Chhath Puja 2022: इस कारण मनाया जाता है छठ पर्व, बेहद रोचक है इतिहास
Chhatt Puja 2022: छठ पर्व कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है। लोकआस्था का महापर्व छठ पूजा का इतिहास काफी पुराना है। पौराणिक कथाओं के अनुसार सतयुग और त्रेतायुग से ही छठ पर्व मनाया जा रहा है। कहा जाता है कि भगवान राम और माता सीता से लेकर द्रौपती ने भी छठ व्रत रखा था।

जानें छट पूजा का इतिहास
- त्रेतायुग और सतयुग के समय से ही हुई थी छठ की शुरुआत
- कार्तिक माह के शुक्लपक्ष षष्ठी को रखा जाता है छठ व्रत
- माता सीता ने भी छठ व्रत रखकर की थी सूर्यदेव की उपासना
Chhath Puja 2022 Significance and History: हिंदू धर्म में कई तीज-त्योहार मनाए जाते हैं। भारत के एक बड़े भूभाग जैसे कि बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में छठ महापर्व को धूमधाम से मनाया जाता है। यह हिंदुओं का प्रमुख और लोकप्रिय त्योहार है जिसकी धूमधाम और आस्था देशभर में देखने को मिलती है। इसे केवल भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी भारतीय मूल के लोगों द्वारा मनाया जाता है। महापर्व छठ के इतिहास के बारे में बात करें तो, छठ पर्व सतयुग और त्रेतायुग के समय से ही मनाया जा रहा है। छठ पर्व में सूर्यदेव की उपासना की जाती है। साथ ही यह पर्व प्रकृति, उषा, वायु, जल और देवी षष्ठी को समर्पित होता है।
हर साल छठ पर्व का व्रत कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को रखा जाता है। इस साल छठ की शुरुआत 28 अक्टूबर 2022 से हो रही है जोकि 23 अक्टूबर 2022 को समाप्त होगी। छठ पर्व की विशेषता और इसके इतिहास को लेकर कई पौराणिक कथाएं और मान्यताएं जुड़ी हुई हैं।
भगवान राम और माता सीता ने रखे थे छठ व्रत
रामायण में छठ पर्व और इसके महत्व के बारे में बताया गया है। इसके अनुसार भगवान राम और माता सीता 14 साल के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे। तब रामजी ने रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूय यज्ञ कराया था। मुग्दल ऋषि ने भगवान राम और माता सीता को यज्ञ के लिए अपने आश्रम में बुलाया। मुग्दल ऋषि के आदेशानुसार माता सीता ने कार्तिक शुक्ल की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना की और व्रत रखा। माता सीता और भगवान राम दोनों ने पूरे छह दिनों तक मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर पूजा-पाठ किया। इसलिए छठ पर्व की शुरुआत रामायण काल से मानी जाती है।
महाभारत काल से जुड़ा है छठ पर्व
महाभारत ग्रंथ में भी छठ पर्व के महत्व का वर्णन मिलता है। इसके अनुसार जब पांडव अपना संपूर्ण राजपाट जुए में हार गए थे तब द्रौपदी ने भी छठ व्रत किया था। व्रत के प्रभाव और सूर्यदेव की कृपा से ही पांडवों को राजपाट वापस मिला था।
महाभारत काल से जुड़ी के अन्य मान्यता के अनुसार कर्ण जोकि भगवान सूर्य के परम भक्त थे। कर्ण से ही सूर्यदेव की उपासना की शुरुआत मानी जाती है। पौराणिक व धार्मिक कथाओं के अनुसार कर्ण सूर्योदय के समय घंटो कमर तक पानी के भीतर रहकर सूर्यदेव को अर्घ्य देते थे। भगवान भास्कर के आशीर्वाद से ही कर्ण महान योद्धा बने।
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