Guru Pradosh Vrat Katha In Hindi: गुरु प्रदोष व्रत कथा पढ़ने से पूर्वजों का मिलेगा आशीर्वाद

Guru Pradosh Vrat Katha: सनातन धर्म में गुरु प्रदोष व्रत का विशेष महत्व माना जाता है। मान्यता है इस व्रत को रखने से पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यहां पढ़ें प्रदोष व्रत कथा।

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Guru Pradosh Vrat Katha

Guru Pradosh Vrat Katha (गुरु प्रदोष व्रत कथा): पौराणिक कथा अनुसार एक बार इन्द्र और वृत्रासुर की सेना में भयंकर युद्ध छिड़ गया था। जिसमें देवताओं ने दैत्य-सेना को नष्ट-भ्रष्ट कर डाला था। दैत्यों की हार देख वृत्रासुर को अत्यन्त क्रोध आ गया और वह स्वयं युद्ध करने के लिए चला गया। आसुरी माया से उसने बहुत विकराल रूप धारण कर लिया। जिससे सभी देवता भयभीत होकर अपने गुरु बृहस्पति की शरण में जा पहूंचे।

गुरु प्रदोष व्रत कथा (Guru Pradosh Vrat Katha In Hindi)

बृहस्पति महाराज देवताओं से बोले कि पहले मैं तुम्हे वृत्रासुर कौन है इसके बारे में बताता हूं। वृत्रासुर पूर्व में एक बड़ा तपस्वी और कर्मनिष्ठ था। उसने गन्धमादन पर्वत पर कठिन तपस्या कर महादेव को प्रसन्न कर लिया था। वह पहले चित्ररथ नाम का राजा था। एक दिन वह अपने विमान से कैलाश पर्वत पर शिव शंकर भगवान से मिलने गया था। वहां शिव जी के वाम अंग में माता पार्वती को विराजमान देख उसने उपहास उड़ाते हुए बोला- हे प्रभो! हम मोह-माया में फंसे होने के कारण स्त्रियों के वशीभूत रहते हैं। किन्तु देवलोक में ऐसा नजारा पहले नहीं देखा गया कि स्त्री आलिंगनबद्ध हो सभा में बैठे।
चित्ररथ के मुख से ऐसी वाणी सुन शिव शंकर भगवान हंसकर बोले- हे राजन! मेरा व्यावहारिक दृष्टिकोण अलग है। मैंने मृत्युदाता कालकूट महाविष का पान किया है और फिर भी तुम मेरा किसी साधारण जन की भांति उपहास उड़ाते हो! लेकिन माता पार्वती को चित्ररथ की ये बात अच्छी नहीं लगी जिस पर उन्हें अत्यंत क्रोध आ गया। माता बोलीं- अरे दुष्ट! तूने सर्वव्यापी महेश्‍वर के साथ-साथ मेरा भी उपहास उड़ाया है। अत: मैं तुझे अब ऐसी शिक्षा दूंगी कि तू आगे से किसी भी संत का उपहास उड़ाने का दुस्साहस नहीं करेगा, अब तू दैत्य का रूप धारण कर विमान से नीचे गिर जा, मैं तुझे शाप देती हूं।
माता पार्वती के अभिशाप से चित्ररथ राजा से राक्षस योनि को प्राप्त हुआ और त्वष्टा नामक ऋषि के श्रेष्ठ तप से उत्पन्न हो वृत्रासुर बना। वृत्तासुर बाल्यकाल से ही शिव भगवान का बड़ा भक्त रहा है। अतः हे इन्द्र अगर तुम इसे पराजित करना चाहते हो को बृहस्पति प्रदोष व्रत करो। इससे शंकर भगवान जरूर प्रसन्न होंगे। देवराज इंद्र ने गुरुदेव की आज्ञा से इस व्रत को किया। गुरु प्रदोष व्रत के प्रताप से ही इन्द्र ने वृत्रासुर पर विजय हालिस कर ली जिससे देवलोक में एक बार फिर से शान्ति छा गई।
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लवीना शर्मा author

धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर की रहने वाली हूं। पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट हूं। 10 साल से मीडिया में काम कर रही हूं। पत्रकारिता में करि...और देखें

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