Dhanu Sankranti 2024 Time: धनु संक्रांति कब है, जानिए इसकी पूजा विधि, मुहूर्त, महत्व और दान सामग्री

Dhanu Sankranti 2024 Time: जब सूर्य देव धनु राशि में प्रवेश करते हैं तब धनु संक्रांति मनाई जाती है। 2024 में धनु संक्रांति 15 दिसंबर को मनाई जा रही है। चलिए आपको बताते हैं धनु संक्रांति की पूजा विधि और मुहूर्त।

Dhanu Sankranti 2024 Time

Dhanu Sankranti 2024 Time (धनु संक्रांति 2024): पौष माह की संक्रांति को धनु संक्रांति कहा जाता है जो हर साल दिसंबर के महीने में पड़ती है। धनु संक्रांति से ही खरमास का प्रारंभ हो जाता है। खरमास वो समय होता है जब सभी तरह के मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाती है। धनु संक्रांति के दिन पवित्र नदियों में स्नान करने और सूर्य देव को अर्घ्य देने का विशेष महत्व माना जाता है। इस दिन भगवान को मीठे पकवानों का भोग लगाने की परंपरा है। चलिए जानते हैं धनु संक्रांति की तारीख, मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व।

धनु संक्रान्ति पुण्य काल मुहूर्त (Dhanu Sankranti 2024 Time)

धनु संक्रान्ति15 दिसंबर 2024, रविवार
धनु संक्रान्ति पुण्य काल12:16 पी एम से 05:26 पी एम
धनु संक्रान्ति महा पुण्य काल03:43 पी एम से 05:26 पी एम
धनु संक्रान्ति का क्षण10:19 पी एम
धनु संक्रान्ति फलम् (Dhanu Sankranti Effects)

  • सरकारी कर्मचारियों के लिए यह संक्रान्ति अच्छी है।
  • इस दौरान वस्तुओं की लागत सामान्य होगी।
  • ये संक्रांति थोड़ा भय और चिन्ता लाती है।
  • इस दौरान लोग खांसी और ठण्ड से पीड़ित होंगे।

धनु संक्रांति पूजा विधि (Dhanu Sankranti Puja Vidhi)

  • धनु संक्रांति के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर लें।
  • इसके बाद तांबे के बर्तन में लाल चंदन मिलाकर जल लें और इसे सूर्य देव को अर्पित करें।
  • सूर्य देव को अर्पित किए जाने वाले जल में हल्दी, रोली और सिंदूर अवश्य मिलाएं।
  • इसके बाद सूर्य देव को फूल चढ़ाया जाता है।
  • इस दिन भगवान सूर्य को गुड़ से बने हलवे और मिठाइयां अर्पित की जाती है।
  • इसके बाद लाल चंदन की माला लेकर “ॐ भास्कराय नमः” मंत्र का जाप पूरी श्रद्धा से करें।
  • धनु संक्रांति के दिन भगवान विष्णु की पूजा का भी विशेष महत्व माना जाता है।
  • इस दिन की पूजा में केले के पत्ते, फल, तुलसी, मेवा, सुपारी, पंचामृत इत्यादि भोग के तौर पर चढ़ाया जाता है।
  • इस दिन कई भगवान सत्य नारायण की कथा भी कराते हैं।
  • सत्य नारायण की कथा करने के बाद भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी, भगवान शिव और ब्रह्मा जी की आरती की जाती है।
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