Govatsa Dwadashi Vrat Katha: गोवत्स द्वादशी की व्रत कथा से जानिए इस त्योहार का महत्व

Govatsa Dwadashi Vrat Katha: गोवत्स द्वादशी का व्रत एक महत्वपूर्ण व्रत है जिसमे माताएं अपनी संतानों के लिए व्रत कर उनकी लम्बी उम्र और सफलता की कामना करती हैं। कहते हैं इस विशेष व्रत को करने से संतानों को देवताओ का आशीर्वाद प्राप्त होता हैं। आइये जानते है इसकी पौराणिक कथा को।

Govatsa Dwadashi Vrat Katha

Govatsa Dwadashi Vrat Katha

Govatsa Dwadashi Vrat Katha: गोवत्स द्वादशी का त्योहार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी को मनाया जाता है। इसे नंदिनी व्रत और बछ बारस के नाम से भी जाना जाता है। नंदिनी हिंदू धर्म में दिव्य गाय मानी जाती है। गोवत्स द्वादशी के दिन विशेष रूप से गाय के बछड़े की पूजा का विधान है। इस साल ये त्योहार 28 अक्टूबर को मनाया जा रहा है। इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 05:39 से रात 08:13 तक रहेगा। चलिए जानते हैं गोवत्स द्वादशी की व्रत कथा।

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गोवत्स द्वादशी की कथा (Govatsa Dwadashi Vrat Katha)

प्रचलित लोक कथाओं के अनुसार एक गांव में एक साहूकार के सात बेटे थें जिनकी सात पत्नियां थीं। साहूकार ने गाँव में एक तालाब था लेकिन कई सालों तक वह तालाब भरा नहीं जिसके लिए उसने पंडित से परामर्श लिया। पंडित ने साहूकार से कहा कि इस तालाब में पानी तभी भरेगा जब तुम या तो अपने बड़े बेटे या अपने बड़े पोते की बलि दोगे। साहूकार ने बड़ी बहू को बिना पता लगे ही अपने बड़े बेटे की बलि दे दी। थोड़ी देर बाद ही वहां बारिश हुई जिससे की पूरा तालाब भर गया। कुछ समय के बाद जब गोवत्स द्वादशी आई तो सभी ने कहा कि तालाब भर गया है इसकी पूजा करने चलो।

साहूकार भी अपने परिवार के साथ तालाब की पूजा करने के लिए गया। उसने घर की दासी से कहा था कि गेहुंला पका लेना। लेकिन दासी इसको समझ नहीं पाई। गेहुंला गेहूं के धान को ही कहते है। घर में एक गाय के बछड़े का नाम भी गेहुंला था। उसने उसी गेहुंला नामक बछड़े को पका दिया। बड़े बेटे की पत्नी भी अपने मायके से तालाब की पूजा करने के लिए आ गई और तालाब की पूजा करने के बाद वो अपने बच्चों को प्यार करने लगी। तभी तालाब से मिट्टी से लिपटा हुआ उसका बड़ा बेटा निकला और बोला मां मुझे भी तो प्यार करो।

फिर सास ने बहू को बलि देने वाली सारी बात बताई और कहा कि बछ बारस माता ने हमारी लाज रख ली और हमारा बच्चा वापस दे दिया। पूजा के बाद जब वह घर आये तो देखा की बछड़ा वहां नही है और पूछने पर दासी ने पूरी घटना को बताया। साहूकार ने कहा कि - एक पाप उतरा नहीं दूजा सिर चढ़ गया। उसने एक मिट्टी के घड़े में बछड़े को दबा दिया। शाम होते ही गाय अपने बछड़े को खोजने लगी। उसने जमीन की मिट्टी को खोदना शुरू कर दिया और उससे उसका बछड़ा मिल गया। जब साहूकार गाय को देखने गया तो उसने देखा की गाय का बछड़ा जीवित है और अपनी माँ के साथ हैं। तब उसने सभी से कहा कि – जो भी माता सच्ची निष्ठा और भक्ति से गोवत्स द्वादशी का व्रत करेगी और गौ सेवा करेगी। हे बछ बारस माता जैसा साहूकार की बहू को दिया वैसे हमें भी देना। जो इस कहानी को सुनें उसकी मनोकामना पूर्ण करना।

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लवीना शर्मा author

धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर की रहने वाली हूं। पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट हूं। 10 साल से मीडिया में काम कर रही हूं। पत्रकारिता में करि...और देखें

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