इंदिरा गांधी को लगा था इस मंदिर के पुजारी का शाप? अगले दिन हो गई बेटे संजय गांधी की मौत, जानिए क्या है इस मंदिर की मान्यता और इतिहास
Indira Gandhi: मंदिर के पुजारी ने इंदिरा गांधी से नाराज होकर सबके सामने कह दिया था कि एक दिन रोते हुए आएगी वो यहां। अगले ही दिन संजय गांधी की मौत हो गई।
संजय गांधी की मौत के बाद इस मंदिर में फूट-फूट कर रोई थीं इंदिरा गांधी।
Indira Gandhi: इंदिरा गांधी अपने जीवन के अंतिम सालों में काफी धार्मिक हो गई थीं। वो मंदिरों और मठों में जाती थीं। घर पर कीर्तन करवाती थीं। घर के मंदिर में रोज 108 फूल चढ़ाकर अपने अराध्यों को पूजती थीं। उनके अंदर ये बदलाव 1975 की इमरजेंसी के बाद आया था। इमरजेंसी के बाद 1980 में इंदिरा गांधी दोबारा सत्ता में लौटीं। जिस दिन उन्हें प्रधानमंत्री पद की शपथ लेनी थी उसी दिन उन्होंने अपने घर पर कीर्तन भी करवाया था। शपथ लेने के बाद वो सीधे अपने आवास पर पूजा में पहुंची थीं।
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चामुंडा मंदिर जाने का बना और रद्द हुआ कार्यक्रम14 जनवरी 1980 को पीएम बनने के बाद इंदिरा गांधी को 22 जून को हिमाचल प्रदेश के पालमपुर स्थित चामुंडा देवी मंदिर जाना था। कार्यक्रम तय था। 20 जून को ही इंदिरा के करीबी अनिल बाली पालमपुर पहुंच गए और सारी व्यवस्था पूरी कर दी थी। कार्यक्रम था कि इंदिरा और संजय गांधी जम्मू से दिल्ली लौटते वक्त सीधे पालमपुर जाएंगे। 22 जून को दोपहर 4 बजकर 45 मिनट पर उन्हें वहां हेलीकॉप्टर से पहुंचना था। मंदिर में इंदिरा गांधी के स्वागत के लिए अनिल बाली के साथ मंदिर के मुख्य पुजारी और महंत समेत हिमाचल प्रदेश के तत्कालीन सीएम राम लाल अपनी कैबिनेट के साथ मौजूद थे। अचानक संदेश मिला कि इंदिरा का दौरा रद्द हो गया है।
क्या इंदिरा को लगा मंदिर के पुजारी का शाप?प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का दौरा रद्द करने की खबर मिलते ही चामुंडा मंदिर में उनकी बाट जोह रहे लोगों के चेहरे पर निराशा छा गई। मंदिर के पुजारी तो भड़क गए। उन्होंने अनिल बाली से कहा- इंदिरा गांधी को बोलना कि ये चामुंडा हैं। आम इंसान उनसे हिमाकत करे तो चलता है, लेकिन शासक का अपमान मां बर्दाश्त नहीं करती हैं। देखना एक दिन रोते हुए आएगी वो यहां। 22 जून के अगले ही दिन खबर आई कि इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी की विमान हादसे में मौत हो गई। अनिल बाली जब इंदिरा के आवास पर पहुंचे तो वह उन्हें देखते ही झट से खड़ी हो गईं और बोलीं- क्या मेरे चामुंडा मंदिर ना जाने से संजय गांधी की मौत का कोई नाता है? अनिल बाली ने बाद में बात करेंगे कहते हुए मामले को टाल दिया।
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तो इसलिए चामुंडा देवी के दरबार नहीं गई थीं इंदिरासंजय गांधी चौथे वाले दिन इंदिरा गांधी ने फिर से अनिल बाली से वही चामुंडा मंदिर वाली बात पूछी। अनिल ने कहा- मैडम, पहले ये बताइए कि आपका प्रोग्राम उस दिन क्यों कैंसिल हुआ। इंदिरा ने जवाब दिया कि उनको बताया गया था कि पालमपुर में मौसम खराब है। तेज बारिश हो रही है। हेलीकॉप्टर से जाने में खतरा है। अनिल ने उन्हें बताया कि ऐसा कुछ नहीं था। मौसम बिल्कुल साफ था।
मंदिर में मां चामुंडा के सामने रोने लगीं इंदिरा गांधीइंदिरा गांधी के मन में कहीं ना कहीं ये बात हमेशा चलती रहती थी कि चामुंडा मंदिर का दौरा रद्द करने के कारण ही उनके बेटे की मौत हुई है। 13 दिसंबर, 1980 को वह चामुंडा मंदिर पहुंची। वहां पूजा अर्चना की। मंदिर के पुजारी ने बताया कि पूजा कराने में उनके हाथ कांप रहे थे। इंदिरा गर्भगृह के पास पहुंची, माता के आगे शीष झुकाया और बैठकर रोने लगीं। वह लगातार रोए जा रही थीं। अनिल बाली को पुजारी की वो बाद याद आ गई जब उन्होंने कहा था- देखना वो रोते हुए यहां आएगी। इंदिरा को रोता हुआ देख पुजारी ने कहा- आप रोइए मत। आपके 60 करोड़ बेटे बेटियां हैं। आप उनको देखिए। आज के बाद परेशान नहीं होना है।
