Chhath Puja Vrat Katha: छठ व्रत की कथा पढ़ने से हर मनोकामना होगी पूरी

Chhath Vrat Katha In Hindi: कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को छठ पर्व मनाए जाने का विधान है। ये चार दिवसीय पर्व मुख्य रूप से बिहार में मनाया जाता है। यहां जानिए छठ की कहानी।

chhath katha

छठ पूजा की कथा

Chhath Vrat Katha In Hindi: छठ पर्व का तीसरा दिन सबसे खास होता है। क्योंकि इस दिन महिलाएं 36 घंटों का निर्जला व्रत शुरू करती हैं। संध्या में डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है तो अगले दिन उगते सूर्य की पूजा होती है। छठ पर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है। इस पर्व को डाला छठ, सूर्य षष्ठी और छठ पूजा आदि नामों से भी जाना जाता है। इस त्योहार में मुख्य रूप से भगवान सूर्य और छठी माता की पूजा होती है। छठ व्रत पूरा करने से पहले इसकी कथा पढ़ना जरूरी माना जाता है। यहां देखिए छठ व्रत की पौराणिक कथा।

छठ व्रत की कथा (Chhath Vrat Katha)

पौराणिक मान्यता के अनुसार राजा प्रियव्रत और उनकी पत्नी मालिनी संतान सुख से वंचित थे। इस बात से राजा-रानी काफी दुखी रहते थे। एक दिन उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए महर्षि कश्यप से पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया। महर्षि ने यज्ञ संपन्न करने के बाद मालिनी को खीर दी। खीर का सेवन करने के बाद मालिनी गर्भवती हो गई और 9 महीने बाद उसे एक पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन दुर्भाग्य से उसका पुत्र मृत पैदा हुआ। ये देखकर राजा-रानी बहुत दुखी हो गए और निराशा की वजह से राजा ने आत्महत्या करने का मन बना लिया। परंतु जैसे ही राजा आत्महत्या करने लगे तो उनके सामने भगवान की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं और उन्होने कहा कि मैं षष्ठी देवी हूं और मैं लोगों को पुत्र सुख प्रदान करती हूं। जो व्यक्ति सच्चे मन से मेरी पूजा करता है उसकी मैं सभी मनोकामना पूर्ण करती हूं। यदि राजन तुम मेरी विधि विधान से पूजा करोगे तो मैं तुम्हें पुत्र रत्न प्राप्ति का वरदान दूंगी। देवी के कहे अनुसार राजा प्रियव्रत ने कार्तिक शुक्ल की षष्ठी तिथि को देवी षष्ठी की पूजा की। इस पूजा के फलस्वरूप रानी मालिनी एक बार फिर से गर्भवती हुई और ठीक 9 महीने बाद उन्हें एक संदुर पुत्र की प्राप्ति हुई।

कहते हैं तभी से छठ पर्व मनाए जाने की परंपरा शुरू हुई। इस पर्व से जुड़ी एक और कथा है जिसके अनुसार महाभारत काल में जब जुए में पांडव अपना सारा राजपाट हार गए थे, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा था। द्रौपदी के व्रत से प्रसन्न होकर षष्ठी देवी ने पांडवों को उनका राजपाट वापस दिला दिया था। वहीं एक अन्य पौराणिक कथा के मुताबिक, महाभारत काल में सूर्य पुत्र कर्ण ने सबसे पहले सूर्य देव की पूजा की थी और कहा जाता है कि घंटों पानी में खड़े होकर कर्ण सूर्य देव को अर्घ्य देता था। सूर्य देव की कृपा से कर्ण एक महान योद्धा बना था। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा चली आ रही है।

देश और दुनिया की ताजा ख़बरें (Hindi News) अब हिंदी में पढ़ें | अध्यात्म (spirituality News) की खबरों के लिए जुड़े रहे Timesnowhindi.com से | आज की ताजा खबरों (Latest Hindi News) के लिए Subscribe करें टाइम्स नाउ नवभारत YouTube चैनल

लेटेस्ट न्यूज

लवीना शर्मा author

धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर की रहने वाली हूं। पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट हूं। 10 साल से मीडिया में काम कर रही हूं। पत्रकारिता में करि...और देखें

End of Article

© 2024 Bennett, Coleman & Company Limited