Chhath Puja 2022: छठ त्योहार नहीं, बिहारियों के लिए है यादों का संसार, जानिए कब से शुरू होगा ये महापर्व
Chhath Puja 2022 Date: भारत को त्योहारों का देश कहा जाता है, हर राज्य का अपना एक मुख्य त्योहार है..जैसे बंगाल का दुर्गा पूजा, गुजरात की नवरात्रि, महाराष्ट्र का गणेश उत्सव और बिहार का छठ।
Chhath Puja 2022: इस साल ये पर्व 28 अक्टूबर 2022 से शुरू होगा और 31 अक्टूबर 2022 तक चलेगा।
Chhath Puja 2022 In Bihar: दिवाली के बाद पूरे देश में त्योहारों का अंत हो जाता है। मगर दिवाली के अंत के साथ होती है महापर्व छठ की तैयारियों की शुरुआत। 4 दिनों तक चलने वाले लोक आस्था के महापर्व छठ के बारे में अब देश ही नहीं बल्कि विदेश के लोग भी जानते हैं। आधुनिकता की दौड़ में शायद यही वो त्योहार है जो जरा भी नहीं बदला, शायद इसलिए ही इसे महापर्व कहा जाता है।
Chhath Puja 2022 Dates
इस साल छठ पूजा का महापर्व 28 अक्टूबर 2022 से शुरू हो रहा है। कार्तिक माह की चतुर्थी तिथि को पहले दिन नहाय खाय, दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन डूबते सूर्य और चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इस साल ये पर्व 28 अक्टूबर 2022 से शुरू होगा और 31 अक्टूबर 2022 तक चलेगा। 28 अक्टूबर को नहाय खाय होगा। 29 अक्टूबर को खरना होगा। 30 अक्टूबर को डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा और 31 अक्टूबर को उगते सूर्य को अर्घ्य देकर इस पर्व का समापन किया जाएगा।
छठ पर्व का महत्व (Chhath Festival Significance)
अपने राज्य से बाहर रहने वालों के लिए छठ केवल एक त्योहार नहीं है, यादों का पूरा संसार है.. ऐसा क्यों कह रहे हैं आगे बताते हैं। 'कांच ही बांस के बहंगिया.. बहंगी लचकत जाए' जो लोग महापर्व के बारे में नहीं ज्यादा जानते ये उनके लिए ये कोई गीत हो सकता है मगर ठेकुए का स्वाद लेकर बड़े हुए लाखों युवाओं को लगता है जैसे घर लौटने के लिए कोई अपना पुकार रहा है।
घर नहीं बल्कि छठ में गांव-समाज बुलाता है: दशहरा-दिवाली खत्म होते ही छठ की तैयारी शुरू हो जाती है, पढ़ाई या काम की वजह से गांव छोड़ चुके लड़कों के पास बचपन के यार-दोस्त भी फोन कर पूछते हैं,'छठ के लिए कब आ रहे हो..अभी घाट बनाने का काम भी शुरू नहीं हुआ है, जल्दी आओ' । बचपन की यादों में एक याद घाट को कायदे से बनाने की भी होती है, पढ़ाई में कमजोर युवा भी घाट बनाने का माहिर हो सकता है.. सीढ़ी ऐसी हो कि व्रतियों को दिक्कत ना हो, डाला और सूप ठीक से रखा जाए इत्यादि।
एकता का एहसास ही छठ है, इस महा अनुष्ठान में किसी पंडित-पुरोहित की जरूरत नहीं होती। घाट पर जब लोग एक दूसरे के बगल में 'दाउरा' रखते हैं तो कोई किसी की जाति नहीं पूछता। 'रहिमन वे नर मर चुके, जे कहुँ माँगन जाहिं..' रहीम ने मांगने को बुरा कहा है और समाज में भी मांगने को अच्छा नहीं माना जाता मगर छठ में प्रसाद मांगकर खाना नसीब से ही नसीब होता है।
घर से दूर रहने वाले जब दशहरा-दिवाली की छुट्टी की कुर्बानी देकर भी अपने गांव-घर नहीं जा पाते छठ उनसे भी नहीं छूटता और छूट भी कैसे सकता है। छठ का प्रसाद उनके महानगर में उन्हें ढूंढते हुए उनतक पहुंच ही जाता है।
छठ को लेकर इसलिए रहते हैं अति उत्साही: अक्सर लोग बिहार के लोगों से कहते हैं,' तुम लोग छठ को लेकर बेकार में ही अति उत्साही रहते हो', उन्हें कौन समझाए कि सालों पहले गांव छोड़ चुके लोगों के लिए बहाना है गांव लौट जाने का.. छठ बहाना है नहाए-खाए वाले कद्दू भात को खाने का, जिसका स्वाद साल के किसी और दिन नहीं मिलता। छठ बहाना है 36 घंटे का निर्जला व्रत करती मां के सामने जाकर खड़े हो जाने का,जिसको अपने बेटे का इंतजार है।
जिन चीजों को पूरे साल हम नहीं पूछते, जिनका इस्तेमाल नहीं करते, कच्ची हल्दी, सुथनी और गागर नींबू जैसी ढेरों चीजों को छठ ने खुद में समाहित किए रखा है। समूची दुनिया में उगते सूर्य की उपासना की जाती है, वहीं सिर्फ छठ ही है जिसमें हम डूबते हुए सूर्य को भी श्रद्धा के साथ पूजते हैं, उन्हें अर्घ्य अर्पित करते हैं। अर्घ्य देने के लिए व्रती जब गंगा में उतरती है तो वो भगवान भास्कर से अपने लिए नहीं कुछ नहीं और परिवार के लिए सबकुछ मांगती है। जाड़े की आहट के बीच उगते सूर्य को अर्घ्य देने लिए लिए व्रती नदी में खड़ी होकर सृष्टि के एकमात्र प्रत्यक्ष देव सूर्य का इंतजार करती है, वो जानती है कि भले ही सूर्य देर से आए मगर हमेशा अपनी कृपा उनपर बनाए रखेंगे।
भविष्य की जरूरत है छठ पूजा: आधुनिकता के दौर में दुनिया हर पल बदल रही है, घर 2BHK और जहां भर की जानकारी मोबाइल तक सीमित हो गई है। ऐसे में छठ भावी पीढ़ी को ये बताएगा कि घर अपार्टमेंट के फ्लैट को नहीं कहते, छठ उन्हें गांव ले जाएगा और अपनों से मिलवाएगा।
'रुनकी झुनकी बेटी मांगी ला..' सबसे कठिन व्रतों में एक छठ करने वाली व्रती छठी मइया से सोना-चांदी नहीं बल्कि बेटी मांगती है। आप ही बताइए क्या है कोई दूसरा ऐसा व्रत जहां समाज में संतुलन बनाए रखने के लिए पूजा होती हो।
आज जिस स्वच्छता अभियान की बात होती है, सदियों से वह छठ पूजा की आत्मा है। छठ मनाइए और नदी बचाइए क्योंकि अगर नदी नहीं होगी तो छठ का गीत 'घुटी भर धोती भींजे' कैसे बजेगा।
शनि मिश्रा की रिपोर्ट
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बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से पत्रकारिता के गुर सीखे हैं। मीडिया में करीब 5 साल का अनुभव अर्जित करते हुए अब TIMES NOW नवभारत का हिस्सा हूं। सोशल मीडिया...और देखें
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