Govardhan Puja Kyun Manaya jata Hai: गोवर्धन पूजा के दिन क्या करते हैं, जानिए क्यों मनाया जाता है ये पर्व

Govardhan Puja Kyun Manaya jata Hai: गोवर्धन पूजा का त्योहार दीपवाली के बाद मनाया जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण और गोवर्धन की पूजा होती है। ऐसे में आइए जानते हैं इस दिन क्या करते हैं और ये पर्व क्यों मनाया जाता है।

Govardhan Puja Kyun Manaya jata Hai

Govardhan Puja Kyun Manaya jata Hai: गोवर्धन पूजा हर साल कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाई जाती है। इस साल गोवर्धन पूजा 2 नवंबर 2024 को मनाई जाएगी। इस दिन भगवान कृष्ण और गोवर्धन की पूजा का विधान है। गोवर्धन पूजा के दिन घरों में गोबर से गोवर्धन की आकृति बनाई जाती है और उसकी पूजा की जाती है। इस पूजा को करने की शुरुआत द्वापर युग से ही मानी जाती है। गोवर्धन पर्वत की पूजा करने की परंपरा भगवान श्री कृष्ण ने द्वापर युग में की थी। इस पूजा को अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान को नये फसल की बनाई चीजों का भोग लगाया जाता है। आइए जानते हैं गोवर्धन पूजा के दिन क्या करते हैं और ये पूजा क्यों की जाती है।

गोवर्धन पूजा के दिन क्या करते हैं (What to do on the day of Govardhan Puja)

गोवर्धन पूजा के दिन गोबर और मिट्टी से भगवान गोवर्धन की आकृति बनाई जाती है और उनकी विधिवत पूजा की जाती है। इसके साथ ही इस दिन गाय की पूजा की जाती है। गोवर्धन पूजा के दिन भगवान कृष्ण को 56 भोग लगाएं जाते हैं। इसके साथ ही इस दिन ब्रजवासी भगवान कृष्ण को अन्नकूट का भोग लगाते हैं। ये पर्व मथुरा, वृंदावन में और उसके आस पास के ब्रज क्षेत्र में बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस पूजा की शुरुआत भी ब्रज क्षेत्र से ही मानी जाती है। इस पूजा में प्रकृति के प्रेम को दर्शाया जाता है। गोवर्धन पूजा के माध्यम से लोग प्रकृति की पूजा करते हैं।

Govardhan Puja Kyun Manaya jata Hai (गोवर्धन पूजा क्यों मनाया जाता है)

पौराणिक कथा के अनुसार गोवर्धन पूजा की शुरुआत भगवान कृष्ण ने इंद्र का घंमड़ तोड़ने के लिए की थी। द्वापर युग में जब भगवान विष्णु कृष्ण अवतार में आए तो उन्होंने अपना बचपन ब्रज में बिताया। वहीं उन्होंने ब्रजवासियों को इंद्र की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करने की सलाह दी। ब्रज वासियों को गोवर्धन पर्वत की पूजा करते देख इंद्र को बहुत क्रोध आया और उन्होंने पूरे ब्रज को आंधी तूफान और जल से भर दिया। तब भगवान कृष्ण ने ब्रज के लोगों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी तर्जनी उंगली पर उठा लिया। उसके बाद से ही हर साल ब्रज के लोग भगवान कृष्ण और गोवर्धन की पूजा करने लगे

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