Chhath Puja 2022: छठ पूजा पर जरूर सुनें राजा प्रियव्रत से जुड़ी ये पौराणिक कथा
Chhath Puja Vrat Katha: 28 अक्टूबर के चार दिवसीय छठ पर्व की शुरुआत होने वाली है। छठ पर्व में सूर्यदेव की उपासना की जाती है। वैसे तो छठ पर्व को लेकर कई पौराणिक कथाएं हैं, लेकिन राजा प्रियव्रत से जुड़ी कथा सबसे प्रचलित मानी जाती है।
28 अक्टूबर 2022 से हो रही चार दिवसीय छठ पर्व की शुरुआत
भगवान राम, माता सीता और द्रोपदी ने भी रखे थे छठ व्रत
Chhath Puja 2022 Katha: कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाने वाला छठ पर्व हिंदुओं का प्रमुख त्योहार है। जोकि विशेषकर बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, झारखंड और नेपाल में मनाया जाता है। छठ पर्व की शुरुआत नहाय खाय से होती है और उषा अर्घ्य के साथ पर्व संपन्न होता है। इस साल छठ पर्व की शुरुआत 28 अक्टूबर 2022 से हो रही है जोकि 31 अक्टूबर 2022 को समाप्त होगी। मान्यता है कि छठ पर्व वैदिक काल से मनाया जा रहा है।
लोक आस्था के महापर्व छठ से जुड़ी वैसे तो कई कहानियां प्रचलित हैं। यहां तक कि छठ पर्व की कथा का वर्णन महाभारत और रामायण में भी मिलता है। कथाओं के अनुसार भगवान राम और माता सीता से लेकर द्रोपदी ने भी छठ व्रत किए थे। लेकिन राजा प्रियव्रत से जुड़ी छठ व्रत की कथा सबसे अधिक प्रचलित मानी जाती है। जानते हैं इस कथा के बारे में।
छठ व्रत की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, राजा प्रियव्रत और उसकी पत्नी को कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्ति की इच्छा से राजा और उसकी पत्नी महर्षि कश्यप के पास गए। महर्षि कश्यप ने राजा को यज्ञ कराने
को कहा। यज्ञ करने के फलस्वरूप राजा की पत्नी गर्भवती हो गई। लेकिन गर्भकाल पूरा होने के बाद रानी ने एक मरे हुए पुत्र को जन्म दिया। इससे राजा प्रियव्रत और रानी दुखी हो गए। राजा प्रियव्रत ने तो स्वयं के प्राण त्याग आत्महत्या करने का निश्चय तक कर लिया।
राजा प्रियव्रत जैसे ही अपने प्राण त्यागने जा रहे थे तभी एक देवी प्रकट हुईं। देवी ने कहा कि वह मानस पुत्री देवसेना है जो सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं। यह देवी और कोई नहीं बल्कि षष्ठी देवी थीं। उन्होंने राजा से कहा कि तुम मेरी अराधना करोगे तो मैं तुम्हें फिर से पुत्ररत्न प्रदान करूंगी।
राजा ने देवी के कहे अनुसार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को विधि-विधान से व्रत रखकर देवी षष्ठी की पूजा की। व्रत और पूजन से देवी षष्ठी ने प्रसन्न होकर पुत्र का आशीर्वाद दिया। इसके बाद से ही कार्तिक शुक्ल षष्ठी को छठ पूजा की परंपरा की शुरुआत हुई।
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