Guru Pradosh Vrat Katha: गुरु प्रदोष व्रत करने से मिलता है पूर्वजों का आशीर्वाद, पढ़ें इसकी पौराणिक कथा

Guru Pradosh Vrat Katha: 28 नवंबर 2024 को गुरु प्रदोष व्रत रखा जा रहा है। इस व्रत में भगवान शिव की पूजी की जाती है। यहां देखिए गुरु प्रदोष व्रत की कथा।

Guru Pradosh Vrat Katha

Guru Pradosh Vrat Katha (गुरु प्रदोष व्रत कथा): गुरु प्रदोष व्रत की कथा अनुसारएक बार इन्द्र और वृत्रासुर की सेना में घनघोर युद्ध हुआ। जिसमें देवताओं ने दैत्य-सेना को पराजित कर दिया। यह देख वृत्रासुर को क्रोध आ गया और वो स्वयं युद्ध को उद्यत हुआ। आसुरी माया से उसने विकराल रूप धारण कर लिया। जिससे देवता भयभीत होकर गुरुदेव बृहस्पति की शरण में पहूंचे। बृहस्पति देव ने पहले सभी को वृत्रासुर का वास्तविक परिचय दिया। उन्होंने बताया कि वृत्रासुर बड़ा तपस्वी और कर्मनिष्ठ था। उसने घोर तपस्या कर शिव जी को प्रसन्न किया। अपने पूर्व जन्म में वह चित्ररथ नाम का राजा हुआ करता था। एक बार वह अपने विमान से कैलाश पर्वत चला गया। जहां उसने शिव जी के वाम अंग में माता पार्वती को विराजमान देख उपहास पूर्वक बोला- हे प्रभो! मोह-माया में फंसे होने के कारण हम स्त्रियों के वशीभूत रहते हैं। किन्तु देवलोक में कभी ऐसा दृष्टिगोचर नहीं हुआ कि स्त्री आलिंगनबद्ध हो सभा में बैठे।

माता पार्वती को क्रोध हो गया और वे बोलीं- अरे दुष्ट! तूने सर्वव्यापी भगवान शिव के साथ ही मेरा भी उपहास उड़ाया है। मैं तुझे ऐसी शिक्षा दूंगी कि तू फिर ऐसे संतों के उपहास उड़ाने का दुस्साहस नहीं करेगा, अब तू दैत्य स्वरूप धारण कर विमान से नीचे गिर, मैं तुझे ये शाप देती हूं। माता पार्वती के श्राप से चित्ररथ राक्षस योनि को प्राप्त हुआ और त्वष्टा नामक ऋषि के श्रेष्ठ तप से उत्पन्न हो राक्षस वृत्रासुर बना।

गुरुदेव बृहस्पति आगे बोले- वृत्तासुर छोटी उम्र से ही शिव भक्त रहा है। अतः हे इन्द्र तुम बृहस्पति प्रदोष व्रत कर भगवान शिव को प्रसन्न करो। देवराज ने विधि विधान बृहस्पति प्रदोष व्रत किया। जिसके बाद इन्द्र ने शीघ्र ही वृत्रासुर पर विजय प्राप्त कर ली जिसस देवलोक में शान्ति छा गई। बोलो उमापति शंकर भगवान की जय। हर हर महादेव !

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