राम नाम की महज पांच माला जोड़ सकती हैं ब्रह्मांड की ऊर्जाओं से, एक बार नाम लेना ही देता है अद्भुत परिणाम
सनातन धर्म के शाेध के अनुसार “रा” शब्द की आवृति राम रूप में करने से हमारा संबंध चार सौ छियानवे सेकंड में ब्रह्मांड से हो जाता है। राम नाम लोक और परलोक दोनों का सुख प्रदान करता है। शास्त्रों में राम नाम काे ही महाशक्ति का महासूत्र कहा गया है।
ब्रह्मांड की उर्जाओं से जोड़ता है राम का नाम।
- राम नाम भक्ति के साथ शक्ति भी करता है प्रदान
- सूर्य और चंद्रमा की उर्जाओं से सीधा जुड़ा राम नाम
- राम, एक शब्द नहीं बल्कि दो वर्णों का महामंत्र है
Mantra Laabh: राम नाम भजो तो बन जाते हैं बिगड़े काम, राम नाम भजो तो मिट जाते हैं सारे पाप, राम नाम भजो तो मानव देह हो जाती सफल, राम नाम भजो तो मृत्यु के बाद के जीवन में मिलता सुफल। राम नाम, मात्र एक नाम नहीं है। राम नाम अपने आप में संपूर्ण मंत्र है। वो मंत्र जो जोड़ता है ब्रह्मांड की उर्जाओं से। राम नाम पर शाेध करने वाले डॉ जे जोशी के अनुसार राम नाम मंत्र की पांच माला यानी प्रतिदिन 540 बार राम नाम मंत्र का जाप करने से चमत्कारी लाभ प्राप्त होते हैं। इसके पीछे सिर्फ आस्था या विश्वास ही नहीं बल्कि इसके पीछे छुपा है गहन विज्ञान भी। आइये जानें इसके महत्व को।
“रा” और सूर्य की उर्जाओं का संबंध
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राम के “राम” के “रा” बीज की ऊर्जा से भी ग्रह एवं उपग्रह बंधे हुए हैं। सूर्य ऊर्जा का स्त्रोत है और “रा” उस ऊर्जा की कुंजी है। हाइड्रोजन के नाभिकीय संलयन में ऊर्जा की उत्पत्ति के समय सूर्य शक्ति का उद्भव लगातार चलता रहता है। इस समय मूल स्त्रोत स्थान से “रा” शब्द की आवृत्ति का स्पन्दन जाग्रत होता है। यह शब्द ग्रहों के चक्रों को बांधकर पृथ्वी पर होने वाले परिवर्तनों का संचारण करता है एवं जीवन की मूलभूत शक्तियां इससे पोषित होती हैं। ग्रह अपने प्रभावों से ऋतुओं का चक्र चलाते हैं ये ऋतु चक्र पवन, वर्षा, धूप, प्रृकति प्राणी मात्र के लिए अर्पण करते हैं।
सूर्य से प्रकाश विकिरण और ऊष्मा आने में लगभग आठ मिनिट सोलह सेकंड विज्ञान के मतानुसार लगते हैं अर्थात चार सौ छियानवे सेकंड में सूर्य ऊष्मा पृथ्वी पर चराचर में पहुंच जाती है। अतः “रा” शब्द की आवृति राम रूप में करने से हमारा संबंध चार सौ छियानवे सेकंड में ब्रह्मांड से हो जाता है। इस दौरान यदि राम नाम जप की पांच माला भी स्थिर मन से की जाएं तो समस्त ऊर्जाओं के नियमित स्त्रोत का संचरण हमारे शरीर में होना संभव है।
“म” और चंद्रमा की उर्जाओं का संबंध
राम के दूसरा बीज “म” चंद्रमा का द्योतक है। “हेतुकृसानु भानु हिमकर को” “रा” ब्रह्मांड का महाराज है और “म” हिमकर (चंद्रमा) पृथ्वी का उपग्रह है। पृथ्वी सूर्य का चक्कर पूरा करती है। शीतल मधुर और शांतिप्रद प्रकाश की निर्मलता से पृथ्वी वासियों को सुख शांति और वैभव का संदेश देता है।
यह “म” का द्योतक चंद्रमा बीजों को पोषण देता है। औषधियों में रस प्रवेश करवाता है। जीवन रेखा को संजोता है। पुष्पों के मकरकंद इसी के प्रभाव से बनते हैं। जीवन की सारी सरसता आनंद, सुख के संचार का माध्यम है। इसलिये उसे विज्ञान की भाषा में भी पृथ्वी का प्राकृतिक उपग्रह कहा जाता है।
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तुलसीदास जी ने वर्णिम की है राम नाम की महिमा
“राम” के दोनों बीज जीवन के अमृत बनकर ब्रह्मांड से पृथ्वी तक अमृत पुंज बनाते हैं। दोनों ही के माध्यम से संसार का जीवन चलता है इसलिये तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में राम नाम के गुण का बखान करते हुए लिखा है−
ब्रह्म राम ते नाम बड़ वरदायक वरदानि।
रामचरित सत कोटि महं लिय महेस जियाजानि।।
यह राम का नाम निर्गुण और सगुण दोनों से बड़ा है। यह वरदान देने वालों को भी वर देने वाला है। श्री शिवजी ने इसके महत्व को पहचान कर साै करोड़ राम चरित्र में से इसे चुनकर धारण किया है।
डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।
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