इंदिरा गांधी काफी देर मंदिर में रहीं। उन्होंने बेटे की याद में मंदिर के चारों ओर पौधे भी लगवाए। पौधे लगवाने के लिए वो अपने साथ दिल्ली से अपने दिवंगत पति फिरोज खान के माली को साथ ले गई थीं। मंदिर में संजय गांधी के नाम से एक विशाल घाट बनवाया। इंदिरा उस दिन के बाद हर महीने अनिल बाली को 101 रुपये का लिफाफा देती थीं जो चामुंडा मंदिर पहुंचाया जाता था।
क्या है चामुंडा मंदिर का इतिहासपालमपुर का चामुंडा मंदिर माता के 51 शक्तिपीठों में से एक है। इस मंदिर का पूरा नाम चामुंडा नंदिकेश्वर धाम है। यह मंदिर करीब 700 साल पुराना बताया जाता है। शक्ति स्वरूपा मां चामुंडा का नाम चंड और मुंड नाम के राक्षसों के संहार करने के बाद पड़ा था। मंदिर के अंदर मा चामुंडा के साथ ही भगवान शिव भी पिंडी रूप में स्थापित हैं। इसी कारण इस मंदिर को को चामुंडा नंदिकेश्वर धाम भी कहा जाता है।
क्या है चामुंडा मंदिर से जुड़ी मान्यतास्थानीय लोगों का मानना है कि देवी चामुंडा का यह मंदिर भगवान शिव और माता शक्ति का एक ऐसा निवास स्थल है, जहां वे अपने विश्व भ्रमण के दौरान विश्राम करते हैं। कहा जाता है कि यहां विधिपूर्वक मां चामुंडा की आराधना करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं। मंदिर में एक कुंड भी है जिसको लेकर मान्यता है कि इसमें स्नान मात्र से लोगों के रोग और भय दूर जाते हैं। कहा जाता है कि यहीं पर भगवान शिव ने मां चामुंडा का क्रोध शांत किया था।
चामुंडा मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथावेद और पौराणिक कथाओं के मुताबिक चंड और मुंड का वध करने के बाद मां शक्ति काफी गुस्से में थी। मां के क्रोध को देखते हुए स्थानीय जनता उनका गुस्सा शांत करने के लिए अपने परिवार से किसी ना किसी को बलि के रूप में पेश करने लगे। एक दिन किसी महिला के बेटे की बारी आई। उस महिला ने बेटे को भगवान शिव की आराधना से पाया था। महिला ने बेटे को बलि के लिए तो भेज दिया लेकिन शिव से उसकी रक्षा करने की गुहार भी लगाई। भगवान शिव ने खुद बाल रूप धारण किया और बलि के लिए जा रहे बच्चे संग खेलने लगे। उधर बलि में देरी से मां चामुंडा और भी ज्यादा गुस्से में आ गईं। मां ने देखा कि बच्चा तो रास्ते में खेल रहा है। बच्चे ने बताया कि वो तो आ रहा था लेकिन इस बालक ने उसे खेल में उलझा दिया।
मां का क्रोध सातवें आसमान पर जा पहुंचा। उन्होंने बलि के लिए आए बच्चे को छोड़ बाल रूपी शिव का पीछा करना शुरू किया। शिव पर विशाल पांच पत्थर बरसाए जिनमें से कुछ पत्थर आज भी विराजमान है। इनमें से एक पत्थर को शिव ने उंगली पर उठा लिया। मां चामुंडा थोड़ी ही देर में समझ गईं कि यह तो भगवान शिव हैं। उनका क्रोध शांत हुआ। उन्होंने शिव से माफी मांगी और उन्हें भी वहीं स्थापित होने का आग्रह किया।
आज भी मां चामुंडा के लिए रोज आता है मानव शवसदियों से यहां परंपरा चली आ रही है कि मां की बलि के स्वरूप रोजाना एक शव मंदिर में आएगा और उसका दाह यहीं होगा। जिस दिन कोई शव नहीं आता है उस दिन यहां घास का पुतला बनाकर जलाया जाता है। दूर-दूर से लोग अपने परिजनों की मोक्ष प्राप्ति के लिए उनका शवदाह मंदिर के मुक्तिधाम में करते हैं।
मां चामुंडा में अराधना का समयगर्मियों के मौसम में मां चामुंडा का स्नान व श्रृंगार सुबह और शाम पांच बजे होता है। सर्दियों में यह समय बदलकर सुबह साढ़े छह बजे और शाम साढ़े चार बजे कर दिया जाता है। बात आरती की करें तो गर्मियों में मां चामुंडा मंदिर की आरती सुबह आठ बजे और रात आठ बजे होती है। सर्दियों में आरती सुबह साढ़े आठ बजे और शाम साढ़े छह बजे होती है। शैय्या आरती गर्मियों में रात दस बजे और सर्दियों में नौ बजे की जाती है।
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मैं टाइम्स नाऊ नवभारत के साथ बतौर डिप्टी न्यूज़ एडिटर जुड़ा हूं। मूल रूप से उत्तर प्रदेश में बलिया के रहने वाला हूं और साहित्य, संगीत और फिल्मों में म...और देखें
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