Gita Jayanti 2024 Date: दिसंबर के महीने में कब है गीता जयंती? नोट करें तिथि और महत्व
Gita Jayanti 2024 Date: हिंदू धर्म में गीता जयंती का पर्व दिसंबर के महीने में मनाया जाता है। इस दिन गीता की पुस्तक का दान किया जाता है। ऐसे में आइए जानें दिसंबर के महीने में गीता जयंती का पर्व कब मनाया जाएगा।
Gita Jayanti 2024
Gita Jayanti 2024 Date: धार्मिक मान्यता के अनुसार मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि के दिन भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था। इस कारण हर साल इस तिथि पर गीता जयंती का पर्व मनाया जाता है। सनातन धर्म में गीता को बहुत ही महत्वपूर्ण ग्रंथ माना गया है। गीता में कृष्ण ने जीवन की सारी समस्याओं का समाधान बताया है। जब कुरुक्षेत्र में युद्ध शुरू होने से पहले अर्जुन के मन में बहुत सारी दुविधाएं चल रही थी। अर्जुन की सारी समस्या को भगवान कृष्ण ने गीता के उपदेश के द्वारा समाप्त किया था। आइए जानते हैं इस साल गीता जयंती कब है।
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Gita Jayanti 2024 Date (गीता जयंती कब है 2024)गीता जयंती हर साल मार्गशीर्ष महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि के दिन मनाया जाता है। इस साल इस तिथि की शुरुआत 11 दिसंबर 2024 को सुबह 03:42 बजे से होगी और इसका समापन 12 दिसंबर 2024 को सुबह 01: 09 बजे तक होगा। ऐसे में उदयातिथि के अनुसार इस साल गीता जयंती का पर्व 11 दिसंबर 2024 को मनाया जाएगा।
Gita Jayanti Puja Vidhi (गीता जयंती पूजा विधि)
गीता जयंती के दिन ब्रह्म बेला उठकर स्नान करना चाहिए और साफ वस्त्र धारण करके भगवान कृष्ण का ध्यान लगाना चाहिए। उसके बाद भगवान सूर्य देवता को जल अर्पित करें और कृष्ण जी की पूजा पूरे विधि- विधान के साथ करें। गीता जयंती के दिन गीता के पुस्तक पर चंदन और तिलक लगाएं। उसके गीता जी की आरती करें और भगवदगीता की पुस्तक को प्रणाम करें।
Gita Jayanti Kyun Manai Jati Hai (गीता जयंती क्यों मनाई जाती है)
गीता जयंती का पर्व मोक्षदा एकादशी के दिन मनाया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार कुरुक्षेत्र में कुंती पुत्र अर्जुन को भघवान कृष्ण ने गीता का ज्ञान दिया था। भगवदगीता के ग्रंथ में 18 अध्याय है। इस साल गीता जयंती की 5157 वीं वर्षगांठ मनाई जाएगी। गीत में निहित ज्ञान के द्वारा संसार की किसी भी समस्या का समाधान निकाला जा सकता है। गीता का अध्ययन करने से व्यक्ति को जीवन के हर क्षेत्र में सफलता मिलती है और जीवन जीने का सही ढंग पता चलता है।
गीता के श्लोककर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
अर्थ: कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, कर्म के फलों में कभी नहीं, इसलिए कर्म हमेशा फल की इच्छा से रहित होकर करो। कर्तव्य-कर्म करने में ही तेरा अधिकार है फलों में कभी नहीं। अतः तू कर्मफल का हेतु भी मत बन और तेरी अकर्मण्यता में भी आसक्ति न हो।
क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:।
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥
अर्थ: क्रोध से मनुष्य की मति-बुदि्ध मारी जाती है यानी मूढ़ हो जाती है, कुंद हो जाती है। इससे स्मृति भ्रमित हो जाती है। स्मृति-भ्रम हो जाने से मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि का नाश हो जाने पर मनुष्य खुद अपना ही का नाश कर बैठता है।
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