Ganga Chalisa Hindi Lyrics: गंगा चालीसा हिंदी - पढ़ें गंगा चालीसा के लिरिक्स हिंदी में और जानें गंगा पूजा का महत्व
Ganga Chalisa Lyrics in Hindi (गंगा चालीसा पाठ लिरिक्स हिंदी में): हिन्दू धर्म में गंगा नदी को बेहद पवित्र और पतित पावनी कहा गया है। गंगा नदी के पृथ्वी पर अवतरण दिवस पर हर साल गंगा दशहरा मनाया जाता है। इसके साथ ही उनकी विशेष विधि से पूजा की जाती है। पूजा में मंत्र, आरती, चालीसा पाठ आदि जरूरी नियम हैं। यहां पढ़िए गंगा चालीसा लिरिक्स इन हिंदी।



Ganga Chalisa Lyrics in Hindi (गंगा चालीसा पाठ लिरिक्स हिंदी में)
Ganga Chalisa Lyrics in Hindi (गंगा चालीसा पाठ लिरिक्स हिंदी में): हिंदू धर्म में गंगा नदी को बेहद पवित्र, मोक्षदायनी और पतित पावनी कहा जाता है। इसलिए प्रतिवर्ष ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा नदी के अवतरण दिवस पर गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता है। कहते हैं गंगा मां को समर्पित इस पावन पर्व पर पवित्र गंगा में डुबकी लगाने से सारे पाप धुल जाते हैं। वहीं, इस अवसर पर मां गंगा की पूजा, आरती, कथा, चालीसा पाठ आदि करने से मनवांछित फलों की प्राप्ति होती है। जीवन में सकारात्मकता का संचार होता है। दुख, दुविधा, कष्ट, दर्द सभी से छुटकारा मिलता है और जीवन में शांति का वातावरण बना रहता है। इसी के साथ यहां पढ़िए गंगा चालीसा लिखित इन हिंदी। गंगा चालीसा के लिरिक्स से जानें इसका महत्व।
श्री गंगा माता चालीसा (Ganga Chalisa Lyrics In Hindi)
॥दोहा॥
जय जय जय जग पावनी, जयति देवसरि गंग।
जय शिव जटा निवासिनी, अनुपम तुंग तरंग॥
॥चौपाई॥
जय जय जननी हराना अघखानी।
आनंद करनी गंगा महारानी॥
जय भगीरथी सुरसरि माता।
कलिमल मूल डालिनी विख्याता॥
जय जय जहानु सुता अघ हनानी।
भीष्म की माता जगा जननी॥
धवल कमल दल मम तनु सजे।
लखी शत शरद चंद्र छवि लजाई॥ ४ ॥
वहां मकर विमल शुची सोहें।
अमिया कलश कर लखी मन मोहें॥
जदिता रत्ना कंचन आभूषण।
हिय मणि हर, हरानितम दूषण॥
जग पावनी त्रय ताप नासवनी।
तरल तरंग तुंग मन भावनी॥
जो गणपति अति पूज्य प्रधान।
इहूं ते प्रथम गंगा अस्नाना॥ ८ ॥
ब्रह्मा कमंडल वासिनी देवी।
श्री प्रभु पद पंकज सुख सेवि॥
साथी सहस्त्र सागर सुत तरयो।
गंगा सागर तीरथ धरयो॥
अगम तरंग उठ्यो मन भवन।
लखी तीरथ हरिद्वार सुहावन॥
तीरथ राज प्रयाग अक्षैवेता।
धरयो मातु पुनि काशी करवत॥ १२ ॥
धनी धनी सुरसरि स्वर्ग की सीधी।
तरनी अमिता पितु पड़ पिरही॥
भागीरथी ताप कियो उपारा।
दियो ब्रह्म तव सुरसरि धारा॥
जब जग जननी चल्यो हहराई।
शम्भु जाता महं रह्यो समाई॥
वर्षा पर्यंत गंगा महारानी।
रहीं शम्भू के जाता भुलानी॥ १६ ॥
पुनि भागीरथी शम्भुहीं ध्यायो।
तब इक बूंद जटा से पायो॥
ताते मातु भें त्रय धारा। मृत्यु लोक,
नाभा, अरु पातारा॥
गईं पाताल प्रभावती नामा।
मन्दाकिनी गई गगन ललामा॥
मृत्यु लोक जाह्नवी सुहावनी।
कलिमल हरनी अगम जग पावनि॥ २० ॥
धनि मइया तब महिमा भारी।
धर्मं धुरी कलि कलुष कुठारी॥
मातु प्रभवति धनि मंदाकिनी।
धनि सुर सरित सकल भयनासिनी॥
पन करत निर्मल गंगा जल।
पावत मन इच्छित अनंत फल॥
पुरव जन्म पुण्य जब जागत।
तबहीं ध्यान गंगा म लागत॥ २४ ॥
जई पगु सुरसरी हेतु उठावही।
तई जगि अश्वमेघ फल पावहि॥
महा पतित जिन कहू न तारे।
तिन तारे इक नाम तिहारे॥
शत योजन हूं से जो ध्यावहिं।
निशचाई विष्णु लोक पद पावहीं॥
नाम भजत अगणित अघ नाशै।
विमल ज्ञान बल बुद्धि प्रकाशे॥ २८ ॥
जिमी धन मूल धर्मं अरु दाना।
धर्मं मूल गंगाजल पाना॥
तब गुन गुणन करत दुख भाजत।
गृह गृह सम्पति सुमति विराजत॥
गंगहि नेम सहित नित ध्यावत।
दुर्जनहूं सज्जन पद पावत॥
उद्दिहिन विद्या बल पावै।
रोगी रोग मुक्त हवे जावै॥ ३२ ॥
गंगा गंगा जो नर कहहीं।
भूखा नंगा कभुहुह न रहहि॥
निकसत ही मुख गंगा माई।
श्रवण दाबी यम चलहिं पराई॥
महं अघिन अधमन कहं तारे।
भए नरका के बंद किवारें॥
जो नर जपी गंग शत नामा।
सकल सिद्धि पूरण ह्वै कामा॥ ३६ ॥
सब सुख भोग परम पद पावहीं।
आवागमन रहित ह्वै जावहीं॥
धनि मइया सुरसरि सुख दैनि।
धनि धनि तीरथ राज त्रिवेणी॥
ककरा ग्राम ऋषि दुर्वासा।
सुन्दरदास गंगा कर दासा॥
जो यह पढ़े गंगा चालीसा।
मिली भक्ति अविरल वागीसा॥ ४० ॥
॥ दोहा ॥
नित नए सुख सम्पति लहैं। धरें गंगा का ध्यान।
अंत समाई सुर पुर बसल। सदर बैठी विमान॥
संवत भुत नभ्दिशी। राम जन्म दिन चैत्र।
पूरण चालीसा किया। हरी भक्तन हित नेत्र॥
गंगा चालीसा से लाभ, (Ganga Chalisa Benefits)
गंगा चालीसा का पाठ करने से जीवन साधक की सारी मनोकामना पूर्ण होती हैं। जीवन में अनुकूलता आती है और घर का वातावरण शुद्ध व शांत हो जाता है। इतना ही नहीं, गंगा दशहरा के दिन अगर पवित्र नदी में डुबकी लगाने के बाद चालीसा पाठ कर लिया जाए तो व्यक्ति के जन्मों-जन्मांतर के पाप धुल जाते हैं। घर-परिवार में खुशियों का माहोल बनता है और कार्य में कामयाबी मिलती है।
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