी रूप में भगवान विष्णु देवताओं को अमृत पिला रहे थे कि तभी राहु नामक दानव देवताओं का रूप धारण करके अमृत पीने के लिए देवताओं की पंक्ति में बैठ गया। इसकी वजह से मोहिनी ने राहु को देवता समझकर अमृत पिला दिया।
राहु के असली वेश को सूर्य देव और चंद्र देव पहचान गए और उन्होंने भगवान विष्णु से राहु का असली रूप बता दिया। राहु के सच का पता चलते ही विष्णु जी ने अपने सुदर्शन चक्र से राहु की गर्दन काट दी, परंतु अमृत पाने के कारण उसकी मृत्यु नहीं हो पाई और उसका शरीर दो हिस्सों में बंट गया। एक हिस्सा राहु और दूसरा केतु बना ये दोनों ही उपग्रह माने जाते हैं। इस घटना के बाद से राहु और केतु सूर्य और चंद्रमा को अपना शत्रु मानते हैं। जिसके कारण पूर्णिमा के दिन राहु चंद्रमा को अपनी छाया से ग्रसित कर देते हैं। जिसके कारण चंद्र ग्रहण लगता है।
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