पान की उत्पत्ति की कहानी और इसका पूजा में प्रयोग
Paan Ka Itihas, Pauranik Kahani And Dharmik Mahatva (पान का पूजा में इस्तेमाल क्यों किया जाता है): हिंदू धर्म में पान के पत्ते को बेहद पवित्र माना जाता है। तभी तो प्रत्येक शुभ कार्यों और पूजा पाठ में इसका इस्तेमाल जरूर किया जाता है। पंडित सुजीत जी महाराज अनुसार पान का पत्ता देवी-देवताओं का भोजन माना गया है। इसलिए हर देवी-देवता को ये चढ़ता है। कहते हैं भगवान को पान चढ़ाने से उनकी असीम कृपा प्राप्त होती है। पान पूजा तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसका इस्तेमाल तमाम हिंदू संस्कारों जैसे नामकरण, यज्ञोपवीत और शादी-ब्याह में भी किया जाता है। आज भी कई जगह शादी के समय दूल्हे और उसके परिवार वालों को पान खिलाने की परंपरा निभाई जाती है तो वहीं बंगाली शादियों में तो दुल्हन हाथ में पान के पत्तों को लेकर अपने पति को देखती है। आइए जानते हैं पान की उत्पत्ति की कहानी और पूजा-पाठ में इसका महत्व।
पूजा-पाठ में पान के पत्ते का इस्तेमाल
पूजा-पाठ के समय पान के पत्तों में सुपारी और अक्षत रखकर देवी-देवताओं को चढ़ाया जाता है। तो वहीं कई जगह पान के पत्ते पर कपूर रखकर जलाया जाता है। कहते हैं ऐसा करने से सकारात्मक ऊर्जा आती है। पंडित सुजीत जी महाराज अनुसार पान के पत्ते को हिंदू धर्म में बेहद शुभ और पवित्र माना जाता है। इसके इस्तेमाल से किसी भी पूजा की पूर्णता होती है। मान्यता है इस पत्ते के पूजा में प्रयोग करने से देवी-देवताओं की विशेष कृपा प्राप्त होती है। कहा जाता है कि पान के पत्ते में मौजूद अंतर्निहित गुण उपासक के लिए दैवीय आशीर्वाद को आकर्षित करते हैं। इसके अलावा सनातन धर्म में पान के पत्ते को ब्रह्मा, विष्णु और शिव का प्रतिनिधित्व करने वाला भी माना गया है। इसलिए पूजा के समय पान के पत्ते को चढ़ाकर भक्त इन दैवीय शक्तियों के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं।
पान के अनेकों नाम
पान को भारतीय भाषाओं में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। संस्कृत में इसे ताम्बूल, तेलुगू में पक्कू, तमिय में वेटिलाई, मराठी में नागवेल और गुजराती में नागुरवेल कहा जाता है। यह तांबूली और नागवल्ली नाम की एक लता का पत्ता है। इस लता के पत्ते छोटे-बड़े अनेक साइज के होते हैं। पत्तों के बीच में नसों जैसी आकृति दिखाई देती हैं।
शादी-ब्याह में पान से जुड़ी रस्में
पंडित सुजीत जी महाराज अनुसार शादी-ब्याह में जब बारात घर पर आती है तो पान की थाल सजाई जाती है और लड़की वाले लड़के वालों को पान खिलाते हैं। शादी के बाद जो संबंधी भोज होता है तब भी लड़की पक्ष वाले लड़कों के परिवार वालों को पान खिलाते हैं। ये परंपरा सदियो से चली आ रही है। तो वहीं कुछ जगहों पर दूल्हे को शादी के समय पान खिलाया जाता है मान्यता है ऐसा करने से वैवाहिक जीवन पर मां लक्ष्मी की सदैव कृपा बनी रहती है। क्योंकि पान के बीच वाले भाग में मां लक्ष्मी का वास माना जाता है। बंगाली शादियों में तो पान के पत्तों से एक अनोखी परंपरा निभायी जाती है। जिसमें दुल्हन अपने हाथों में पान के पत्ते पकड़ती है और वह दूल्हे के इर्द-गिर्द सात फेरे लेने के बाद अपने चेहरे से पान का पत्ता हटाकर फिर अपने दूल्हे को देखती है। दूल्हा और दुल्हन के बीच निभाई जाने वाली ये परंपरा ‘शुभो दृष्टि’ (Subho Dristi) रस्म कहलाती है। ये रसम शुभत्ता का प्रतीक मानी जाती है।
रामायण और महाभारत में भी पान का जिक्र
