Chhath Vrat Katha 2024: छठ पर्व के महत्व को बताती हैं ये पौराणिक कथाएं, छठ पूजा के समय जरूर पढ़ें
Chhath Puja Vrat Katha 2024: इस साल चैती छठ की शुरुआत 12 अप्रैल से हुई है और इसका समापन 15 अप्रैल को होगा। इस दौरान व्रती सूर्य देव और छठी मैया की विधि विधान उपासना करेंगे। लेकिन पूजा के समय छठी मैया की कथा पढ़ना बिल्कुल भी न भूलें। यहां देखें छठ पर्व की कथा।



Chhath Puja Vrat Katha In Hindi
Chhath Puja Vrat Katha 2024 (छठ पूजा कथा): उत्तर भारत में इस समय 'चैती छठ' पर्व मनाया जा रहा है। सूर्योपासना का ये महापर्व विशेष रूप से बिहार, झारखंड और उत्तरप्रदेश में मनाया जाता है। साल में दो बार ये पर्व आता है। अभी चैत्र महीने का छठ पर्व चल रहा है जिसका समापन 15 अप्रैल को होगा। धार्मिक मान्यताओं अनुसार छठ पूजा करने से परिवार में सुख-समृद्धि और खुशहाली बनी रहती है। इस दौरान व्रतधारी लगातार 36 घंटों तक निर्जला व्रत रखते हैं और सूर्य को अर्घ्य देते हैं। यहां आप जानेंगे छठ पर्व की पौराणिक कथा।
Chhati Chhath Puja Katha In Hindi (छठ पूजा की कहानी)
छठ पर्व से जुड़ी एक कथा के अनुसार राजा प्रियव्रत की कोई संतान नहीं थी। जिसकी वजह से राजा और उनकी पत्नी मालिनी बहुत दुखी रहते थे। एक दिन उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए महर्षि कश्यप से यज्ञ करवाया। यज्ञ के बाद महर्षि ने राजा की पत्नी मालिनी को खीर खाने के लिए दी। खीर का सेवन करने से मालिनी गर्भवती हो गई और उन्हें कुछ समय के बाद एक पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन दुर्भाग्य से उनका पुत्र मृत जन्मा था। अपनी मृत बच्चे को देखकर दोनों पति-पत्नी ने आत्महत्या करने का मन बना लिया, लेकिन जैसे ही राजा अपने प्राण त्यागने की कोशिश करने लगे उनके सामने भगवान की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हो गईं।
माता ने राजा को अपना परिचय दिया और कहा कि मैं षष्ठी देवी हूं और लोगों को संतान प्राप्त होने का वरदान देती हूं। इसके अलावा जो कोई भी मेरी सच्चे मन से पूजा करता है मैं उनकी समस्त मनोकामना पूर्ण करती हूं। यदि हे राजन तुम मेरी विधि विधान से पूजा करोगे तो मैं तुम्हें पुत्र होने का वरदान अवश्य दूंगी। देवी के कहे अनुसार राजा प्रियव्रत ने पूरे विधि विधान से पूजा की जिसके फलस्वरूप रानी मालिनी फिर गर्भवती हुई और उन्होंने एक संदुर पुत्र को जन्म दिया। कहते हैं तभी से छठ पर्व मनाने की परंपरा शुरू हो गई।
कर्ण ने शुरू हुई सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा
मान्यताओं अनुसार सबसे पहले कर्ण ने सूर्य देव की पूजा शुरू की थी। कथाओं के अनुसार कर्ण अपने पिता सूर्य देव के परम भक्त थे। वह हर दिन घंटों तक कमर जितने पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य दिया करते थे। आज के समय में भी छठ में अर्घ्य देने की यही पद्धति प्रचलित है। व्रती पानी में खड़े होकर डूबते हुए और उगते हुए सूर्य को जल देते हैं।
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