Govardhan Puja Katha In Hindi: गोवर्धन पूजा की कथा, इसे पढ़ने से सुख-समृद्धि की नहीं होगी कमी

Govardhan Puja Vrat Katha In Hindi: गोवर्धन पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को की जाती है। गोवर्धन पूजा के दिन गोवर्धन पर्वत, गाय और भगवान श्री कृष्ण की पूजा का विशेष महत्व होता है। यहां देखें गोवर्धन पूजा व्रत कथा।

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Govardhan Vrat Katha In Hindi

Govardhan Puja Vrat Katha In Hindi (गोवर्धन की कहानी): इस साल गोवर्धन पूजा का त्योहार 14 नवंबर को मनाया जा रहा है। ये पर्व विशेष रूप से उत्तर भारत में मनाया जाता है। इस दिन गोवर्धन पर्वत, गाय और भगवान श्री कृष्ण के साथ वरुण देवता, इंद्र देवता, अग्नि देवता की भी पूजा का विधान बताया गया है। मान्यता है कि गोवर्धन पूजा करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है। इस दिन लोग गाय के गोबर से गोवर्धन की आकृति बनाकर उसकी पूजा करते हैं। यहां देखें गोवर्धन की व्रत कथा।

Govardhan Puja Vidhi In Hindi

Govardhan Vrat Katha In Hindi (गोवर्धन पूजा की कहानी)

एक समय की बात है श्रीकृष्ण अपने मित्र ग्वालों के साथ पशुओं को चराते हुए गोवर्धन पर्वत के पास जा पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि कई लोग एक उत्सव मना रहे हैं। श्रीकृष्ण ने इसका कारण पूछा तो वहां उपस्थित गोपियों ने कहा कि आज यहां मेघ व देवों के स्वामी इंद्रदेव की पूजा की जाएगी और फिर इंद्रदेव प्रसन्न होकर हमारे लिए वर्षा करेंगे, जिससे खेतों में अन्न उत्पन्न होगा और ब्रजवासियों का भरण-पोषण होगा। यह सुनकर श्रीकृष्ण ने सबसे कहा कि इंद्र से अधिक शक्तिशाली तो गोवर्धन पर्वत है जिनके कारण यहां वर्षा होती है साथ ही गोवर्धन पर्वत पर हमारे पशु भी चरते हैं। इसलिए सबको इंद्र से भी बलशाली गोवर्धन पर्वत की पूजन करना चाहिए।

श्रीकृष्ण की बात से सभी लोग सहमत होकर गोवर्धन की पूजा करने लगे। जब ये बात इंद्रदेव को पता चली तो उनके क्रोध का ठिकाना नहीं रहा उन्होंने मेघों से कहा कि वे गोकुल में जाकर मूसलाधार बारिश करें और इस तरह से गोकुल में भयंकर बारिश होने लगी। भयावह बारिश से भयभीत होकर सभी गोपियां-ग्वाले श्रीकृष्ण के पास गए। सभी को बचाने के लिए श्रीकृष्ण ने गोवर्धन-पर्वत अपनी कनिष्ठा उंगली पर उठाकर छाते-सा तान दिया। फिर इस गोवर्धन पर्वत के नीचे गोकुल के सभी लोग और पशु आ गए। इन्द्रदेव के मेघ सात दिन तक बरसते रहे किन्तु श्री कृष्ण के सुदर्शन चक्र के प्रभाव से ब्रजवासियों पर बारीश की एक बूंद भी नहीं पड़ी।

यह अद्भुत चमत्कार देख इन्द्रदेव असमंजस में पड़ गए। तब ब्रह्मा जी ने उन्हें बताया कि श्रीकृष्ण कोई और नहीं बल्कि भगवान विष्णु के अवतार हैं। सत्य जान इंद्रदेव श्रीकृष्ण से क्षमायाचना मांगने पहुंचें। इस तरह से श्रीकृष्ण ने इन्द्रदेव के अहंकार को चूर-चूर कर दिया था अतः उन्होंने इन्द्रदेव को क्षमा किया और सातवें दिन गोवर्धन पर्वत को भूमि पर रख दिया और ब्रजवासियों से कहा कि अब से हर वर्ष गोवर्धन पूजा कर अन्नकूट का पर्व मनाएं। कहते हैं तभी से यह पर्व प्रचलित है और आज भी पूर्ण श्रद्धा भक्ति से मनाया जाता है

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