Chanakya Niti: चाणक्य के इन श्लोकों में सफलता का रहस्य, समझ गए तो सफलता आपके कदमों में
Chanakya Niti in Hindi: आचार्य चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र में मानव जीवन को सफल बनाने के कई शानदार उपाय बताये हैं। आचार्य ने श्लोकों के माध्यम से जीवन के कई बड़े रहस्यों को आसान शब्दों में बताया है। आचार्य के इन बातों को समझने वाला सफलता के रास्ते पर निकल पड़ता है। आचार्य ने अपने चार श्लोक में सफलता के बड़े रहस्य बताए हैं।
चाणक्य ने इन खास श्लोकों में बताया है सफलता का रहस्य
- दुष्ट पत्नी, झूठा मित्र, धूर्त सेवक के साथ रहना है मृत्यु को गले लगाने समान
- आचार्य चाणक्य ने श्लोकों के माध्यम से समझाया है जीवन का रहस्य
- ऐसी जगह कभी नहीं रहना चाहिए, जहां उसे सम्मान, रोजगार और मित्र न मिले
अधीत्येदं यथाशास्त्रं नरो जानाति सत्तमः ।
धर्मोपदेशं विख्यातं कार्याऽकार्य शुभाऽशुभम् ।।
अर्थ- आचार्य चाणक्य कहते हैं कि, जो लोग अपने जीवन में शास्त्रों के नियमों का निरंतर अभ्यास करते हुए शिक्षा प्राप्त करते हैं, उन्हें सही, गलत और शुभ अशुभ का पूरा ज्ञान होता है। ऐसे व्यक्ति के पास सर्वोत्तम ज्ञान होता है। इस तरह के लोग अपने ज्ञान से सफलता को आसानी से हासिल कर लेते हैं।
प्दुष्टाभार्या शठं मित्रं भृत्यश्चोत्तरदायकः ।
ससर्पे च गृहे वासो मृत्युरेव नः संशयः ।।
अर्थ- आचार्य इस श्लोक के माध्यम से कहते हैं कि किसी भी व्यक्ति को कभी भूलकर भी दुष्ट पत्नी, झूठा मित्र, धूर्त सेवक और सर्प के साथ जीवन यापन नहीं करना चाहिए। ये कभी भी धोखाा दे सकते हैं। ये ठीक वैसा ही है, जैसे अपने मृत्यु को खुद गले लगाना।
Chanakya Niti: धन की लालसा में भूलकर भी न गवाएं जीवन की ये अहम चीजें, इनकी कीमत धन से ज्यादा
आपदर्थे धनं रक्षेद्दारान् रक्षेध्दनैरपि ।
नआत्मानं सततं रक्षेद्दारैरपि धनैरपि ।।
अर्थ- आचार्य का मानना है कि, मनुष्य को भविष्य के मुसीबतों का सामना करने के लिए धन की बचत जरूर करना चाहिए। वहीं, अगर किसी व्यक्ति की पत्नी खतरे में है तो धन-सम्पदा त्यागकर पत्नी की सुरक्षा करनी चाहिए। इसी तरह अगर बात आत्मा की सुरक्षा की आए तो उसे धन और पत्नी दोनों का त्याग कर अपनी आत्मा की सुरक्षा करनी चाहिए।
यस्मिन् देशे न सम्मानो न वृत्तिर्न च बान्धवः ।
न च विद्यागमऽप्यस्ति वासस्तत्र न कारयेत् ।।
अर्थ- आचार्य इस श्लोक के माध्यम से कहते हैं, व्यक्ति को ऐसे देश में कभी नहीं रहना चाहिए जहां पर उसे सम्मान, रोजगार के साधन और कोई मित्र न मिल सके। साथ ही ऐसे स्थान का भी त्याग करना चाहिए जहां पर ज्ञान न मिलता हो।
(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)
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