महाभारत और रामायण में भी पान का जिक्र मिलता है। ऐसा माना जाता है कि जब भगवान हनुमान अपने प्रभु श्री राम का संदेश लेकर माता सीता के पास पहुंचे थे। तो माता सीता ने प्रसन्न होकर हनुमान जी को पान के पत्तों की ही माला भेंट के रूप में दी थी। कहते हैं इसी कारण आज भी भगवान हनुमान को पान के पत्ते की माला चढ़ाई जाती है। वही महाभारत में पान के पत्तों को नागरबेल के नाम से जाना जाता था। कहते हैं महाभारत का युद्ध जीतने के बाद पंडित ने अर्जुन को एक यज्ञ के लिए पान के पत्ते लाने को कहा था। लेकिन कई जगह ढूंढने के बाद भी अर्जुन को पान के पत्ते नहीं मिले। फिर अर्जुन को ये पत्ते लेने के लिए नागलोक जाना पड़ा। नागलोक से अर्जुन को पान के पत्ते मिल गए जिसके बाद यज्ञ संपन्न हुआ।
पान की उत्पत्ति से जुड़ी पौराणिक कहानी
कुछ धारणाओं अनुसार खुद भगवान शिव और माता पार्वती ने हिमालय की किसी पहाड़ी पर पान का पहला बीज बोया था। कहते हैं तभी से पान के पत्तों को पवित्र माना जाने लगा और इसका पूजा में प्रयोग होने लगा। पंडित सुजीत जी महाराज की मानें तो पान का पेड़ माता पार्वती और शिव जी के वरदान स्वरूप प्रकट हुआ था। इसके अलावा पान की उत्पत्ति की कहानी समुद्र मंथन से भी जुड़ी है। प्राचीन समय में जब देवता और दानव अमृत पाने के लिए समुद्र मंथन कर रहे थे। तब समुद्र से वैद्यराज धन्वन्तरि अपने हाथों में अमृतकलश लेकर निकले। देवताओं ने अमृत कलश को नंदनवन में रख दिया और उसी अमृतकलश के पास समुद्र-मंथन से निकले ऐरावत हाथी को बांधने का खम्भा भी लगा दिया गया। उस खम्भे से बंधा हुआ ऐरावत अमृत की दिव्य सुगन्ध लेता रहा।
एक कथा अनुसार एक दिन उस अमृत-कलश से एक दिव्य लता प्रकट हुई जो नागराज ऐरावत के बांधने वाले खम्भे पर चढ़ गयी। माना जाता है कि उस लता से निकले पत्तों का सेवन सबसे पहले ऐरावत हाथी ने किया। फिर उस लता की सुगन्ध से सभी देवता भी प्रभावित हो गए और उन्होंने भी मुख शुद्धि के लिए इन पत्तों को खाना शुरू कर दिया। एक दिन जब देवताओं को वैद्य धन्वन्तरिजी ने उस पत्तों को खाते देखा तो उन्होंने कहा कि– यह लता नागवल्ली के नाम से प्रसिद्ध होगी। बता दें संस्कृत में हाथी को नाग तो लता को वल्ली कहते हैं। इसलिए पान का नाम ‘नागवल्ली’ पड़ा।
पंडित प्रदिप मिश्रा से जानें पान की उत्पत्ति की कहानी और पूजा में इसके इस्तेमाल का तरीका
स्वर्ग से धरती पर ऐसे उतरा पान
कहते हैं सबसे पहले वैद्य धन्वन्तरिजी जी ने पान के पत्ते में सुपारी, चूना और कत्था लगाकर इन्द्रदेव को खाने के लिए दिया, जिसे खाकर इन्द्रदेव बहुत तृप्त हुए और उन्होंने धन्वतरिजी से वर मांगने को कहा। तब धन्वन्तरिजी ने कहा-यह नागवल्ली मुझे भी दें फिर मैं पृथ्वीलोक पर इसका प्रचार करुंगा। कहते हैं इसके बाद इन्द्रदेव ने वह नागवल्ली यानी पान की बेल धन्वन्तरिजी को दे दी और इस तरह से धरती पर भी इसका प्रचार-प्रसार शुरू हो गया।
पान के पत्ते से जुड़े कुछ विशेष उपाय
पंडित सुजीत जी महाराज अनुसार पान के पत्तों का विभिन्न तरह से प्रयोग करके आप अपने जीवन की कई परेशानियों का अंत कर सकते हैं। अगर आप पान के पत्ते में कत्था मिलाकर भोजन के बाद खाते हैं तो इससे लीवर स्वस्थ रहता है। अगर आपका कोई काम नहीं बन रहा है तो 21 पान के पत्ते लें और हर पत्ते पर राम लिखें। फिर इन पत्तों की माला बनाकर मंगलवार के दिन भगवान हनुमान जी को चढ़ा दें। ऐसा करने से आपका काम बनने लगेगा। अगर किसी व्यक्ति को आर्थिक समस्या हो तो उसे पान में कत्था मिलाकर और उस पर लॉन्ग लगाकर भगवान हनुमान जी को चढ़ाना चाहिए। इससे धन-धान्य में वृद्धि होने लगती है।