Gangaur Ki Kahani: गणगौर पूजा क्यों की जाती है? जानिए इस पर्व से जुड़ी पौराणिक कहानी

Gangaur Puja Katha: सनातन धर्म में गणगौर पूजा का विशेष महत्व माना गया है। ये पूजा महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए करती हैं। यहां जानिए गणगौर पूजा की कहानी।

Gangaur Ki Kahani

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Gangaur Katha In Hindi (गणगौर की कहानी): गणगौर पूजा शादीशुदा महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए करती हैं तो कुंवारी लड़कियां अच्छे वर की प्राप्ति के लिए ये पूजा करती हैं। वैसे तो भारत के कई क्षेत्रों में गणगौर पर्व मनाया जाता है लेकिन इसकी खास रौनक राजस्थान, मध्यप्रदेश और हरियाणा में देखने को मिलती है। इस साल गणगौर पूजा की शुरुआत 25 मार्च से हो चुकी है औक इसकी समाप्ति 11 अप्रैल को होगी। यहां जानिए गणगौर पूजा की कथा।

गणगौर पूजा के गीत

गणगौर की कहानी (Gangaur Ki Kahani In Hindi)

पौराणिक कथाओं अनुसार एक बार माता पार्वती, भगवान शिव और नारद मुनि एक गांव में पहुंचे। उस गांव के लोगों को जब उनके आगमन का पता चला तो उन्हें बेहद प्रसन्नता हुई और सभी लोगों ने पकवान बनाने शुरू कर दिए। इसी प्रक्रिया में गांव की अमीर महिलाएं देवताओं को प्रसन्न करने के लिए तरह-तरह के पकवान बनाती हैं जबकि गरीब महिलायें देवताओं को श्रद्धा सुमन अर्पित करती हैं। गरीब महिलाओं की सच्ची श्रद्धा देख कर मां पार्वती उन्हें सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद देती हैं। ये देखकर अमीर घरों की महिलायें भोजन लेकर देवताओं के पास पहुंचती हैं जिसके बाद सभी महिलायें माता पार्वती से पूछती हैं कि अब आप अमीर महिलाओं को क्या आशीर्वाद देंगी। ऐसे में मां पार्वती कहती हैं कि जो भी महिलाएं उनके लिए सच्ची आस्था लेकर आयी है उन सभी के पात्रों पर मां के रक्त के छींटे पड़ेंगे। इसके बाद माता पार्वती ने अपनी उंगली काटकर अपना लहू उन महिलाओं के बीच छिड़क दिया। इसके बाद सभी अमीर महिलाएं निराश होकर घर वापस चली गईं। जो मन में लालच लेकर देवताओं से मिलने आयीं थीं।

इसके बाद माता पार्वती भगवान शिव और नारद मुनि को वहीं छोड़ कर नदी में स्नान करने चली गईं। स्नान के बाद माता पार्वती ने वहीं नदी के तट पर भगवान शिव की रेत की प्रतिमा बनाई और उसकी पूजा करने लगीं। पूजा के बाद माता ने उस प्रतिमा को रेत के लड्डू का भोग लगाया। जब वो वापस पहुंचती हैं तो भगवान शिव उनसे देर से आने का कारण पूछते हैं। तब माता पार्वती उन्हें बताती हैं कि नदी से लौटते समय उन्हें कुछ रिश्तेदार मिल गए थे जिन्होंने उनके लिए दूध भात बनाया था, उसी को खाने में देरी हो गयी। लेकिन भगवान शिव तो अन्तर्यामी ठहरे। उन्हें सारी बात पता थी इसलिए उन्होंने भी माता पार्वती के रिश्तेदारों से मिलने की इच्छा जताई। तब माता पार्वती अपनी माया से वहां एक बड़ा सा महल तैयार कर देती हैं जहां भगवान शिव और नारद मुनि का भव्य स्वागत किया जाता है।

जब भगवान शिव और नारद मुनि वहां से लौट रहे होते हैं तब भगवान शिव नारद मुनि से अपनी रुद्राक्ष की माला लाने के लिए कहते हैं जो वे महल में भूल आये थे। नारद मुनि जब वहां पहुंचते हैं तो उन्हें कोई महल नहीं दिखाई देता और भगवान शिव की माला उन्हें एक पेड़ पर टंगी हुई मिलती है। नारद मुनि ने ये बात आकर भगवान शिव को बताते हैं। तब भगवान शिव ने मुस्कुराते हुए नारद मुनि को माता पार्वती की माया के बारे में बताया। कहते हैं बस इसी के बाद से गणगौर पर्व मनाने की परंपरा शुरू हो गयी। क्योंकि माता पार्वती ने भी भगवान शिव को इस पूजा के बारे में नहीं बताया था इसलिए इस दिन पत्नी अपने पति को देवताओं की पूजा के बारे में कोई जानकारी नहीं देती हैं और ना ही इस पूजा का प्रसाद पति को खिलाती हैं।

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    TNN अध्यात्म डेस्क author

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