Dev Uthani Ekadashi Vrat Katha: देवउठनी एकादशी की व्रत कथा पढ़ने से बैकुंठ धाम की होगी प्राप्ति
Dev Uthani Ekadashi Vrat Katha: देव उठनी एकादशी से जुड़ी कई ऐसी पौराणिक कथाएं हैं जो इस एकादशी के महत्व के बारे में बताती हैं। यहां हम आपको देवउठनी एकादशी से जुड़ी दो सबसे ज्यादा प्रचलित कथाओं को बारे में बताएंगे।
Dev Uthani Ekadashi Vrat Katha
Dev Uthani Ekadashi Vrat Katha (देवउठनी एकादशी व्रत कथा): देवउठनी एकादशी का सबसे ज्यादा महत्व माना जाता है क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु अपनी योग निद्रा से जाग जाते हैं। श्री हरि विष्णु भगवान के जागते ही सभी तरह के मांगलिक कार्यों की फिर से शुरुआत हो जाती है। कई लोग इस एकादशी पर तुलसी विवाह भी करते हैं। जो बेहद शुभ और फलदायी अनुष्ठान माना जाता है। कहते हैं देवउठनी एकादशी का व्रत सभी तरह के दुखों से मुक्ति दिलाता है। तो वहीं देवउठनी एकादशी की कथा पढ़ने से बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। चलिए जानते हैं देवउठनी एकादशी की पौराणिक कथाएं।
देव उठनी एकादशी व्रत कथा
धार्मिक मान्यताओं अनुसार एक समय भगवान नारायण से लक्ष्मी जी ने पूछा- हे नाथ! आप या तो दिन रात जागा करते हैं और या फिर जब सोते हैं तो लाखों-करोड़ों वर्ष तक सो जाते हैं। जिस कारण आपके सोने में समस्त चराचर का नाश हो जाता है। इसलिए आप ऐसा करें कि नियम से प्रतिवर्ष निद्रा लिया करें। इससे मुझे भी कुछ समय के लिए आराम मिल जाएगा। लक्ष्मी जी की ये बात सुनकर नारायण भगवान मुस्कुराए और बोले- “देवी! तुमने ये बात ठीक कहीहै। मेरे जागने से सब देवों और खासकर तुमको कष्ट होता है। तुम्हें मेरे कारण जरा भी अवकाश नहीं मिलता। अतः तुम्हारे कथन अनुसार आज से मैं प्रतिवर्ष चार महीने के लिए वर्षा ऋतु में शयन किया करूंगा। उस समय तुमको और देवगणों को अवकाश मिल जाएगा। मेरी यह निद्रा अल्पनिद्रा कहलाएगी। मेरी यह अल्पनिद्रा मेरे भक्तों के लिए परम मंगलकारी होगी। अत: इस दौरान जो भक्त मेरे शयन की भावना कर मेरी सेवा करेंगे और मेरे शयन और उत्थान के उत्सव को आनंदपूर्वक मनाएंगे। उनके घर में, मैं तुम्हारे साथ निवास करूंगा।
देव उठनी एकादशी की कहानी
देवउठनी एकादशी की एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में एक राज्य ऐसा था जहां एकादशी के दिन राजा से लेकर प्रजा और यहां तक की पशु तक अन्न ग्रहण नहीं करते थे। न ही उस दिन कोई अन्न बेचा जाता था। एक बार की बात है भगवान विष्णु ने उस राज्य के राजा की परीक्षा लेने के लिए एक सुंदरी का रूप धारण किया और वो सड़क किनारे बैठ गए। जब राजा वहां से गुजरे तो उन्होंने उस सुंदरी से सड़क पर ऐसे बैठने का कारण पूछा। सुंदरी ने बताया कि उसका इस दुनिया में कोई नहीं है। राजा उसके रूप को देखकर पूरी तरह मोहित हो गए और उसे रानी बनकर महल चलने के लिए कहा।
सुंदरी ने राजा की बात स्वीकार ली लेकिन साथ में उसने एक शर्त भी रखी कि राजा को अपने पूरे राज्य का अधिकार उसे सौंपना होगा और वह जो बोलेगी, खाने में जो बनाएगी वहीं खाना होगा। राजा ने बड़ी ही आसानी स उसकी शर्त मान ली। अगले दिन एकादशी पर सुंदरी ने बाजारों में अनाज बेचने का आदेश दिया और साथ ही वो मांसाहार भोजन बनाकर राजा को खाने पर मजबूर करने लगी। राजा ने इस चीज का विरोध करते हुए कहा कि आज एकादशी है मैं इस दिन व्रत रखता हूं और सिर्फ फलाहार ही ग्रहण करता हूं। इस पर रानी ने राजा को अपनी शर्त याद दिलाई और कहा कि अगर वह आज के दिन मांस-मदिरा का सेवन नहीं करेंगे तो वे बड़े राजकुमार का सिर काट देंगी।
राजा ने अपनी इस स्थिति का जिक्र अपनी बड़ी रानी से किया। तब बड़ी रानी ने राजा से अपने धर्म का पालन करने की बात कही और वो अपने बेटे की कुर्बानी के लिए तैयार हो गईं। राजकुमार ने भी अपने पिता को धर्म निभाने के लिए कहा और खुशी-खुशी अपने सिर की बलि देने के लिए वो भी राजी हो गए। तभी सुंदरी के रूप से भगवान विष्णु ने उन्हें दर्शन दिए और कहा कि ये तुम्हारी परीक्षा थी और इस परीक्षा में तुम सफल हो गए। भगवान विष्णु राजा से बहुत प्रसन्न हुए और उन्हें वर मांगने को कहा। राजा ने इस जीवन के लिए भगवान विष्णु का का धन्यवाद किया और कहा कि अब मेरा उद्धार कीजिए। राजा की प्रार्थना भगवान ने स्वीकार की और उन्हें मृत्यु के बाद बैकुंठ धाम प्राप्त होने का वरदान दिया। कहते हैं तब से इस एकादशी का महत्व बढ़ गया।
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धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर की रहने वाली हूं। पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट हूं। 10 सा...और देखें
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