Ganesh Chaturthi Vrat Katha In Hindi
Ganesh Chaturthi 2024 Vrat Katha In Hindi: गणेश चतुर्थी का त्योहार भगवान गणेश के जन्म की खुशी में मनाया जाता है। माना जाता है कि भगवान गणेश का जन्म भादो शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को हुआ था। इसलिए ही भादो गणेश चतुर्थी का विशेष महत्व माना जाता है। गणेश चतुर्थी एक त्योहार नहीं बल्कि 10 दिनों तक चलने वाला उत्सव है जिसकी शुरुआत गणपति बप्पा के आगमन से होती है और समापन उनकी विदाई से। इस दौरान घरों, मंदिरों और पंडालों में गणेश जी की मूर्ति स्थापित करके उसकी विधि विधान पूजा होती है फिर इस मूर्ति का विधि विधान विसर्जन किया जाता है। चलिए जानते हैं गणेश चतुर्थी के दिन पढ़े जाने वाली व्रत कथा।
गणेश चतुर्थी क्यों मनाते हैं (Ganesh Chaturthi Kyu Manate Hai)
गणेश चतुर्थी का त्योहार भगवान गणेश के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। जिसे विनायक चतुर्थी या गणेश उत्सव के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक कथा अनुसार भादो शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर माता पार्वती ने एक शिशु को बनाने का निर्णय लिया। जिसके लिए उन्होंने अपने शरीर पर लगे चंदन के लेप को तेल के साथ मिलाकर एक शिशु का रूप तैयार किया और फिर उसमें प्राण फूंक दिए। इस तरह से भगवान गणेश का जन्म हुआ।
गणेश चतुर्थी व्रत कथा (Ganesh Chaturthi Vrat Katha In Hindi)
गणेश चतुर्थी की पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव और माता पार्वती जी नर्मदा नदी के किनारे बैठे थे। तब माता पार्वती की चौपड़ खेलने की इच्छा हुआ। उन्होंने शिव जी से ये खेल खेलने के लिए कहा। लेकिन इस खेल में हार-जीत का फैसला करने के लिए वहां कोई दूसरा मौजूद नहीं था। इसलिए भगवान शिव ने कुछ तिनके एकत्रित कर उसका एक पुतला बनाया फिर उसमें उन्होंने प्राण फूंक दिए। भगवान शिव ने उस पुतले से कहा कि 'बेटा, हम चौपड़ खेलने जा रहे हैं, इसीलिए तुम बताना कि हम दोनों में से किसी जीत हुई और किसकी हार?'
फिर खेल शुरू हो गया। संयोग से इस खेल में तीनों बार माता पार्वती की ही जीत हुई। खेल खत्म होने के बाद उस बालक से हार-जीत का फैसला करने के लिए कहा गया। तो उस बालक ने पार्वती माता की जगह महादेव को विजयी बताया। उस बालक के मुख से ये झूठी बात सुनकर माता पार्वती क्रोधित हो गईं और उन्होंने बालक को लंगड़ा होने और कीचड़ में पड़े रहने का श्राप दे दिया। बालक ने माता पार्वती से कहा कि माता मुझसे अज्ञानतावश ऐसा हुआ है। बालक द्वारा क्षमा याचना करने पर माता का दिल पिघल गया उन्होंने कहा अब ये श्राप तो वापस नहीं हो सकता लेकिन मैं इसका उपाय तुम्हें बताती हूं। यहां गणेश पूजन के लिए नागकन्याएं आएंगी, उनके कहे अनुसार तुम विधि विधान गणेश व्रत करो, ऐसा करने से तुम्हारे कष्ट अवश्य दूर होंगे।
बालक एक वर्ष तक उसी स्थान पर पड़ा रहा। उसक बाद उस स्थान पर नागकन्याएं आईं, नागकन्याओं से उस बालक ने भगवान गणेश के व्रत की विधि जानी इसके बाद उसने 21 दिन लगातार गणेशजी का व्रत किया। जिसके परिणामस्वरूप गणेश जी उससे प्रसन्न हुए और उन्होंने उस बालक को दर्शन देकर मनचाहा वर मांगने के लिए कहा। तब बालक ने कहा- हे विनायक भगवान! मुझे इतनी शक्ति दो कि मैं अपने पैरों से चलकर कैलाश पर्वत पर जा सकूं। भगवान गणेश ने वरदान पाकर वह बालक कैलाश पर्वत पर पहुंचा और उसने अपनी कथा भगवान शिव को सुनाई।
उस समय माता पार्वती शिवजी से नाराज चल रही थीं। देवी को मनाने के लिए भगवान शिव ने भी 21 दिनों तक भगवान गणेश का व्रत किया। जिसके प्रभाव से पार्वती माता की नाराजगी दूर हो गई और वो स्वयं भगवान शिव से मिलने पहुंच गईं। इसके बाद भगवान शंकर ने माता पार्वती को इस व्रत के बारे में बताया। फिर माता पार्वती के भी ये व्रत अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा में किया। व्रत के 21वें दिन कार्तिकेय स्वयं माता पार्वतीजी से मिलने चले आए। कहते हैं तभी से ये व्रत समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला व्रत माना जाने लगा।